उत्तर प्रदेश में बागवत जिले का बरनावा गांव एक बार फिर चर्चा में है. इस बार भी चर्चा इस गांव के अतीत की वजह से ही है. 53 वर्षों से इस गांव के टीले को लेकर चल रहे विवाद में कोर्ट ने अपना फैसला दे दिया है. कोर्ट ने करीब 100 बीघे में पसरे इस टीले का मालिकाना हक हिन्दु पक्ष को दे दिया है. हिन्दू पक्ष का दावा है कि यह टीला बरणावत महल की राख का ढेर है. यहीं पर द्वापर युग में दुर्योधन ने पांडवों को जलाकर मारने के लिए लाख का बेहद खूबसूरत महल बनवाया था.
चूंकि मौका है, इसलिए आइए आज उसी कहानी की चर्चा करते हैं और बताने की कोशिश करते हैं कि द्वापर में यह महल कैसा था. दरअसल द्वापर के उत्तरार्ध में आर्यावर्त की राजधानी हस्तिनापुर होती थी. उस समय यहां पर धृतराष्ट्र का शासन था. चूंकि पांडु की मौत के बाद उनके बेटे युधिष्ठिर छोटे थे, ऐसे में हस्तिनापुर के सिंघासन पर धृतराष्ट्र की ताजपोशी हुई थी. इसलिए धृतराष्ट्र और पांडु के पुत्रों के बीच उत्तराधिकार की लड़ाई शुरू हो गई. उस समय दुर्योधन ने अपने मामा शकुनि से मिलकर पांडवों को जलाकर मारने की योजना बनाई.
गांधार से आए थे इंजीनियर
इसके लिए काबुल (उस समय का गांधार) से शकुनि ने इंजीनियर बुलाए. इन इंजीनियरों ने बागपत जिले के बरणावत में एक लाख का महल बनवाया था. गांधार की स्थापत्य कला से निर्मित इस भवन को लाक्षागृह नाम दिया गया था. यह भवन इतना खूबसूरत था कि देखने वालों की आंखें ठहर जाती थीं. भले ही इस भवन का निर्माण अति ज्वलनशील पदार्थ लाख से किया गया था, लेकिन देखने में यह मार्बल पत्थर सा प्रतीत होता था. यदि कहा जाए कि मकराना के मार्बल से भी ज्यादा चमकीला था तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी.
विदुर की बनवाई सुरंग से बचे पांडव
इसके बाद दुर्योधन ने भ्रमण के बहाने पांडवों को इस महल में भिजवा दिया. पांडव भी इस महल की खूबसूरती देखकर दंग रह गए थे और खुशी खुशी इसमें प्रवास के लिए आ गए थे. उस समय पांडवों के प्रति इतना सद्भाव देखकर महामंत्री विदुर को शक हो गया. उन्होंने अपने स्तर पर जांच कराई और दुर्योधन की इस चाल का पता लगने पर विदुर ने भी एक चाल चली. उन्होंने इस महल के नीचे एक सुरंग खुदवा दी थी. वहीं पांडवों के इस महल में ठहरने के बाद जैसे ही दुर्योधन ने इसमें आग लगवाई, विदुर के इशारे पर पांडव इसी सुरंग के जरिए यहां से सुरक्षित बाहर निकल गए थे.
शकुनि ने करा दी थी इंजीनियरों की हत्या
महाभारत में प्रसंग आता है कि शकुनि ने लाक्षागृह में आग लगवाने से पहले काबुल से आए इंजीनियरों की हत्या करवा दी थी. यही नहीं, उन इंजीनियरों के शव को इसी लाक्षागृह के अंदर दबवा दिया था. दरअसल पांडवों की मौत के बाद आक्रोश फैलने का डर था. ऐसे में शकुनि को आशंका थी कि ऐसे हालात में ये इंजीनियर मुंह खोल देंगे. उधर, लाक्षागृह में आग लगने के कुछ ही पलों में यह पूरा महल जलकर भस्म हो गया.
खुदाई में मिले महाभारतकालीन पॉटरी
ऐसे हालात में महल के अंदर रखे बर्तन से लेकर अन्य सामान राख बनकर एक टीले के रूप में तब्दील हो गए. ताजा विवाद की वजह से जब आर्किलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया की टीम ने इस टीले की और इसके अंदर मिले सुरंग की खुदाई की थी तो यहां से महाभारत कालीन पॉटरी व अन्या सामान मिले थे. इसके अलावा इस स्थान का महत्व इसलिए भी बढ़ जाता है कि जब भगवान कृष्ण शांति दूत बनकर हस्तिनापुर गए तो उन्होंने पांडवों के लिए पांच गांवों की मांग की थी. उन पांच गांवों में ये बरणावत भी था.