उत्तर प्रदेश में INDIA गठबंधन में सपा और कांग्रेस के साथ रहने और सीट शेयरिंग को लेकर भले ही स्थिति साफ न हो, लेकिन सपा ने कैंडिडेट उतारने शुरू कर दिए हैं. सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने मंगलवार को यूपी की 16 लोकसभा सीटों पर पार्टी उम्मीदवारों के नाम का ऐलान कर दिया है. अखिलेश ने पीडीए (पिछड़ा-दलित-अल्पसंख्यक) फॉर्मूले के नाम पर यादव और कुर्मी समुदाय को महत्व दिया है. यादव समुदाय के नाम पर अखिलेश यादव ने अपने परिवार तक ही सीमित रहे. यही नहीं सपा के पुराने नेताओं के बदले दूसरे दलों से आए दलबदलू नेताओं पर ही भरोसा जताया है. ऐसे में सवाल उठता है कि अखिलेश यादव 2024 के लोकसभा चुनाव में क्या परिवार और आयातित नेताओं के सहारे बीजेपी से मुकाबला कर पाएंगे?
सपा ने यूपी की 16 सीटों पर अपने उम्मीदवारों की पहली लिस्ट जारी कर दी है. मैनपुरी से डिंपल यादव, बदायूं से धर्मेंद्र यादव, एटा से देवेश शाक्य, उन्नाव से अन्नू टण्डन, लखनऊ से रविदास मेहरोत्रा, अकबरपुर से राजाराम पाल, संभल से शफीकुर्रहमान बर्क, फिरोजाबाद से अक्षय यादव, लखीमपुरखीरी से उत्कर्ष वर्मा, धौरहरा से आनंद भदौरिया, फर्रुखाबाद से डॉ. नवल किशोर शाक्य, बांदा से शिवशंकर सिंह पटेल, फैजाबाद (अयोध्या) से अवधेश प्रसाद, अंबेडकर नगर से लालजी वर्मा, बस्ती से रामप्रसाद चौधरी और गोरखपुर से काजल निषाद को सपा ने लोकसभा चुनाव का टिकट दिया है.
सपा उम्मीदवारों का जातीय गणित
सपा के उम्मीदवारों के जातीय समीकरण देखें तो अखिलेश यादव ने अपनी पहली लिस्ट में सबसे ज्यादा ओबीसी पर भरोसा जताया है. सपा ने 16 में 11 ओबीसी प्रत्याशी उतारे हैं, लेकिन दलित और मुस्लिम को बहुत ज्यादा अहमियत नहीं मिल सकी. ओबीसी में कुर्मी समुदाय को खास तवज्जो मिली है. सपा ने चार कुर्मी समुदाय के नेताओं को टिकट दिए हैं. वहीं तीन यादव समुदाय के प्रत्याशी बनाए हैं. शाक्य और खत्री (पंजाबी) समुदाय से दो-दो प्रत्याशी उतारे हैं. सपा के मूल वोटबैंक माने जाने वाले मुस्लिम समुदाय को सिर्फ एक टिकट अभी दिया है. इसके अलावा सपा ने निषाद-पाल-दलित-ठाकुर समुदाय के एक-एक प्रत्याशी उतारे हैं.
अखिलेश का यादव परिवार पर भरोसा
अखिलेश यादव ने अपनी पहली लिस्ट के जरिए भले ही सियासी संदेश और राजनीतिक समीकरण बनाने की कवायद की हो, लेकिन अपने यादव समुदाय के नाम पर अपने परिवार से बाहर किसी दूसरे पर दांव नहीं लगा सके. सपा ने तीन यादव समुदाय से प्रत्याशी उतारे हैं, जिसमें अखिलेश ने मैनपुरी से अपनी पत्नी डिंपल यादव, बदायूं से अपने चचेरे भाई धर्मेंद्र यादव और फिरोजबाद से अपने चचेरे भाई अक्षय यादव को प्रत्याशी बनाया है. मैनपुरी छोड़कर बदायूं और फिरोजबाद सीट पर बीजेपी का फिलहाल कब्जा है. सपा यह दोनों ही लोकसभा सीट 2019 में बसपा-आरएलडी के साथ गठबंधन करने के बाद भी जीत नहीं सकी थी.
सपा पर मुलायम सिंह यादव के दौर से ही परिवारवाद का आरोप लगता रहा है, जिससे बाहर अखिलेश यादव भी नहीं निकल सके. बदांयू सीट पर सपा के महासचिव स्वामी प्रसाद मौर्य की बेटी संघमित्रा मौर्य बीजेपी से फिलहाल सांसद है. बदायूं और फिरोजबाद के सियासी समीकरण यादव और मुस्लिमों के इर्द-गिर्द सिमटी हुई है. इन दोनों ही सीटों पर 25 फीसदी से ज्यादा मुसलमानों के वोट हैं. इसी समीकरण को देखते हुए अखिलेश यादव ने अपने दोनों चचेरे भाई को मजबूत सीट से चुनावी मैदान में उतारा है, लेकिन ये सवाल है कि क्या अखिलेश 2014 जैसे नतीजे बदायूं और फिरोजाबाद सीट पर 2024 में दोहरा पाएंगे?
सपा ने दलबदलुओं पर खेला दांव
लोकसभा चुनाव के लिए सपा ने कल जिन 16 उम्मीदवारों को उतारा, उसमें सबसे ज्यादा भरोसा दूसरे दल से आए नेताओं पर किया गया है. लालजी वर्मा और राम प्रसाद चौधरी बसपा से सपा में आए हैं. अन्नु टंडन कांग्रेस से सांसद रह चुकी है और विधानसभा चुनाव से पहले सपा में शामिल हुई थी. अकबरपुर से प्रत्याशी बनाए गए राजाराम पाल भी कांग्रेस से सांसद रह चुके हैं, उससे पहले बसपा में रहे हैं, 2022 के चुनाव से पहले सपा में शामिल हुए थे. देवेश शाक्य का सियासी बैकग्राउंड बसपा है. उनके भाई बसपा सरकार में मंत्री और बीजेपी से विधायक रह चुके हैं. सपा ने उन्हें एटा से प्रत्याशी बनाया है. बांदा सीट से शिव शंकर पटेल को प्रत्याशी बनाया गया है, जो बीजेपी में रहे हैं और राम मंदिर आंदोलन का हिस्सा रह चुके हैं. इस तरह अखिलेश यादव ने दलबदलू नेताओं को चुनावी मैदान में उतारकर बीजेपी से मुकाबला करने की रणनीति बनाई है, लेकिन कई नेता 2022 की चुनावी मात खा चुके हैं. ऐसे में देखना होगा कि 2024 में ये बीजेपी को किस तरह पार पा पाएंगे?
पीडीए में दलित-मुस्लिम कितना
सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने लोकसभा चुनाव में पीडीए यानी पिछड़े, दलित और अल्पसंख्यकों को साधने का दांव चला है. पिछले कुछ महीनों से अखिलेश यादव आए दिन अपनी रैलियों और सभाओं में इस बात का जिक्र करते नजर आते हैं कि पीडीए ही से 2024 में बीजेपी को हराएंगे. अब जब सपा ने लोकसभा चुनाव के लिए उम्मीदवारों के नामों का एलान कर दिया है तो उसमें पीडीए साफ नजर आ रहा है, लेकिन कुर्मी और यादव समुदाय का ही पल्ला भारी है. दलित और मुस्लिम को तवज्जो नहीं मिली. सपा ने फैजाबाद लोकसभा (सामान्य सीट) पर दलित वर्ग के अवधेश प्रसाद को प्रत्याशी बनाया है, जो पासी समुदाय से आते हैं. इसके अलावा सपा की पहली लिस्ट में किसी दूसरे दलित का नाम नहीं है.
मुलायम सिंह के दौर से मुस्लिम समुदाय को सपा का कोर वोटर माना जाता था, लेकिन लगता है कि अखिलेश यादव के एजेंडे से वो बाहर हो गए है. सपा ने 16 उम्मीदवारों में सिर्फ एक मुस्लिम को टिकट दिया है, वो भी संभल से शफीकुर्रहमान बर्क को, जो मौजूदा समय में सांसद है. यूपी में 20 फीसदी से ज्यादा मुस्लिम समुदाय की आबादी है, यादव 8 फीसदी तो कुर्मी 5 फीसदी हैं. सपा ने तीन यादव और चार कुर्मी समुदाय के नेताओं को टिकट दिया है, लेकिन मुस्लिमों को एक टिकट दिया है. इसी तरह 22 फीसदी से ज्यादा दलित वोटर हैं, लेकिन पार्टी ने एक ही प्रत्याशी इस समुदाय से बनाया है.
कांग्रेस को अखिलेश ने दिया संदेश
यूपी में सपा और कांग्रेस के बीच गठबंधन की स्थिति साफ होने से पहले ही सपा ने टिकटों का ऐलान कर दिया है. इतना ही नहीं लखीमपुर खीरी से उत्कर्ष वर्मा को उतारकर यह संदेश भी दे दिया गया है कि टिकट की चाह में सपा छोड़कर कांग्रेस में जाने वालों के लिए किसी तरह की कोई गुंजाइश नहीं बची है. इसी तरह से फर्रुखाबाद सीट से डॉ. नवल किशोर शाक्य को उम्मीदवार बनाया है जबकि यहां से कांग्रेस के दिग्गज नेता और पूर्व विदेश मंत्री सलमान खुर्शीद चुनाव लड़ते रहे हैं. सपा की ओर से घोषित 11 सीटों के गठबंधन की पेशकश से कांग्रेस पहले से खुश नहीं है और अब अखिलेश यादव ने जिस तरह से कैंडिडेट के नामों का ऐलान किया है, उससे बात और बिगड़ सकती है.