मिलिंद देवड़ा ने जब कांग्रेस के साथ अपने परिवार का 55 साल पुराना रिश्ता खत्म किया तो किसी को हैरानी नहीं हुई क्योंकि जिस तरह से गांधी परिवार खासतौर पर राहुल गांधी कांग्रेस पार्टी को चला रहे हैं उससे नाराज होकर सिर्फ युवा ही नहीं बल्कि वयोवृद्ध कांग्रेसी भी पार्टी को छोड़ रहे हैं। मिलिंद देवड़ा का कांग्रेस छोड़ कर जाना तो सीधे-सीधे राहुल गांधी के लिए बड़ा झटका है क्योंकि अब उनकी किचन कैबिनेट कह कर पुकारी जाने वाली टीम पूरी तरह बिखर चुकी है। पहले उस टीम से ज्योतिरादित्य सिंधिया निकले, फिर जितिन प्रसाद निकले और फिर आरपीएन सिंह निकले और इन सभी ने भाजपा का दामन थाम लिया। सचिन पायलट ने भी भगवा खेमे की तरह कदम बढ़ा दिया था लेकिन गांधी परिवार के आश्वासन पर उन्होंने अपने पांव पीछे तो खींच लिये लेकिन उनके मुद्दों का हल आज तक नहीं निकला है। इसलिए वह कब तक कांग्रेस में बने रहेंगे, यह बात गारंटी से नहीं कही जा सकती। जहां तक मिलिंद देवड़ा की बात है तो वह अब कांग्रेस का साथ छोड़ कर एनडीए की घटक शिवसेना में शामिल हो गये हैं। देखा जाये तो राहुल गांधी, ज्योतिरादित्य सिंधिया, आरपीएन सिंह, जितिन प्रसाद, सचिन पायलट और मिलिंद देवड़ा तो गहरे मित्र थे ही साथ ही इन सभी नेताओं के पिता भी आपस में जिगरी दोस्त रहे थे इसलिए राहुल की किचन कैबिनेट को भविष्य के मंत्रिमंडल के रूप में भी देखा जाता था लेकिन राहुल गांधी की ओर से अपनी मनमर्जी चलाने, सभी को साथ लेकर नहीं चलने और असल मुद्दों की बजाय सिर्फ नकारात्मक राजनीति करते रहने से इन युवा नेताओं ने कांग्रेस से किनारा कर लिया। वैसे सिर्फ युवाओं ने ही किनारा नहीं किया 50 साल कांग्रेस को देने वाले गुलाम नबी आजाद और कैप्टन अमरिंदर सिंह जैसे नेता भी राहुल गांधी पर आरोप लगा कर ही पार्टी छोड़ गये। कहने को तो गांधी परिवार ने कांग्रेस अध्यक्ष पद छोड़ कर पार्टी में चुनाव करवाये और मल्लिकार्जुन खरगे को अध्यक्ष बनवा दिया लेकिन आज भी हर निर्णय में हर छोटे-बड़े मौके पर नेतृत्व गांधी परिवार ही करता दिखता है।
जहां तक मिलिंद देवड़ा की बात है तो उनका जाना मुंबई में खासतौर पर कांग्रेस के लिए बहुत बड़ा झटका है। एक समय था जब मुंबई में कांग्रेस का मतलब मिलिंद के पिता मुरली देवड़ा ही थे। दिवंगत मुरली देवड़ा एक कद्दावर शख्सियत थे और संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार में पेट्रोलियम मंत्री रहे थे। लेकिन उनके बेटे मिलिंद को कांग्रेस में अब साइडलाइन कर दिया गया था। देवड़ा के करीबी सूत्रों ने कहा कि उन्होंने ‘‘बहुत लंबे और निरर्थक इंतजार’’ के बाद पार्टी छोड़ दी। दरअसल पूर्व लोकसभा सदस्य मिलिंद देवड़ा अपनी ही पार्टी से यह आश्वासन नहीं पा सके कि उन्हें आगामी आम चुनाव में मुंबई दक्षिण से चुनाव लड़ने का मौका मिलेगा, जिस सीट का प्रतिनिधित्व दशकों से उनका परिवार करता रहा है। देवड़ा के सहयोगियों ने कहा, ‘‘शिवसेना (यूबीटी) खुले तौर पर मुंबई दक्षिण सीट पर दावा कर रही है और कांग्रेस मिलिंद देवड़ा को सीट का आश्वासन देने में असमर्थ रही। एक युवा नेता का राजनीतिक भविष्य अनिश्चितता में था इसलिए पार्टी छोड़ने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा था। सूत्रों का कहना है कि भाजपा और शिंदे की शिवसेना के बीच गठबंधन के तहत यह सीट शिवसेना को मिलेगी इसीलिए मिलिंद देवड़ा ने शिवसेना को चुना। उल्लेखनीय है कि पिछले दो लोकसभा चुनावों से यहां पर शिवसेना के टिकट पर अरविंद सावंत विजयी होते रहे हैं। अरविंद सावंत चूंकि उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली शिवसेना में बने हुए हैं इसलिए वह उसी पार्टी से फिर से चुनाव लड़ने की तैयारी में हैं जबकि भाजपा गठबंधन की ओर से दक्षिण मुंबई सीट पर मिलिंद देवड़ा का चुनाव लड़ना तय माना जा रहा है।
बहरहाल, पूर्व केंद्रीय मंत्री और दक्षिण मुंबई से पूर्व सांसद मिलिंद देवड़ा कांग्रेस से इस्तीफा देने के साथ ही उन युवा नेताओं की सूची में शामिल हो गए, जिन्होंने अन्य पार्टियों, मुख्य रूप से भाजपा में नयी पारी शुरू करने के लिए इसे छोड़ दिया। यह इस्तीफा उन युवा नेताओं की अनसुनी चिंताओं की निरंतर गाथा का भी संकेत देता है, जिन्हें एक समय कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी का करीबी माना जाता था। नेताओं के पार्टी छोड़ने की हर घटना गांधी परिवार और पार्टी के निचले स्तर के बीच बढ़ती दूरी और नयी पीढ़ी को कमान सौंपने की अनिच्छा से उपजे असंतोष को उजागर करती रही है। देखा जाये तो पुराने मुद्दों का समाधान नहीं होने और पार्टी के भीतर गुटबाजी के कारण राहुल गांधी के करीबी कई होनहार नेताओं को पार्टी छोड़नी पड़ी है।
यह सूची लंबी है और राजस्थान के पूर्व उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट इसके अपवाद हैं, जो शीर्ष नेतृत्व द्वारा किए गए वादे पूरे नहीं होने के बावजूद कांग्रेस में बने रहे। उन्होंने 2020 में राज्य के तत्कालीन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के खिलाफ बगावत कर दी थी, लेकिन बाद में उन्होंने अपने तेवर नरम कर लिये। जहां तक केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया का सवाल है तो आपको याद दिला दें कि कांग्रेस की मध्य प्रदेश इकाई में गुटबाजी को लेकर उन्होंने मार्च 2020 में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) में शामिल होने के लिए कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया था। सिंधिया ने कहा था कि वह वरिष्ठ नेता कमलनाथ से मिलने वाले अपमान को अब और बर्दाश्त नहीं कर सकते। इसी प्रकार जून 2021 में संप्रग के एक अन्य पूर्व मंत्री जितिन प्रसाद ने लोगों के साथ पार्टी की बढ़ती दूरियों का हवाला देते हुए कांग्रेस छोड़ दी थी। इसके बाद पलायन का सिलसिला शुरू हुआ, जिसमें प्रियंका चतुर्वेदी अविभाजित शिवसेना में शामिल हो गईं, गुजरात इकाई के पूर्व कार्यकारी अध्यक्ष हार्दिक पटेल भाजपा में चले गए, महिला कांग्रेस की पूर्व प्रमुख सुष्मिता देव टीएमसी से जुड़ गईं, जबकि पूर्व केंद्रीय मंत्री आरपीएन सिंह, युवा नेता शहजाद जयहिंद और पंजाब कांग्रेस के पूर्व प्रमुख सुनील जाखड़ और पार्टी प्रवक्ता जयवीर शेरगिल भी भाजपा में शामिल हो गए।
वर्ष 2014 के लोकसभा चुनावों के समय कांग्रेस की असम इकाई के कद्दावर नेता हिमंत विश्व शर्मा के पार्टी छोड़ने के साथ भाजपा में जाने का जो सिलसिला शुरू हुआ, वह वास्तव में कभी नहीं रुका और कई बड़े नेताओं के इस्तीफे जारी रहे, यहां तक कि पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह भी 2022 में पंजाब चुनाव से पहले व्यक्तिगत अपमान का हवाला देते हुए भाजपा में चले गए। कांग्रेस छोड़ने वाले नेताओं का कहना रहा है कि राहुल गांधी से मिल पाना असंभव है। यह स्पष्ट रूप से एक अलगाव है और ऐसे में व्यक्ति घुटन महसूस करता है।