देश और महाराष्ट्र की राजनीति में अपना सिक्का जमा चुके शरद पवार आज 83 साल के हो गए हैं। आज यानी की 12 दिसंबर को एनसीपी प्रमुख शरद पवार अपना 83वां जन्मदिन मना रहे हैं। बता दें कि शरद पवार का पूरा नाम गोविंदराव पवार है। कैंसर की लंबी बीमारी के बावजूद शरद पवार की राजनीतिक सक्रियता में किसी भी प्रकार की कमी नहीं आई है। वह न सिर्फ महाराष्ट्र बल्कि देश के सर्वाधिक अनुभवी राजनीतिज्ञों मे से एक हैं। आइए जानते हैं उनके जन्मदिन के मौके पर शरद पवार के जीवन से जुड़ी कुछ रोचक बातों के बारे में...
जन्म और शिक्षा
पुणे जिले के बारामती में 12 दिसंबर 1940 को शरद पवार का जन्म हुआ था। इनके पिता का नाम गोविंदराव पवार बारामती फार्मर्स कोऑपरेटिव में काम किया करते थे। वहीं माता का नाम शारदाबाई पवार था। उन्होंने अपनी शुरूआती शिक्षा महाराष्ट्र एजुकेशन सोसाइटी के एक स्कूल से पूरी की। इसके बाद पुणे विश्वविद्यालय के तहत बृहन् महाराष्ट्र कॉलेज ऑफ कॉमर्स से पढ़ाई पूरी की। पढ़ाई में वह एक औसत छात्र रहे। लेकिन छात्र जीवन से वह राजनीति में काफी सक्रिय थे। शरद पवार द्वारा दिए जाने वाले उत्साहपूर्ण भाषण, गतिविधियों को व्यवस्थित करना आदि उनके नेतृत्व की क्षमता को दर्शाता था।
राजनीतिक सफर की शुरूआत
साल 1956 में शरद पवार द्वारा राजनीति के क्षेत्र में पहला कार्य किया गया। इस दौरान उन्होंने गोवा मुक्ति आंदोलन के समर्थन में सक्रिय भागीदारी की थी। वहीं कॉलेज में उन्होंने छात्रसंघ का चुनाव लड़ा और महासचिव के तौर पर भी कार्य किया। इस तरह से राजनीतिक प्रवेश के साथ वह युवा कांग्रेस के साथ जुड़ गए। इस दौरान शरद पवार की मुलाकात आधुनिक महाराष्ट्र का वास्तुकार माने जाने वाले यशवंतराव चव्हाण से हुई। उन्होंने पवार की क्षमता को पहचाना और वह युवा कांग्रेस के नेता बन गई।
बारामती से बने विधायक
साल 1967 में बारामती का प्रतिनिधित्व करते हुए शरद पवार पहली बार महाराष्ट्र विधानसभा पहुंचे। इसके बाद साल 1972 और 1978 के चुनाव में भी उनको विजय मिली। यशवंत राव चव्हाण के संरक्षण में अपना राजनीतिक करियर शुरू करने वाले पवार ने फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। जब वसंतदादा पाटील महाराष्ट्र के सीएम थे, तब पवार ने कांग्रेस पार्टी को तोड़कर और कुछ विधायकों के साथ मिलकर प्रोग्रेसिव डेमोक्रेटिक फ्रंट पार्टी बनाई। उस दौरान वसंत दादा पाटील भी पवार के संरक्षक थे। 12 विधायकों संग पवार ने खिलाफत कर 18 जुलाई 1978 को सीएम पद की शपथ ली।
बता दें पवार ने कांग्रेस (एस) और जनता पार्टी के समर्थन से अपनी सरकार बनाई थी। वहीं साल 1980 में इंदिरा गांधी ने सत्ता में वापसी करते ही इस सरकार को बर्खाश्त कर दिया था। राजनीति में पवार द्वारा किया गया यह पहला विश्वासघात था। साल 1980 में कांग्रेस सरकार की वापसी के दौरान विधानसभा में पवार विपक्ष के नेता बने। वहीं साल 1987 में उन्होंने पीएम राजीव गांधी की मौजूदगी में एक बार फिर कांग्रेस में शामिल हुए।
दोबारा बने सीएम
साल 1988 में बहुमत पाने के बाद शरद पवार महाराष्ट्र के सीएम बने। वहीं साल 1989 के आम चुनाव में महाराष्ट्र में कांग्रेस पार्टी ने शानदार प्रदर्शन किया। फिर साल 1990 में तीसरी बार शरद पवार राज्य के मुख्यमंत्री बने। बताया जाता है कि राजीव गांधी की हत्या के बाद शरद पवार प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवारों में थे। सोनियां गांधी का वीटो लगने के बाद पीवी नरसिम्हा राव प्रधानमंत्री बनाया गया। यह दर्द पवार को सालों तक बना रहा।
बता दें कि साल 1997 में बारामती लोकसभा से शरद पवार राष्ट्रीय चुनाव में पहुंचे। उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव सीताराम केसरी के खिलाफ लड़ा, लेकिन इस चुनाव में उन्हें हार मिली। फिर उन्होंने रिपब्लिकन पार्टी और समाजवादी पार्टी के साथ मिलकर राज्य में राजनीतिक समीकरण बनाया। इस दौरान कांग्रेस 48 में से 37 सीटें जीतने में सफल रही।
कांग्रेस पार्टी से बगावत
एक बार कांग्रेस पार्टी से बगावत करने के दौरान पवार समेत 3 नेताओं को 6 साल के लिए पार्टी से निष्कासित कर दिया गया। फिर साल 1999 में तीनों ने मिलकर काष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी यानी की एनसीपी बनाई। हांलाकि राज्य विधानसभा में किसी भी राजनैतिक दल को बहुमत नहीं मिला। तब कांग्रेस के साथ मिलकर एनसीपी ने सरकार बनाई। वहीं कांग्रेस नेता विलासराव देशमुख राज्य के सीएम बने। तमाम राजनीतिक अवसरों पर शरद पवार अपने हिसाब से चलते रहे। लेकिन शरद पवार की यह राजनीति कभी भी मजबूत भरोसे के लायक नहीं बन सकी।