New Delhi: चयनकर्ताओं ने फेरा मुंह... Playr of the match जीतने के बाद सिर्फ एक टेस्ट खेल सका भारतीय स्पिनर

New Delhi: चयनकर्ताओं ने फेरा मुंह... Playr of the match जीतने के बाद सिर्फ एक टेस्ट खेल सका भारतीय स्पिनर

साल 2004 की बात है. भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच मुंबई में एक टेस्ट मैच हुआ. लो स्कोरिंग मैच जिसमें भारत ने पहली पारी में 104 और दूसरी पारी में 205 रन बनाए. ऑस्ट्रेलिया को जीत के लिए 107 रन का लक्ष्य मिला. वानखेड़े की धीमी पिच पर स्पिनर कहर बरपा रहे थे. भारत को अनिल कुंबले हरभजन सिंह की जोड़ी से बड़ी उम्मीद थी. लेकिन सबसे ज्यादा विकेट किसी और गेंदबाज ने लिए. बाएं हाथ के इस स्पिनर ने भारत को वह मैच जिता दिया, जो लगभग विरोधी की झोली में जा चुका था. उसने पहली पारी में 4 और दूसरी पारी में 3 विकेट लिए. कोई शक नहीं उसे ही प्लेयर ऑफ द मैच चुना गया. लेकिन यह मैच उसके करियर का सेकंड लास्ट टेस्ट साबित हुआ.

बहुत सारे क्रिकेटप्रेमियों ने अंदाजा लगा लिया होगा कि हम मुरली कार्तिक की बात कर रहे हैं. प्लेयर ऑफ द मैच जीने के बाद मुरली कार्तिक को सिर्फ एक टेस्ट मैच में मौका मिला, जिसमें उन्होंने 2 विकेट लिए. कानपुर में खेले गए इस मैच की पिच बल्लेबाजों के लिए ऐशगाह साबित हुई. भारत-दक्षिण अफ्रीका के बीच खेला गया यह टेस्ट ड्रॉ खत्म हुआ. इसके बाद चयनकर्ताओं ने कार्तिक से जो मुंह फेरा तो दोबारा पलटकर नहीं देखा. नतीजा मुरली कार्तिक का टेस्ट करियर सिर्फ 8 मैच के बाद खत्म हो गया.

मुरली कार्तिक की गिनती 2000 के दशक में बाएं हाथ के सबसे बेहतरीन भारतीय स्पिनरों में होती थी. लेकिन वे सिर्फ 8 टेस्ट खेल पाए. इन 8 में से दो मैचों में मुरली, ऑफ स्पिनर हरभजन सिंह के साथ खेले. इन मैचों में दोनों का प्रदर्शन एक जैसा रहा. मुरली और हरभजन दोनों ने ही इन 2 मैचों में 9-9 विकेट लिए. मुरली कार्तिक लेग स्पिनर अनिल कुंबले के साथ भी 6 टेस्ट मैच खेले, जिसमें जंबो का प्रदर्शन काफी बेहतर रहा.

यह मुरली कार्तिक की बदकिस्मती ही कही जाएगी कि वो उस दौर के बाएं हाथ के सबसे बेहतरीन स्पिनर थे, जिस वक्त भारत के पास अनिल कुंबले और हरभजन सिह भी थे. इस कारण मुरली चयनकर्ताओं से लेकर टीम मैनेजमेंट, और कप्तान सौरव गांगुली की नजर में टीम के तीसरे बेस्ट स्पिनर रहे. यह वो दौर था जब भारत ज्यादातर मैचों में 2 स्पेशलिस्ट स्पिनरों के साथ खेलता था क्योंकि टीम में सचिन तेंदुलकर और वीरेंद्र सहवाग के तौर पर बेहतरीन विकल्प हुआ करते थे.

एक और बात जो मुरली कार्तिक के खिलाफ गई वह थी दादा की कप्तानी. दरअसल सौरव गांगुली स्पिनरों के खिलाफ बहुत अच्छा खेलते थे. खासकर यदि वह बाएं हाथ का स्पिनर है तो उसकी शामत ही समझिए. टीम इंडिया को नजदीक से जानने वाले कहते हैं कि सौरव गांगुली नेट प्रैक्टिस में मुरली कार्तिक को बड़ी आसानी से खेलते थे. इस कारण भी कप्तान को लगता था कि मुरली कार्तिक उतने असरदार साबित नहीं होंगे, जितने हरभजन या अनिल कुंबले. और यही बात मुरली कार्तिक के खिलाफ चली गई.

मुरली कार्तिक ने साल 2000 में डेब्यू किया. उन्होंने इस साल 4 टेस्ट खेले. इसके बाद 2004 में भी 4 टेस्ट मैच खेले. उनका ओवरऑल करियर 8 टेस्ट, 37 वनडे और 1 टी20 इंटरनेशनल मैचों का रहा. उन्होंने 8 टेस्ट में 24 और 37 वनडे में 37 विकेट ही लिए. उन्हें ज्यादातर तभी मौका मिला जब या तो अनिल कुंबले या हरभजन सिंह चोटिल रहे.

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