दस साल पहले पिता की हत्या हुई थी. खनन माफिया ने घर में घुसकर दिनदहाड़े इस वारदात को अंजाम दिया था. इस घटना के एक साल के अंदर ही छोटे भाई का भी शव रेलवे ट्रैक पर मिला. इन दोनों घटनाओं के बाद उनके मन में बदले का भाव तो जागा, लेकिन बंदूक नहीं उठाई, बल्कि कानून की पढ़ाई की. पिता और भाई के मामले की पैरवी खुद करते हुए अब पिता के हत्यारोपियों को आजीवन कारावास की सजा कराई है. आपको लग सकता है कि यह किसी फिल्म का स्क्रिप्ट हो, लेकिन ऐसा नहीं है.
यह नोएडा में रायपुर के रहने वाले एडवोकेट आकाश चौहान की अपनी कहानी है. दरअसल आकाश चौहान के पिता पाले राम चौहान सामाजिक कार्यकर्ता थे. उन्होंने यमुना में हो रहे अवैध खनन को रोकने के लिए सड़क से लेकर कोर्ट तक लड़ाई लड़ी. स्थानीय स्तर पर सुनवाई नहीं हुई तो वह 2012 में उच्च न्यायालय पहुंच गए. इस बात से नाराज खनन माफिया ने 31 जुलाई 2013 को दिन दहाड़े उनके घर में घुसकर गोली मार दी.
इस घटना के करीब 10 महीने बाद ही आकाश के छोटे भाई का भी शव दिल्ली के नरेला एरिया में रेलवे ट्रैक पर मिला. आकाश कहते हैं कि उन्होंने इन दोनों घटनों को लेकर पुलिस के खूब चक्कर काटे, लेकिन पुलिस ने गंभीरता से नहीं लिया. उन्हीं दिनों किसी माध्यम से उन्होंने पूर्व पीपी (सरकारी वकील) केके सिंह से संपर्क किया और फिर उन्हीं की सलाह पर अपनी जमी जमाई नौकरी छोड़ दी. उस समय वह दिल्ली की एक कंपनी में नौकरी करते थे. घर लौटने के बाद आकाश ने ग्रेटर नोएडा के एक कॉलेज से एलएलबी किया. उसके बाद रजिस्ट्रेशन कराकर खुद ही अपने पिता की हत्या के मामले में पैरवी शुरू की.
कोर्ट में उन्हें केके सिंह का भी साथ मिला और दस साल के कठोर संघर्ष के बाद अब चार में से दो आरोपियों राजपाल चौहान और उसके एक बेटे को आजीवन कारावास की सजा कराई है. वहीं दो अन्य आरोपियों को अदालत ने सबूतों के अभाव में बरी कर दिया है. इस फैसले के बाद आकाश ने कहा कि उनका माफिया से कोई पुरानी दुश्मनी नहीं थी, लेकिन उसने पिता की हत्या की तो मजबूरी में उसके खिलाफ खड़ा होना पड़ा.