मानव इतिहास में शायद यह पहला उदाहरण होगा जब जीवनदायी हॉस्पिटल युद्ध का मैदान बना हो। दरअसल इजरायल हमास युद्ध में यही हो रहा है। आज गाजा पट्टी का अल शिफा हॉस्पिटल रणक्षेत्र बन गया है। इसके लिए अकेले इजरायल को दोष देना किसी भी दृष्टि से सही नहीं ठहराया जा सकता वहीं हॉस्पिटल को युद्ध का मैदान बनाना भी किसी भी तरह से उचित नहीं माना जा सकता। पर जो परिस्थितियां सामने आ रही हैं उसने हालात ही ऐसे बना दिए हैं। इजरायल दावा कर रहा है कि अस्पताल परिसर में आतंकवादी गतिविधियों के बुनियादी ढांचे के संकेत मिले हैं। इजरायल का दावा है कि अस्पताल के नीचे हमास का मुख्यालय और कमांड सेंटर है और यहां से आतंकवादी गतिविधियों का संचालन हो रहा है। वहां से भारी मात्रा में हथियारों का जखिरा भी मिला है। वहीं दूसरी और निर्दोष नागरिक जान गंवा रहे हैं। इजरायल के सामने यहां दोहरा संकट है। एक और तो निर्दोष नागरिकों को बचाना है तो दूसरी और आतंकवादी गतिविधियों पर प्रभावी कार्यवाही करना भी है। दुनिया के देश भी दो खेमे में बट चुके हैं। एक ओर जहां हॉस्पिटल क्षेत्र में सैन्य कार्यवाही के लिए इजरायल को दोषी ठहराया जा रहा है तो दूसरी और हमास की आतंकवादी गतिविधियों को दोषी ठहराया जा रहा है।
दरअसल 7 अक्टूबर को हमास ने जिस तरह से इजरायल पर मात्र 20 मिनट में पांच हजार से ज्यादा राकेट दाग कर इजरायल सहित सारी दुनिया को सकते में ला दिया था। इजरायल के सामने अब दोहरा संकट आ गया है। दरअसल जिस तरह से हमास का हमला हुआ उससे इजरायल ही नहीं अपितु सारी दुनिया सकते में आ गई। इसका कारण भी है। इजरायल की सुरक्षा व्यवस्था, सूचना तंत्र, प्रतिरक्षा और सैन्य व्यवस्था का सारी दुनिया लोहा मानती रही है। हमास द्वारा अचानक एक साथ पांच हजार राकेट दागना और उसके बाद लगातार एक दूसरे से युद्ध जारी रहना इजरायल के सामने बड़ी चुनौती के रूप में उभरे हालात हैं। इजरायल सीधे सीधे इसे अपनी तौहीन समझ रहा है तो उसकी प्रतिष्ठा पर दुनिया के देशों के सामने आंच आई है। जानकारों की मानें तो हमास के इस हमले में ईरान का हाथ है। ईरान नहीं चाहता कि इजरायल और सऊदी अरब के बीच आपसी सुलह हो जबकि अमेरिका दोनों देशों के बीच सुलह या यों कहें की सहमति करवाना चाहता है। एक तरह से ईरान अमेरिकी प्रयासों को विफल करने में जुटा है। दरअसल हमास फिलिस्तीनी राजनीतिक व सैन्य संगठन है। यह भी कहा जा सकता है कि फिलिस्तीन का चरम पंथी सैन्य संगठन है। 1987 के बाद यह संगठन अस्तित्व में आया है और यह अपने आप में एक शक्तिशाली चरमपंथी संगठन के रूप में विकसित हो चुका है। गाजा पट्टी जानकारों की मानें तो इस क्षेत्र में हमास ने सुरंगों का जाल बिछा रखा है। कौन सा मेन होल या दरवाजा किस सुरंग का रास्ता है यह पता करना आसान नहीं है वहीं सुरंगों का यह जाल पूरे क्षेत्र में फैला हुआ है। अनजाने में यहां प्रवेश करना भी घातक इस मायने में है कि कब कहां विस्फोट हो जाए अंदाज भी नहीं लगाया जा सकता। जानकारों की मानें तो गाजा पट्टी क्षेत्र में चारों तरफ सुरंगों का नेटवर्क फैला हुआ है और यहां से चरमपंथी गतिविधियों के साथ ही रणनीति तैयार करने से लेकर उसे अंजाम देने का नेटवर्क संचालित हो रहा है।
माना जा रहा था कि इजरायल के आगे हमास अधिक दिन तक संघर्ष नहीं कर पायेगा पर इसके उलट लगभग 40 दिन से अधिक होने के बाद भी जंग कम होने का नाम ही नहीं ले रही है। हमास की ताकत को भी कमतर आंकने की गलती इस मायने में नहीं की जा सकती कि वह 40 दिनों से संघर्ष करते हुए अभी पीछे हटने को तैयार नहीं है तो दूसरी और इजरायल ने भी अब हमास को पूरी तरह तहस नहस करने का मन बना लिया है। एक के बाद एक ताबड़तोड़ कार्यवाही हो रही है। 40 दिनों में दोनों तरफ से 13 हजार से अधिक लोगों के मरने के समाचार हैं। इनमें निर्दोष और बच्चों तक के मरने के समाचार हैं।
दरअसल हॉस्पिटल का युद्ध क्षेत्र में तब्दील होना अपने आप में गंभीर है। इसे किसी भी हालात में सही नहीं ठहराया जा सकता। 1949 के जिनेवा कन्वेंशन के अनुसार शिक्षा संस्थान यानी की स्कूल, हॉस्पिटल और धार्मिक स्थानों को युद्ध के लिहाज से सुरक्षित क्षेत्र घोषित किया गया है। दुनिया के देश इसी का हवाला देते हुए इजरायल की आलोचना कर रहे हैं तो इजरायल का कहना है कि हमास हॉस्पिटल को सुरक्षा ढ़ाल बनाकर आतंकवादी गतिविधियों को संचालित कर रहा है। इजरायल का यह भी दावा है कि उसके द्वारा 12 घंटे का नोटिस देकर इस क्षेत्र को आतंकवादी गतिविधि मुक्त करने को कहे जाने के बाद भी कोई असर नहीं पड़ रहा है। इजरायल का यह भी कहना है कि हमास द्वारा आतंकवादी गतिविधियों के संचालन के लिए अस्पताल क्षेत्र का उपयोग इंटरनेशनल लॉ का खुलेआम उल्लंघन है। उसका यह भी दावा है कि अस्पताल में आवश्यक उपकरण, दवाएं आदि उपलब्ध कराए जा रहे हैं ताकि अस्पताल की गतिविधियां सुचारू रुप से संचालित हो सकें।
सवाल यह नहीं है कि कौन गलत है या कौन सही? सवाल सीधा सीधा यह हो जाता है कि किसी भी देश या संगठन को नैतिकता के सामान्य सिद्धांतों और इंटरनेशनल मानकों की अवहेलना की अनुमति नहीं दी जा सकती। दुनिया के देशों के सामने एक बात यह भी साफ हो जानी चाहिए कि आपसी संघर्ष अब कुछ घंटों या दिनों में समाप्त होने वाला नहीं रह गया है। शक्तिशाली रूस और यूक्रेन का युद्ध इसका उदाहरण है तो हमास इजरायल संघर्ष भी इसी दिशा में बढ़ता हुआ उदाहरण है। एक समय था जब यह माना जाने लगा था कि भविष्य के युद्ध चंद घंटों के होंगे लेकिन वह मिथक पूरी तरह से टूट गया है। ऐसे में वसुधैव कुटुंबकम का भारतीय संदेश ही सही मायने में कारगर हो सकता है। इसी में शांति और सद्भावना का संदेश छिपा है। इसी में मानवता की भलाई है।
इंटरनेशनल हालातों से एक बात और साफ हो गई है कि यूएनओ अपना वर्चस्व व पहचान खोता जा रहा है। यूएनओ की दशा और दिशा दोनों पर ही मंथन की आवश्यकता हो गई है। जब अस्पताल जैसे क्षेत्र आतंकवादी गतिविधियों और सैन्य प्रतिक्रिया के केन्द्र बनते जा रहे हैं तो इंटरनेशनल लॉ और सहमति व उसकी बात करना बेमानी होगा। कौन दोषी है या कौन निर्दोष इससे इतर दुनिया के देशों, बुद्धिजीवियों, शांतिवादी शक्तियों व गैरसरकारी संगठनों को आगे आकर इस पर गंभीर चिंतन-मनन करना होगा।