मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में सीट शेयरिंग पर सहमति नहीं बनने के चलते कांग्रेस के साथ समाजवादी पार्टी के रिश्ते बिगड़ गए हैं, जिसका असर एमपी के साथ-साथ उत्तर प्रदेश की सियासत में भी दिखने लगा है. एमपी चुनाव में कांग्रेस को करारा जवाब देने और अपनी राजनीतिक हैसियत बताने के लिए सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने एक पुराने साथी के साथ दोस्ती कर ली है. सपा ने एक बार फिर से महान दल के साथ हाथ मिला लिया है और एमपी के साथ यूपी में भी 2024 के चुनाव लड़ने की रणनीति बनाई है.
एमपी में कांग्रेस की ओर से सपा के लिए सीटें नहीं छोड़ना अखिलेश यादव के लिए बड़ा झटका सा रहा. कांग्रेस के रवैए से नाराज अखिलेश यादव ने 23 अक्टूबर को महान दल के प्रमुख केशवदेव मौर्य से मुलाकात की. इस दौरान मध्य प्रदेश में मिलकर चुनाव लड़ने को लेकर रणनीति बनाई गई. महान दल और सपा अब एमपी में 71 सीटों पर चुनाव लड़ रहे हैं. एमपी की पृथ्वीपुर, टीकमगढ़, मुरैना और सबलगढ़ सीट महान दल को मिली है, लेकिन इन चारों ही सीटों पर वो सपा के सिंबल पर चुनाव लड़ रही है जबकि बाकी सीट पर सपा के उम्मीदवार हैं.
2022 में यूपी चुनाव में भी थे साथ
बता दें कि उत्तर प्रदेश में 2022 विधानसभा चुनाव में भी सपा और महान दल एक साथ थीं. महान दल के दो प्रत्याशी सपा के सिंबल पर ही चुनाव लड़े थे, लेकिन नतीजे के बाद दोनों के रास्ते अलग-अलग हो गए थे. महान दल के अध्यक्ष केशवदेव मौर्य ने सपा के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था. यही नहीं महान दल ने 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए बहुजन समाज पार्टी (बसपा) को समर्थन देने का ऐलान किया था और अखिलेश यादव के खिलाफ ओम प्रकाश राजभर की तरह जुबानी हमले भी तेज कर दिए थे. ऐसे में चुनाव के दौरान महान दल के प्रमुख केशवदेव मौर्य से गिफ्ट की गई फॉर्च्यूनर कार को अखिलेश यादव ने वापस ले ली थी, जिसको लेकर काफी चर्चा हुई थी.
नई सियासी रणनीति तय होने के बाद केशवदेव मौर्य ने कहा कि सियासत में कोई स्थायी न तो दुश्मन होता है और न ही दोस्त. राजनीतिक परिस्थितियों के हिसाब से दोस्त-दुश्मन तय होते हैं. एमपी में हमें और सपा दोनों को एक दूसरे की जरूरत थी. कांग्रेस से सीटें न मिलने के बाद सपा को हमारी तो हमें भी एक सहयोगी दल की जरूरत थी. इसीलिए सारे गिले-शिकवे भुलाकर एक साथ आए हैं और एमपी ही नहीं बल्कि यूपी में भी चुनाव लड़ेंगे. उन्होंने कहा कि पीडीए फॉर्मूले को लेकर अखिलेश यादव चल रहे हैं जबकि कांग्रेस और बीजेपी दोनों ही दलित-पिछड़े विरोधी हैं. ऐसे में सपा के साथ जाने का अलावा कोई दूसरी विकल्प मेरे पास नहीं था.
अखिलेश हमारा सम्मान करेंगेः केशव मौर्य
उन्होंने बताया कि एमपी में महान दल के चारों प्रत्याशी सपा के सिंबल पर चुनाव लड़ रहे हैं, क्योंकि हमें कोई निशान आवंटित नहीं है. 2024 के लोकसभा चुनाव को लेकर अभी कोई बात नहीं हुई है, लेकिन सपा के साथ यूपी में मिलकर चुनाव लड़ेंगे. लोकसभा में सीट को लेकर अभी बात नहीं हुई, लेकिन हमें भरोसा है कि अखिलेश यादव हमारी पार्टी का सम्मान रखेंगे. यूपी में भी हम सपा के सिंबल पर चुनाव लड़ने के लिए तैयार हैं. अखिलेश यादव ने भरोसा दिया है कि इस बार किसी तरह का कोई भेदभाव नहीं किया जाएगा तो हमें भी उन पर विश्वास है. केशवदेव मौर्य ने कहा कि हमारे समाज का यूपी में 8 से 10 फीसदी वोट है, जिसे एकजुट करने के लिए पूरी ताकत लगा देंगे.
महान दल का सियासी प्रभाव ओबीसी के मौर्य और कुशवाहा जैसी जातियों के बीच है. यूपी और एमपी दोनों ही राज्यों में कुशवाहा-मौर्य समाज का वोटबैंक काफी अहम है. कुशवाहा, शाक्य, मौर्य, सैनी, कम्बोज, भगत, महतो, मुराव, भुजबल और गहलोत जातियां आती हैं. यूपी में यह आबादी करीब छह फीसदी है जबकि एमपी में चार फीसदी के आसपास है. महान दल का जनाधार यूपी में बरेली, बदायूं, शाहजहांपुर, एटा, पीलीभीत, मुरादाबाद और मैनपुरी जैसे जिलों में है तो मध्य प्रदेश में यूपी से सटे जिलों में है.
मध्य प्रदेश में खासकर बुंदेलखंड और ग्वालियर-चंबल बेल्ट में कुशवाहा, मौर्य, शाक्य और सैनी समाज के वोटर्स अच्छी खासी संख्या में हैं. सपा इसीलिए एमपी और यूपी में गठबंधन की रूपरेखा बनाई है. एमपी के इसी इलाके में यादव वोटर्स भी हैं, जिसे सपा अपना कोर वोटबैंक मानती है. यादव-मौर्य वोट को अगर अखिलेश यादव और केशवदेव मौर्य जोड़ने में सफल रहते हैं तो कई सीटों पर कांग्रेस का सियासी गणित गड़बड़ा सकता है. सपा 2003 में इसी समीकरण के दम पर सात सीटें जीतने में सफल रही थी. अब देखना है कि सपा यूपी और एमपी में कांग्रेस के साथ कैसा हिसाब करती है?