सरकारों के तमाम दावों के बावजूद देश में नहीं सुधर रहे हैं सीवर सफाई कर्मियों के हालात

सरकारों के तमाम दावों के बावजूद देश में नहीं सुधर रहे हैं सीवर सफाई कर्मियों के हालात

देश में सीवर की सफाई के दौरान होने वाली मौत की घटनाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने गंभीर रुख अपनाया है। सुप्रीम कोर्ट ने गत दिनों केन्द्र व सभी राज्य सरकारों को निर्देशित किया है कि सरकारी अधिकारियों को मरने वालों के परिजनों को 30 लाख रुपये का मुआवजा देना होगा। न्यायमूर्ति एस. रवींद्र भट और न्यायमूर्ति अरविंद कुमार की पीठ ने कहा कि सीवर की सफाई के दौरान स्थायी दिव्यांगता का शिकार होने वालों को न्यूनतम मुआवजे के रूप में 20 लाख रुपये का भुगतान किया जाएगा। पीठ ने कहा कि केंद्र और राज्य सरकारों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि हाथ से मैला ढोने की प्रथा पूरी तरह खत्म हो जाए।

फैसला सुनाते हुए न्यायमूर्ति भट ने कहा कि यदि सफाईकर्मी अन्य दिव्यांगता से ग्रस्त है तो अधिकारियों को उसे 10 लाख रुपये तक का भुगतान करना होगा। इस दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कई निर्देश जारी भी किए। पीठ ने निर्देश दिया कि सरकारी एजेंसियों को यह सुनिश्चित करने के लिए समन्वय करना चाहिए कि ऐसी घटनाएं न हों और इसके अलावा उच्च न्यायालयों को सीवर से होने वाली मौतों से संबंधित मामलों की निगरानी करने से न रोका जाए। कोर्ट का यह फैसला एक जनहित याचिका पर आया है।

प्रतिबंध के बावजूद आज भी भारत में गंदी नालियों और सेप्टिक टैंकों की सफाई इंसानों द्वारा हाथों से की जाती है। सरकारी आंकड़ों से पता चला है कि पिछले पांच सालों में इस तरह की सफाई करने के दौरान 347 लोगों की मौत हो गई। लोक सभा में सामाजिक न्याय मंत्रालय से पूछे गए एक सवाल के जवाब में मंत्रालय ने माना है कि भारत में इंसानों से गंदे नालों और सेप्टिक टैंकों को साफ करवाने की प्रथा अभी भी जारी है और इसमें सैंकड़ों लोगों की जान जा रही है। मंत्रालय ने बताया कि इस खतरनाक काम को करने के दौरान 2017 में 92, 2018 में 67, 2019 में 116, 2020 में 19, 2021 में 36 और 2022 में 17 सफाई कर्मियों की जान जा चुकी है।

देश के 18 राज्यों के आंकड़े मंत्रालय के पास हैं। इन आंकड़ों के मुताबिक इन पांच सालों में इस तरह की सफाई के दौरान सबसे ज्यादा उत्तर प्रदेश में 51 लोग मारे गए। उसके बाद तमिलनाडु में 48 लोग, राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली में 44 लोग, हरियाणा में 38 लोग, महाराष्ट्र में 34 लोग और गुजरात में 28 लोग मारे गए हैं। लेकिन लोगों का कहना है कि सीवर में मरने वालों की संख्या सरकारी आंकड़ों से कई गुना अधिक है।

इस प्रथा को बंद करने की मांग करने वाले लोगों का कहना है कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि देश में आज भी गंदे नालों और सेप्टिक टैंकों की सफाई इंसानों से करवाई जाती है। सीवर सफाई के दौरान हादसों में मजदूरों की दर्दनाक मौतों की खबरें आती रहती हैं। अधिकांश जगह आज भी मजदूर सीवर की बिना मास्क, ग्लब्स और सुरक्षा उपकरणों के सफाई करते हैं। सीवर की सफाई करने वालों की मौत होने के साथ ही उन पर निर्भर परिवार भी बेसहारा हो जाता है। परिवार की आमदनी का जरिया अचानक से बंद हो जाता है। देश में जाम सीवर की मरम्मत करने के दौरान प्रतिवर्ष दम घुटने से काफी लोग मारे जाते हैं। इससे पता चलता है कि हमारी गंदगी साफ करने वाले हमारे ही जैसे इंसानों की जान कितनी सस्ती है। सीवर सफाई के काम में लगे लोगों को सामाजिक उपेक्षा का भी सामना करना पड़ता है।

देश में पिछले एक वर्ष में सीवर की सफाई करने के दौरान 200 से अधिक व्यक्तियों की मौत हो चुकी है। इस अमानवीय त्रासदी में मरने वाले अधिकांश लोग असंगठित दैनिक मजदूर होते हैं। इस कारण इनके मरने पर कहीं विरोध दर्ज नहीं होता है। देश में करीबन 27 लाख सफाई कर्मचारी कार्यरत हैं। जिसमें से 20 लाख ठेके पर काम करते हैं। एक सफाईकर्मी की औसतन कमाई 7 से 10 हजार रुपये प्रति माह तक होती है। गंदगी में काम करने से आधे से अधिक सफाई कर्मी तो कई बीमारियों से पीड़ित हो जाते हैं। इस कारण अधिकांश गटर साफ करने वाले लोगों की कम उम्र में ही मौत हो जाती है। गटर साफ करने वाले लोगों के लिये बीमा की भी कोई सुविधा नहीं होती है।

आमतौर पर सीवर में उतरने से पहले सफाईकर्मी शराब पीते है। शराब पीने के बाद शरीर में ऑक्सीजन की कमी हो जाती है। तभी सीवर में उतरते ही इनका दम घुटने लगता है। सफाई का काम करने के बाद उन्हें नहाने के लिए साबुन, नहाने तथा पीने का स्वच्छ पानी उपलब्ध करवाने की जिम्मेदारी भी कार्यकारी एजेंसी की होती है। इसके बावजूद ये उपकरण और सुविधाएं इनको अभी तक नहीं मिल पा रही हैं। 

सुप्रीम कोर्ट ने इससे पूर्व भी कई बार सीवर में होने वाली मौतों पर चिंता जताने के साथ ही सख्त टिप्पणी की थी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि देश में आज भी जाति के आधार पर भेदभाव किया जाता है। मनुष्य के साथ मनुष्य द्वारा इस तरह का व्यवहार किया जाना सबसे अधिक अमानवीय आचरण है। इन परिस्थितियों में बदलाव होना चाहिए। दुनिया के किसी भी देश में लोगों को इस तरह के गैस चैम्बरों में मरने के लिये नहीं भेजा जाता है। कोर्ट ने कहा था कि संविधान में प्रावधान है कि सभी मनुष्य समान हैं। लेकिन उन्हें समान सुविधाएं उपलब्ध नहीं करवाई जाती है।

कोर्ट के निर्देशों के अनुसार सीवर की सफाई करने वाली एजेंसी के पास सीवर लाईन के नक्शे, उसकी गहराई से सम्बंधित आंकड़े होना चाहिए। सीवर सफाई के काम में लगे लोगों की नियमित स्वास्थ्य की जांच, नियमित प्रशिक्षण देने के नियम का पालन होता कहीं नहीं दिखता है। सभी सरकारी दिशा-निर्देशों में दर्ज है कि सीवर सफाई करने वालों को गैस-टेस्टर, गंदी हवा को बाहर फेंकने के लिए ब्लोअर, टॉर्च, दस्ताने, चश्मा और कान को ढंकन का कैप, हैलमेट मुहैया करवाना आवश्यक है। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग भी इस बारे में कड़े आदेश जारी कर चुका है। इसके बावजूद ये उपकरण और सुविधाएं गायब हैं। सीवर लाइनों की लंबाई तो हर दिन बढ़ रही है। वहीं सफाई करने वालों की संख्या में कमी की जा रही है।

मैनुअल स्केवेंजर्स का रोजगार और शुष्क शौचालय का निर्माण (निषेध) अधिनियम के तहत भारत में हाथ से मैला ढोने की प्रथा को 2013 में ही प्रतिबंधित कर दिया गया था। लेकिन इस कानून में कुछ शर्तों के साथ गंदे नालों और सेप्टिक टैंकों की इंसानों द्वारा सफाई कराने की इजाजत है। इन शर्तों के तहत सफाई के लिए पर्याप्त सुरक्षा उपकरणों का इस्तेमाल अनिवार्य है। लेकिन अक्सर नियमों का पालन नहीं किया जाता है।

राजस्थान में सीकर जिले के फतेहपुर में सीवरेज की खुदाई के दौरान हुई तीन मजदूरों की मौत के मामले में अपर जिला न्यायाधीश ने एक ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुये कंपनी के इंजीनियर सहित तीन लोगों को गैर इरादतन हत्या का दोषी मानते हुये दस-दस साल के कारावास की सजा सुनाई थी। कोर्ट ने माना कि काम कर रहे मजदूरों के लिए सुरक्षा का इंतजाम करना कम्पनी की जिम्मेदारी थी। उस दिन कम्पनी की ओर से सीवरेज का काम किया जा रहा था। वहां सुरक्षा संबंधी पर्याय उपाय नहीं करने के कारण तीन मजदूरों को जान गंवानी पड़ी थी।

हाथों से सीवर की सफाई करने के कार्य को देश में प्रतिबंधित किये जाने के उपरान्त भी किया जा रहा है। देश की सर्वोच्च अदालत ने सीवर की सफाई करने वालों की सुध लेते हुये केन्द्र व राज्य सरकारों की जमकर खिंचाई तो की है। मगर कोर्ट के निर्देशों का सरकारों पर कितना असर होता है। इसका पता तो आने वाले समय में ही चल पायेगा। बहरहाल आज भी सीवर में सफाई कर्मियों के मरने का सिलसिला लगातार जारी है।


-रमेश सर्राफ धमोरा

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