Azam Khan की आखिरी उम्मीद भी खत्म, क्या जौहर यूनिवर्सिटी को टेकओवर करेगी योगी सरकार?

Azam Khan की आखिरी उम्मीद भी खत्म, क्या जौहर यूनिवर्सिटी को टेकओवर करेगी योगी सरकार?

यूपी सरकार की ओर से जौहर अली ट्रस्ट को हफ़्ते भर में रामपुर पब्लिक स्कूल ख़ाली करने का नोटिस भेजा गया है. समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता आज़म खान इस ट्रस्ट के अध्यक्ष हैं. नोटिस में समाजवादी पार्टी ऑफिस भी ख़ाली करने को कहा गया है. अब इस पर यूपी सरकार का क़ब्ज़ा होगा. रामपुर के डीएम की जांच के बाद सरकार ने ये फ़ैसला लिया है. जांच में पाया गया है कि आज़म खान ने अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर गैर कानूनी तरीके से जमीन लीज पर ली थी. योगी सरकार ने कैबिनेट की बैठक के बाद इस लीज़ को रद्द कर दिया था.

मौलाना अली जौहर यूनिवर्सिटी, आजम खान का ड्रीम प्रोजेक्ट माना जाता है. इसके लिए उन पर नियम क़ानून को ताक पर रखकर इसे बनवाने के आरोप लगते रहे हैं. रामपुर में बने इस यूनिवर्सिटी के वे आजीवन चांसलर भी हैं. मुलायम सिंह यादव की सरकार में इसका शिलान्यास हुआ था और अखिलेश यादव की सरकार में इस विश्वविद्यालय का उद्घाटन हुआ था. उस समय यूपी की पूरी कैबिनेट रामपुर में मौजूद थी. उन दिनों आज़म खान यूपी के मिनी चीफ़ मिनिस्टर माने जाते थे. समाजवादी पार्टी से लेकर सरकार में यही कहा जाता था ‘आज़म साहेब जो कहें वही सही’. वक्त का पहिया ऐसा घूमा कि अब आजम खान जेल में हैं. जौहर यूनिवर्सिटी बचेगा या फिर ये भी रामपुर पब्लिक स्कूल की तरह यूपी सरकार के पास चला जाएगा! लोगों के मन में अब यही सवाल उठ रहा है. आज़म खान के विरोधी और उनके समर्थक भी इसी सवाल का जवाब तलाश रहे हैं.

चौतरफा घिरे हुए हैं आजम खान

आजम खान अपने सबसे मुश्किल दौर में हैं. कहते हैं मुसीबत अकेले नहीं आती, वो चारों तरफ़ से आती हैं. आज़म खान अभी सीतापुर जेल में हैं. विधायक रहे उनके छोटे बेटे अब्दुल्ला आज़म भी हरदोई जेल में बंद हैं. आज़म खान की बीवी और राज्य सभा सांसद रहीं तंजीन फ़ातिमा रामपुर जेल में हैं. अब्दुल्ला आज़म के दो दो बर्थ सर्टिफिकेट होने के आरोप में कोर्ट ने तीनों को सात-सात साल की सजा सुनाई है. अभी अब्दुल्ला के दो पैन कार्ड और पासपोर्ट का केस भी अदालत में चल रहा है. आज की तारीख़ में आज़म खान के परिवार का कोई भी सदस्य न तो विधायक हैं और न ही सांसद. आजम खान दस बार विधायक और एक एक बार राज्य सभा और लोकसभा के सांसद रहे. पर अब आज़म खान राजनीति में किनारे लगने लगे हैं. अदालत से सजा होने के कारण वे चुनाव भी नहीं लड़ सकते हैं. हाल के दिनों में वे कहने लगे थे अब तो बस मेरी आख़िरी उम्मीद जौहर यूनिवर्सिटी रह गई है. लेकिन संकेत मिल रहे हैं कि अब जौहर यूनिवर्सिटी भी इनके हाथ से जा सकता है. अगर ऐसा हुआ तो आज़म खान का सब कुछ ख़ाक में मिल जाएगा.

मौलाना अली जौहर यूनिवर्सिटी विवाद?

यूनिवर्सिटी बनाने के लिए आजम खान ने सबसे पहले मौलाना अली जौहर ट्रस्ट बनाया. वे खुद इसके संस्थापक और आजीवन अध्यक्ष बन गए. उन्होंने अपनी पत्नी तंजीन फ़ातिमा को सचिव बनाया. आज़म खान ने अपने दोनों बेटों अब्दुल्ला आज़म और अदीब को ट्रस्ट का मेंबर बना दिया. उन्होंने छह और अपने करीबी लोगों को भी इस ट्रस्ट में शामिल कर लिया. इसके बाद उन्होंने जौहर यूनिवर्सिटी के लिए ज़मीन लेने का काम शुरू किया. रामपुर प्रशासन ने कुछ शर्तों के साथ जौहर ट्रस्ट को ज़मीन लेने की अनुमति दी. जानकारी के मुताबिक़ 560 एकड़ ज़मीन में मौलाना अली जौहर यूनिवर्सिटी बनाई गई. इसके लिए कुछ ज़मीन किसानों से ली गई. इनमें से कुछ मामले अभी भी अदालत में चल रहे हैं. किसानों का आरोप है कि आज़म खान ने उनसे ज़मीन ज़बरदस्ती सस्ते दाम पर ख़रीद ली थी. कुछ ज़मीन ट्रस्ट ने सरकार से लीज़ पर ली थी.

रामपुर का डीएम ने दिए थे जांच के आदेश

रामपुर का डीएम बनने के बाद आंजनेय कुमार सिंह ने ट्रस्ट के ज़मीन लेने के मामले की जांच के आदेश दे दिए. रामपुर के ADM जे पी गुप्ता ने 16 जांच कर 16 जनवरी 2021 को अपनी रिपोर्ट दी. रिपोर्ट के बाद ज़िला प्रशासन वे साढ़े बारह एकड़ छोड़ कर बाक़ी ज़मीन सरकार में समाहित करने का आदेश दे दिया. इस फ़ैसले ने तो आज़म खान के होश उड़ा दिए. सरकार की जांच में पता चला कि आज़म खान ने ग़ैर क़ानूनी तरीक़े से यूनिवर्सिटी के लिए ज़मीन का इंतज़ाम किया है. जिन शर्तों के तहत उन्हें ज़मीन लेने की इजाज़त दी गई थी, उनका पालन नहीं किया गया. पहली शर्त ये थी कि ज़मीन लेने के पांचच साल में उस पर निर्माण होना चाहिए, पर ऐसा नहीं हुआ. जौहर ट्रस्ट ने बिना अनुमति लिए यूनिवर्सिटी के अंदर मस्जिद का निर्माण करा दिया. एक शर्त ये भी थी कि ज़मीन ख़रीद और उस पर हुए निर्माण का ब्योरा हर साल के आख़िर में देना होगा. लेकिन आज़म खान की तरफ़ से इस नियम की भी परवाह नहीं की गई. ट्रस्ट ने शत्रु संपत्ति की ज़मीन भी बिना जिला प्रशासन के ख़रीद ली. इसी आधार पर यूनिवर्सिटी की ज़मीन वापस लेने का फ़ैसला हुआ.

हर जगह से हारे आजम खान

इसके खिलाफ आजम खान राजस्व परिषद गए. उन्हें वहां भी राहत नहीं मिली. फिर वे इलाहाबाद हाई कोर्ट चले गए. उनके खिलाफ फैसला आया तो आजम खान हाई कोर्ट की डबल बेंच में चले गए. यहां भी वही नतीजा रहा. आखिरकार सुप्रीम कोर्ट से उन्हें रामपुर के एडीएम के फैसले के खिलाफ स्टे ऑर्डर मिला. अब रामपुर के कमिश्नर की तरफ से इस अंतरिम आदेश के खिलाफ जल्द से जल्द फैसला लेने की रणनीति पर काम हो रहा है. राजनीतिक रूप से कमजोर हुए आज़म खान के हाथ से यूनिवर्सिटी का जाना सबसे बड़ा झटका होगा.

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