उत्तर प्रदेश की सियासत में अपने खोए हुए सियासी जनाधार को दोबारा से हासिल करने के लिए सपा प्रमुख अखिलेश यादव एक के बाद एक दांव चल रहे हैं. सपा की नई सोशल इंजीनियरिंग गढ़ने के लिए अखिलेश यादव ने PDA का फॉर्मूला दिया था, जिसमें P से पिछड़ा, D से दलित और A से अल्पसंख्यक था. लेकिन उन्होंने अब पीडीए की नई परिभाषा देने का काम किया है. उन्होंने ‘पीडीए’ में ए का मतलब अल्पसंख्यक के साथ अगड़े और आदिवासी को जोड़ दिया है.
अखिलेश यादव ने लखनऊ में सोमवार को पीडीए यात्रा निकालकर सपा को नई धार देने की कोशिश की है. सपा की पीडीए यात्रा बीते कुछ समय से उत्तर प्रदेश के अलग-अलग विधानसभा क्षेत्रों से होकर गुजरी है और सोमवार को लखनऊ पहुंची थी, जिसमें अखिलेश ने शिरकत किया था. इस दौरान उन्होंने कहा कि पीडीए में हर कोई शामिल है. चाहे अगड़ा हो या फिर आदिवासी. पीडीए में सभी को शामिल किया गया है, जिनके अधिकारों के लिए हमारी पार्टी संघर्ष कर रही है.
अगड़े और आदिवासी को जोड़ने में सफल होगें अखिलेश ?
हालांकि, इससे पहले तक अखिलेश पीडीए का मतलब पिछड़ा-दलित-अल्पसंख्यक बता रहे थे, लेकिन अब अखिलेश यादव जिस तरह से पीडीए के एक में अगड़े और आदिवासी को जोड़ने का काम किया है. उससे एक बात तो साफ है कि सपा अब सबको साथ लेते हुए आगे बढ़ने की नीति अपनाना के संदेश दे रही, लेकिन सवाल यह है कि अखिलेश यादव को पीडीए का फॉर्मूला क्यों बदलना पड़ा और क्या अगड़े और आदिवासी को जोड़ने में वो सफल हो पाएंगे.
NDA के जवाब में अखिलेश ने दिया का PDA का नारा
दरअसल, बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए के जवाब में अखिलेश यादव ने पीडीए का नारा दिया था, जिसमें पिछड़ा-दलित-अल्पसंख्यक शामिल थे. पीडीए के जरिए अखिलेश 2024 में बीजेपी को हराने का दम भर रहे थे, लेकिन उनके पीडीए समावेशी नहीं था. इस फॉर्मूले में पिछड़े-दलित-अल्पसंख्यक शामिल थे, लेकिन अगड़े और आदिवासी को जगह नहीं मिली थी. इसके चलते सवर्णों के एक बड़े तबके को सपा को अलग-थलग करने का आरोप लगने लगा था.
सपा के लिए फायदेमंद होगा अखिलेश का PDA फॉर्मूला ?
सपा के एक तबके को और खासकर रणनीतिकारों को यह लगने लगा था कि पीडीए फायदा से कहीं ज्यादा नुकसानदेह साबित हो सकता है, क्योंकि पीडीए समावेशी नहीं है, इसमें पिछड़े दलितों और मुसलमानों की बात की गई है जबकि अगड़े और आदिवासी शामिल नहीं है. इतना ही नहीं सपा महासचिव स्वामी प्रसाद मौर्य सहित पार्टी के दूसरे नेता जिस तरह से ‘ब्राह्मणवाद’ के खिलाफ बयानबाजी कर रहे थे और रामचरित मानस पर सवाल खड़े कर रहे थे.
अखिलेश की सबको साथ लेकर चलने की रणनीति
सामाजिक न्याय और जातिगत जनगणना जैसे मुद्दे को सपा आक्रमक तरीके से उठा रही थी, उसके चलते सपा पर सवर्ण विरोधी होने का आरोप लगने लगे थे. यही वजह है कि अखिलेश यादव ने अखिलेश यादव ने पीडीए के ए में सभी को समाहित किया, उससे संदेश साफ है कि सपा सबको साथ लेते हुए आगे बढ़ने की नीति अपनाएगी. इसके साथ ही आजम खान और मुसलमानों के पक्ष में भी सपा खुलकर स्टैंड लेना शुरू कर दिया है.
पीडीए में अगड़ों को भी साथ लेकर चलना जरूरी
अखिलेश यादव ने आजम खान और सपा के बड़े नेताओं को जहां बीजेपी के दबाव में झूठे मुकदमों में फंसाने की बात कही, वहीं यह भी बताया कि बीजेपी राज में मुसलमानों के साथ अन्याय किया जा रहा है. माना जा रहा है कि सपा नेतृत्व इस बात को बाखूबी समझ गई है कि पीडीए में सिर्फ पिछड़े-दलित-अल्पसंख्यक के दम पर समावेशी राजनीति नहीं की जा सकती है. ऐसे में अगड़ों को भी साथ लेकर चलना होगा, क्योंकि सपा के साथ सवर्णों का एक तबका हमेशा से साथ रहा है. यही वजह रही कि अखिलेश यादव ने पीडीए में अगड़े व आदिवासियों को भी जोड़ने की बात कही.
अखिलेश का वोट बैंक को मजबूत करने पर जोर
बता दें कि सपा नेतृत्व अच्छी तरह से समझ चुका है कि उत्तर प्रदेश में दोबारा से खड़े होना होगा, जिसके लिए लोकसभा चुनाव में खुद को मजबूत दिखने पर ही अपने वोट बैंक को सहेज कर रखने की है. उन्होंने कहा कि सपा की ऐसी यात्राएं और शिविर जारी रहेंगे क्योंकि देश का रास्ता उत्तर प्रदेश से ही निकलता है. उन्होंने कहा कि बीजेपी को सत्ता में आने से रोकना है तो यूपी में उसे रोकना होगा. उसे पीडीए के जरिए हराया जा सकता है. ऐसे में देखना है कि सपा पीडीए का फॉर्मूला बदलकर क्या अगड़े और आदिवासी समुदाय को भी जोड़ने में सफल हो पाएगी?