चुनाव में सबसे जरूरी होता है एक चेहरा. उसी चेहरे पर वे दांव लगाते हैं. बंगाल में उन्हें ममता बनर्जी का चेहरा मिला तो दिल्ली के चुनाव में अरविंद केजरीवाल और आंध्र प्रदेश में जगन मोहन रेड्डी. बिहार के चुनाव में प्रशांत किशोर ने नीतीश कुमार और लालू यादव के चेहरे के दम पर अपनी रणनीति बनाई, लेकिन इसी तरह की उनकी रणनीति अखिलेश यादव और राहुल गांधी के चेहरों वाली यूपी में नहीं चल पाई.
अब अखिलेश यादव फिर राहुल गांधी के साथ हैं. वादा और इरादा अगला लोकसभा चुनाव साथ लड़ने का है, लेकिन राहुल गांधी राज्यों के विधानसभा चुनावों में व्यस्त हैं. उसी समय अखिलेश यादव दूसरी तरह की योजना पर काम कर रहे हैं. जैसा उन्होंने कहा था कि एमपी का बदला हम यूपी से लेंगे. अब अखिलेश यादव उसी बदले की तैयारी में हैं.
आमने सामने कांग्रेस-समाजवादी पार्टी!
एमपी के विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी और कांग्रेस में सीटों का बंटवारा नहीं हो पाया. दोनों तरफ से ये दावा किया गया है कि बीजेपी को हराने के लिए चुनावी तालमेल जरूरी था. पर ऐसा नहीं हुआ तो समाजवादी पार्टी अब कांग्रेस पर धोखेबाजी का आरोप लगा रही है. यही बात कांग्रेस पार्टी के नेता समाजवादी पार्टी के लिए कह रहे हैं.
समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव की नाराज़गी सबसे ज्यादा एमपी कांग्रेस के अध्यक्ष कमलनाथ से है. कमलनाथ ने कह दिया था कि एमपी में समाजवादी पार्टी कहां है? जबकि उसी समाजवादी पार्टी के इकलौते विधायक के समर्थन के लिए कमलनाथ ने अखिलेश यादव को कई बार फोन किया था. ये 2018 की बात है, जब कांग्रेस सरकार बनाने के आंकड़े से कुछ सीटें कम रह गई थीं.
बीजेपी से मुकाबला करने की ताकत किसके पास?
इतना ही नहीं यूपी कांग्रेस के अध्यक्ष अजय राय के एक बयान ने अखिलेश यादव की नाराजगी और बढ़ा दी. उन्होनें कहा था कि समाजवादी पार्टी तो आज़मगढ़ की सीट तक नहीं बचा पाई. कांग्रेस यूपी में हवा बना रही है कि लोकसभा चुनाव में मुसलमानों की पहली पसंद समाजवादी पार्टी नहीं अब कांग्रेस हो गई है. इसीलिए आज़म खान से जेल में मिलने का कार्यक्रम बना. अब बारी अखिलेश यादव के जवाब देने की है. लेकिन वे ये जवाबी बीजेपी को देते हुए दिखना चाहते हैं, कांग्रेस को नहीं. यही उनकी रणनीति है. ये पूरा खेल यूपी की पब्लिक को ये बताने का है कि बीजेपी से मुकाबला करने की ताकत किसके पास है.
अखिलेश यादव साइकिल यात्रा पर निकल रहे हैं. बहुत दिनों से उन्हें साइकिल की सवारी करते नहीं देखा गया है. इस यात्रा का नाम दिया गया है समाजवादी PDA यात्रा. अखिलेश यादव ने NDA के खिलाफ PDA का नारा दिया है. मतलब पिछड़े, दलित और मुस्लिम. PDA के इसी दलित और मुस्लिम वोट बैंक पर कांग्रेस की भी नज़र है. अब तक अपने रथ रूपी बस से यात्रा कर रहे अखिलेश यादव को अब साइकिल पर आना पड़ा है. वे अपनी सियासी ज़मीन का एक इंच भी कांग्रेस को देने को तैयार नहीं हैं.
साइकिल यात्रा से अखिलेश बताएंगे अपनी सरकार का काम काज
इस साइकिल यात्रा का रूट मैप इस तरह से बनाया गया है कि हर तरफ उनका काम काज दिखे. पूर्वांचल एक्सप्रेसवे से शुरू होकर ये यात्रा जनेश्वर मिश्रा पार्क पर ख़त्म होगी. इस यात्रा के दौरान वे स्टेडियम, कैंसर अस्पताल, पुलिस हेडक्वर्टर और अमूल प्लांट से होकर गुजरेंगे. अखिलेश सरकार के दौरान ही इन सब पर काम शुरू हुआ था. उनका फ़ोकस सामाजिक समीकरण पर भी है और उनके मुख्यमंत्री रहते हुए काम काज की मार्केटिंग पर भी. ये बात अलग है कि 2017 के विधानसभा चुनाव में उनके काम बोलता है वाले कैंपेन पर बीजेपी की शमशान और कब्रिस्तान वाला एजेंडा भारी पड़ गया था.