इलाहाबाद हाई कोर्ट ने उत्तर प्रदेश के बालगृहों की स्थिति पर गंभीर चिंता जताई है. कोर्ट ने कहा है यहां के बालगृहों की हालत प्रदेश की जेलों से भी खराब है. कोर्ट ने इसी टिप्पणी के साथ राज्य सरकार को यहां के खस्ताहाल बाल गृहों की खामियों को जल्द से जल्द दूर करने का भी निर्देश दिया है. कोर्ट ने महिला एवं बाल विकास विभाग के प्रमुख सचिव को आदेश किया है कि यहां के सभी बालगृहों और वहां के बच्चों की संख्या बताएं.
कोर्ट ने इस दौरान यहां तक कहा कि कुछ बालगृह तो ऐसे हैं जहां ना तो सूर्य की रोशनी, ना ताजा हवा पहुंच रही. यह संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है. ऐसे में कोर्ट ने प्रमुख सचिव को ये भी कहा है कि इस मामले की अगली सुनवाई पर हालात में सुधार के लिए उठाए गए सभी कदम की जानकारी व्यक्तिगत हलफनामे में कोर्ट के सामने रखें.
हाईकोर्ट ने खुद किया था बालगृह का निरीक्षण
इलाहाबाद हाईकोर्ट का आदेश इलाहाबाद हाईकोर्ट के ही जस्टिस अजय भनोट के बालगृहों के निरीक्षण पर आधारित है. इस सर्वेक्षण में कई कमियां सामने आई हैं. कोर्ट ने किशोर न्याय और पॉक्सो समिति की तरफ से निर्देश जारी करके ऐसे सभी बालगृहों को दूसरी जगहों पर स्थापित करने के लिए तत्काल उपाय करने को कहा है, जहां की व्यवस्था खराब है और बच्चों की संख्या ज्यादा है.
कोर्ट ने सरकार को कहा है कि ऐसे बालगृहों में खेलों के अलावा बाहरी गतिविधियों के लिए सुविधाएं दुरुस्त की जाएं. कोर्ट ने बाल गृहों में तैनात कर्मचारियों और पर्यवेक्षकों की कुशलता पर भी गंभीर सवाल उठाया है. कोर्ट ने कहा है कि ऐसे सभी कर्मचारियों को प्रशिक्षित करने की जरूरत है. कोर्ट ने कहा कि पर्यवेक्षक प्रशिक्षित होंगे बच्चों के व्यक्तिव का विकास होगा. बच्चे बेहतर जीवन शैली अपनाएंगे.
शारीरिक, मानसिक सेहत हो रही प्रभावित
कोर्ट ने इस बात पर भी टिप्पणी की है कि यहां रह रहे बच्चों के खान-पान समेत उनकी जरूरतों को पूरी करने के लिए कई वर्षों से बजट में कोई इजाफा नहीं किया गया है. कोर्ट ने कहा कि बच्चों की शैक्षिक सुविधाओं को बेहतर बनाया जाना चाहिए. उनके विकास और प्रदर्शनों पर निगरानी रखने की जरूरत है.
इलाहाबाद काईकोर्ट ने बालगृहों में रह रहे बच्चों के भावनात्मक विकास और शारीरिक गतिविधियों पर विशेष जोर देने का निर्देश दिया है. कोर्ट ने कहा कि यहां रहने वाले बच्चे अपने-अपने घर, परिवार से दूर रहते हैं ऐसे में उनके आस-पास के माहौल को रचनात्मक बनाये जाने की जरूरत है ताकि बच्चे हमेशा कुछ ना कुछ नया सीख सकें.
बालगृह के बच्चों का अच्छे स्कूल में हो दाखिला
कोर्ट ने बच्चों की औपचारिक शिक्षा प्रणाली को विकसित करने की जरूरत पर बल दिया है. कोर्ट ने इन्हें प्रोफेशनल प्रशिक्षण देने की भी बात कही है. कोर्ट ने कहा कि यहां के बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा देना वैधानिक है. संवैधानिक न्यायालय की तरफ से यह मौलिक अधिकार के रूप में मान्यता प्राप्त है.
कोर्ट ने साफ शब्दों में कहा कि प्रदेश सरकार की जिम्मेदारी है कि बालगृहों में शिक्षा के अधिकार का पालन कराया जाए. यहां के बच्चों को अच्छे स्कूलों में दाखिला हो. इसके अलावा कोर्ट ने यह भी कहा है उनके परिवारों की आय प्रमाणपत्र की जरूरत खत्म करने पर भी राज्य सरकार विचार करे.