निठारी कांड का आरोपी सुरेंद्र कोली बेहद शातिर है. वह ना केवल खाना बनाने का एक्सपर्ट है, बल्कि बात भी वह ऐसी बनाता है कि कानून के जानकार भी चक्कर खा जाएं. साल 2014 में तो उसने गाजियाबाद की स्पेशल सीबीआई कोर्ट में अपने ही वकील को कटघरे में खड़ा कर दिया था. आरोप लगाया था कि उसका वकील ही उसे फंसाने की कोशिश कर रहा है. यह आरोप उसने ऐसे समय में आरोप लगाया था, जब पूरे देश में कोई वकील उसके मामले की पैरवी के लिए तैयार नहीं था. इसी आधार पर सुरेंद्र कोली ने कोर्ट से आग्रह किया था कि उसे खुद अपना पक्ष रखने की अनुमति मिले.
उसकी अर्जी पर सुनवाई करते हुए सीबीआई कोर्ट ने उसे अनुमति भी दे दी. इसके बाद जब उसने मामले में जिरह शुरू की तो सबसे पहले अपने को बेगुनाह बताते हुए कहा कि उसके वकील उसे मानसिक रोगी बता कर ऐसे मामले में फंसाने की कोशिश कर रहे हैं, जिसके बारे में वह जानता तक नहीं. उसने एक झटके में नोएडा के निठारी गांव से गायब सभी 18 लड़कियों की गुमशुदगी से पल्ला झाड़ते हुए कहा कि वह इनमें से ना तो किसी को जानता है और ना ही उनके गायब होने में उसका कोई हाथ है.
चूंकि सीबीआई ने इन 18 लड़कियों में से 3 को छोड़ कर बाकी 15 लड़कियों की हत्या, उनके साथ रेप और अमानवीय कृत्य के मामले में सुरेंद्र कोली के खिलाफ चार्जशीट पेश की थी. सीबीआई की दलील, गवाहों की गवाही और तथ्यों के आधार पर कोर्ट भी राय बनने लगी थी कि सुरेंद्र कोली ही दोषी है. ऐसे में सुरेंद्र कोली ने एक बार फिर अपना बचाव करते हुए सीबीआई से इन लड़कियों की पोस्टमार्टम रिपोर्ट मांग ली. ऐसे में सीबीआई के भी हाथ पांव फूल गए थे. दरअसल निठारी में घटना स्थल डी-5 कोठी के अंदर से पुलिस को दो चाकू और कुल्हाड़ी मिली थी.
सीबीआई आज तक नहीं जोड़ पायी कड़ियां
वहीं नाले से इन लड़कियों के नरकंकाल भी मिले थे. इन नरकंकालों का डीएनए टेस्ट तो हुआ था, जिसमें इनकी पहचान हो गई थी, लेकिन पोस्टमार्टम नहीं हो पाया था. यही नहीं सीबीआई आज तक उन नरकंकालों का सीधे तौर पर सुरेंद्र कोली या कोठी से मिले हथियारों से कोई कनेक्शन नहीं जोड़ पायी है. ऐसे में सुरेंद्र कोली द्वारा कोर्ट में दिए गए तर्कों के आगे एक बार सीबीआई और उसके वकील भी बगलें झांकने लगे थे. बता दें कि दिसंबर 2006 में यह मामला प्रकाश में आने के बाद पहले नोएडा के वकीलों ने फैसला किया था कि इन नरपिशाचों का मुकदमा कोई नहीं लड़ेगा. लेकिन 13 दिन बाद ही मामला सीबीआई के पास चला गया.
केस लेने को तैयार नहीं था कोई वकील
चूंकि सीबीआई कोर्ट गाजियाबाद में है. इसलिए गाजियाबाद के वकीलों ने भी यही फैसला लिया. स्थिति यहां तक आ गई कि देश भर के वकीलों ने इस घटना और आरोपियों की निंदा शुरू कर दी. ऐसे में कुछ स्वयं सेवी संस्थाओं ने इनके लिए वकील उपलब्ध कराए थे. इस घटना के बाद केवल नोएडा ही नहीं, सुरेंद्र कोली के गांव उत्तराखंड में अल्मोड़ा के मंगरुखल में भी खूब विरोध हुआ.
पत्नी ने भी तोड़ लिया संबंध
आज तक इस गांव के लोग सुरेंद्र कोली के बारे में किसी भी तरह की चर्चा करने से बचते हैं. यहां तक कि उसकी पत्नी ने भी उससे संबंध तोड़ कर मंगरुखल से चली गई और आज गुरुग्राम में कहीं रहकर रोजी रोटी कमा रही है. उधर, सुरेंद्र कोली के मालिक मोहिंदर सिंह पंढेर के खिलाफ भी चंडीगढ़ से पंजाब तक माहौल बन गया था. हालांकि बाद में उसे कई मामलों में बरी होने के बाद उसने माहौल को मैनेज कर लिया.