New Delhi: लेनिनग्राद घेराबंदी की कहानी, हिटलर की वो बड़ी भूल जो बनी उसकी तबाही की वजह, पुतिन से इसका क्या कनेक्शन है?

New Delhi: लेनिनग्राद घेराबंदी की कहानी, हिटलर की वो बड़ी भूल जो बनी उसकी तबाही की वजह, पुतिन से इसका क्या कनेक्शन है?

रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने गाजा पट्टी की घेराबंदी को लेकर इजरायल को चेतावनी दी है। उन्होंने इसकी तुलना नाजी जर्मनी के लेनिनग्राद की घेराबंदी से कर दी। रूस के सेंट पीटर्सबर्ग शहर को पहले लेनिनग्राद के तौर पर जाना जाता था। इसकी घेराबंदी को इतिहास की सबसे घातक घेराबंदी के तौर पर जाना जाता है। 1941 से लेकर 1944 तक चली इस घेराबंदी में 15 लाख लोगों की मौत हुई और इसमें ज्यादातर आम लोग शामिल थे। 21वीं सदी के कुछ विद्वानों ने घेराबंदी का वर्णन करने के लिए नरसंहार शब्द का इस्तेमाल किया है। हिटलर ने यहां लोगों को जानबूझकर भुखमरी से मरने दिया और शहर को बर्बाद करके रख दिया। ऐसे में आइए जानते हैं लेनिनग्राद की घेराबंदी और पुतिन के इससे व्यक्तिगत कनेक्शन की कहानी क्या है? 

872 दिन

दूसरे विश्व युद्ध से पहले जर्मनी और रूस के बीच बेहद ही दोस्ताना संबंध रहे। दोनों देशों ने एक दूसरे से आर्थिक मोर्चे पर हाथ मिलाया। इस व्यवस्था में जर्मनी को आर्थिक रूप से काफी फायदा हुआ। रूस से जर्मनी को अनाज और तेल निर्यात किया जाता था। सोवियत संघ का जब हिटलर को सहयोग मिला तो उसने यूरोप में अपने वर्चस्व को विस्तार देने की योजना पर काम किया। मई 1940 में पश्चिम की तरफ जर्मनी की सेना आगे बढ़ी और छह हफ्ते में फ्रांस को जीत लिया। लेकिन इस जीत के साथ ही हिटलर की महत्वकांक्षा और बढ़ने लगी। उसने अब पूरब की तरफ भी विस्तार का फैसला किया। उसने सोवियत संघ पर हमले की योजना बनाई। ऑपरेशन बारब्रोसा के साथ हिटलर ने 1941 की गर्मियों में सोवियत संघ के खिलाफ जाने का फैसला किया। अंततः एक विनाशकारी विफलता के साथ, बारब्रोसा सोवियत संघ के लिए भी विनाशकारी था, जिससे लाखों लोग मारे गए। लेनिनग्राद की घेराबंदी शायद उस कीमत का सबसे अधिक प्रतीक है जो सोवियत ने नाजियों को हराने के लिए चुकाई थी।

ऑपरेशन बारबरोसा 

रूस की पूर्व राजधानी लेनिनग्राद एक प्रतीकात्मक और रणनीतिक रूप से मूल्यवान लक्ष्य था। सोवियत को इसके बारे में पता था और जर्मन सेना के शहर में पहुंचने से पहले, प्रशासन ने कम से कम दस लाख नागरिकों को किलेबंदी करने और सुरक्षा की कई लाइनें बनाने के लिए जुटाया था। 200,000 लाल सेना के सैनिकों और जर्मनी की अपनी जनशक्ति की कमी के साथ इन सुरक्षा ने शहर पर कब्ज़ा करना एक कठिन प्रस्ताव बना दिया। इसके बजाय जर्मनों ने घेराबंदी कर दी। 22 जून 1941 को रूस पर कब्जे का हिटलर का ऑपरेशन लॉन्च हुआ। ऑपरेशन का नाम बारबरोसा था। मध्यकाल में रोम का सम्राट हुआ करते थे फ्रेडरिक प्रथम बारबरोसा। उन्होंने स्लेविक लोगों पर काफी अत्याचार किया था। उनके ही नाम पर हिटलर ने अपने ऑपरेशन का नाम रखा। 

सोवियत सेना को तैयारी का भरपूर मौका मिल गया 

8 सितंबर 1941 से 27 जनवरी 1944 तक 872 दिनों की अवधि के दौरान लेनिनग्राद लगातार जर्मन गोलाबारी, अकाल जैसी स्थितियों और रूसी उत्तर के प्रतिकूल मौसम के तहत घेराबंदी में था। अकेले 1942 में लगभग 650,000 लेनिनग्रादवासी मारे गये। चरम सर्दियों में स्थिति विशेष रूप से गंभीर थी जब जनवरी और फरवरी 1942 में तापमान शून्य से 30 डिग्री सेल्सियस नीचे तक गिर गया था, हर महीने लगभग 100,000 लेनिनग्रादर्स मर रहे थे। हिटलर के आक्रमणकारी दल में 3,400 टैंक और 2,700 एयरक्राफ्ट शामिल थे। इस बीच सोवियत सेना को तैयारी का भरपूर मौका मिल गया था। बाकी रूसी सेना की मदद के लिए और सैनिक आ चुके थे। 5 दिसंबर को सोवियत सेना ने अचानक जवाबी हमला किया। जर्मनी के सैनिकों को पीछे हटने के लिए मजबूर होना पड़ा। यहीं से जर्मनी सेना की हार शुरू हुई। 

हिटलर ने दी अपनी तबाही को दावत

हिटलर ने सोवियत संघ पर हमला करके अपने लिए शामत मोल ले ली। इससे सोवियत संघ का भड़कना लाजिमी था। नतीजा ये हुआ कि सोवियत सेना ने जर्मनी से अपने इलाके को तो आजाद कराए ही बर्लिन पर भी हमला कर दिया। हिटलर को बंकर में बंद होना पड़ा और अंत में आत्महत्या करनी पड़ी। 8 मई, 1945 को बर्लिन के सरेंडर के साथ ही दूसरे विश्व युद्ध का अंत हो गया। 

व्लादिमीर पुतिन का पर्सनल कनेक्शन

पुतिन द्वारा लेनिनग्राद का जिक्र करने का एक कारण इससे उनका अपना व्यक्तिगत संबंध है। जबकि उनका जन्म घेराबंदी हटने के छह साल बाद हुआ था। पुतिन ने लेनिनग्राद की घेराबंदी में अपने भाई को खो दिया था। पुतिन ने पिस्कारियोवस्कॉय कब्रिस्तान में वार्षिक पुष्पांजलि समारोह के दौरान कहा कि मेरे भाई, जिसे मैंने कभी नहीं देखा से यहीं दफनाया गया था। मुझे यह भी नहीं पता कि वास्तव में कहां है। विक्टर पुतिन केवल दो वर्ष के रहे होंगे जब 1942 में संभवतः ठंड और भुखमरी के कारण उनका निधन हो गया। पुतिन ने अपनी किताब फर्स्ट पर्सन (2000) में बताया कि कैसे उनकी मां भूख से लगभग मर गईं। उन्होंने लिखा कि वह होश खो बैठी और उसे सारी लाशों के साथ डाल दिया गया। 

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