गाजा के आसपास रहने वाले लोग इस वक्त ये समझ ही नहीं पा रहे हैं कि आखिर वो करें तो क्या करें? इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने राष्ट्र के नाम अपने संबोधन में साफ कर दिया है कि गाजा के 20 लाख लोग अब हट जाएं। वो हमास के पूरे आतंकियों का सफाया करने का टारगेट तय कर चुके हैं। इस समय गाजा के हर तरफ ढही हुई इमारतों के मलबे, धुंआ ही धुंआ नजर आ रहा है। सड़कों पर एंबुलेंस की गाड़ियां दौड़ रही हैं। हालात काफी ज्यादा खराब नजर आ रहे हैं। जहां भी हमले हो रहे हैं वहां फिलिस्तीनि लोगों की भीड़ जुटकर पूरा मंजर देखकर खौफजदा हो रही है। कुछ तस्वीरें सामने आई हैं जिसमें गाजा पट्टी में कयामत टूटती नजर आई है। इन सब के बीच फिलिस्तीन ने इजरायल पर बड़ा आरोप लगाया है। इजरायल द्वारा फॉस्फोरस का प्रयोग किए जाने के आरोप लगाए गए हैं। फिलिस्तीन की तरफ से कहा गया कि युद्ध के नियमों का उल्लंघन हो रहा है। फिलिस्तीन का कहना है कि सफेद फॉस्फोरस बम गिराकर इजरायल ने अंतरराष्ट्रीय कानून को तोड़ दिया है।
क्या होता है सफेद फॉस्फोरस बम
सफेद फॉस्फोरस-रबर को मिलाकर इसे तैयार किया जाता है। दिखने में ये फॉस्फोरस मोम जैसा कैमिकल जो हल्का पीला होता है। इसका उपयोग सेना द्वारा विभिन्न प्रकार के गोला-बारूद के रूप में आग लगाने वाले एजेंट के रूप में किया जाता है ऑक्सीजन के संपर्क में आने पर ये आग पकड़ लेता है। सफेद फास्फोरस जमीन पर तेजी से जलने वाली और तेजी से फैलने वाली आग को भड़का सकता है, और कई रिपोर्टों में दावा किया गया है कि एक बार आग लगने के बाद इसे बुझाना बेहद मुश्किल है। सफेद फॉस्फोरस बम को पानी से नहीं बुझाया जा सकता है। बम जहां गिरता है वहां आक्सीजन खत्म होने लगती है। धुएं से नहीं लोग दम घुटने की वजह से मरने लग जाते हैं। इस पदार्थ का उपयोग दुनिया भर में सेनाओं द्वारा स्मोक एजेंट के रूप में भी किया जाता है क्योंकि यह परेशान करने वाले सफेद धुएं के बादल पैदा करता है। सफेद फॉस्फोरस 1300 डिग्री सेल्सियस तक जल सकता है। इसकी इंटेनसिटी इतनी रहती है कि ये आग से ज्यादा जलन और जख्म देता है। इसमें हड्डियों तक को गलाने की ताकत है। साथ ही ये मल्टी ऑर्गेन फेल्योर का कारण बन सकता है।
सफेद फास्फोरस का प्रसार कैसे किया जा सकता है?
सफेद फॉस्फोरस हथियार गंभीर नुकसान पहुंचा सकते हैं। उनके संपर्क में आने से जलने की चोटें और वाष्प साँस लेना होता है। इसे साँस लेने, निगलने या त्वचा के संपर्क के माध्यम से शरीर में अवशोषित किया जा सकता है। यह त्वचा और कपड़ों सहित कई सतहों पर चिपक जाता है। इसे धुएं के रूप में घर के अंदर की हवा में छोड़ा जा सकता है और संपर्क में आने पर जल निकायों को दूषित कर सकता है, जो लाखों लोगों मनुष्यों और जानवरों को प्रभावित करेगा। रोग नियंत्रण और रोकथाम केंद्र (सीडीसी) की एक रिपोर्ट में उल्लेख किया गया है कि सफेद फास्फोरस का उपयोग भोजन को दूषित करने के लिए नहीं किया जा सकता है। इसमें कहा गया है कि यदि सफेद फास्फोरस को धुएं के रूप में छोड़ा जाता है, तो यह कृषि उत्पादों को दूषित नहीं कर सकता है। हालाँकि, सफेद फास्फोरस के कण जो हवा के साथ प्रतिक्रिया नहीं करते हैं, कृषि उत्पादों को दूषित कर सकते हैं। ऐसे में आइए आपको बताते हैं कि सफेद फास्फोरस बम होता क्या है, क्या इजरायल ने सच में गाजा पर इसका प्रयोग किया है, इसको लेकर अंतरराष्ट्रीय कानून क्या कहते हैं, क्या इससे पहले भी किसी युद्ध में सफेद फास्फोरस बम का प्रयोग किया गया है?
क्या सफेद फॉस्फोरस बम प्रतिबंधित हैं?
सफेद फास्फोरस प्राकृतिक रूप से नहीं पाया जाता है क्योंकि यह फॉस्फेट चट्टानों का उपयोग करके निर्मित किया जाता है। अंतर्राष्ट्रीय कानूनों के अनुसार, घनी आबादी वाले नागरिक क्षेत्रों में सफेद फास्फोरस के गोले का उपयोग निषिद्ध है। हालाँकि, कानून सैनिकों की सुरक्षा के लिए खुले स्थानों में इसके उपयोग की अनुमति देता है।सफेद फास्फोरस हथियारों पर प्रतिबंध नहीं है, लेकिन नागरिक क्षेत्रों में उनका उपयोग युद्ध अपराध माना जाता है। 1980 में जिनेवा कन्वेंशन में इसे प्रतिबंधित किया गया है। ह्यूमन राइट्स वॉच ने कहा है कि सीरिया, अफगानिस्तान और गाजा जैसे देशों और क्षेत्रों में युद्ध क्षेत्रों में सफेद फास्फोरस के उपयोग से नागरिक मौतों का दस्तावेजीकरण किया गया है।
क्या इजराइल ने पहले भी ऐसे बमों का इस्तेमाल किया है?
ह्यूमन राइट्स वॉच की एक रिपोर्ट में दावा किया गया है कि इज़राइल ने गाजा में 27 दिसंबर, 2008 से 18 जनवरी, 2009 तक चले ऑपरेशन कास्ट लीड नामक अपने 22-दिवसीय सैन्य अभियान में बड़े पैमाने पर सफेद फास्फोरस हथियारों का इस्तेमाल किया था। रिपोर्ट ने स्पष्ट किया कि गाजा में अधिकांश नागरिकों की मौत सफेद फास्फोरस हथियारों से नहीं हुई, क्योंकि लोग मिसाइलों, बमों, भारी तोपखाने, टैंक के गोले और छोटे हथियारों की आग से मारे गए। हालाँकि, यह तर्क दिया गया कि घनी आबादी वाले इलाकों में उनका उपयोग अंतरराष्ट्रीय मानवीय कानून का उल्लंघन है, जिसके लिए नागरिक क्षति से बचने के लिए सावधानी बरतने की आवश्यकता है।