नई दिल्ली: बीते कुछ दशकों में दुनिया भर में बर्ड फ्लू बीमारी के फैलने की घटनाएं देखी गई हैं. भारत भी इससे अछूता नहीं रहा है. ब्रिटेन के एक वैज्ञानिकों ने मुर्गियों में बर्ड फ्लू के प्रसार को सीमित करने के लिए जीन संपादन तकनीक का सफलतापूर्वक उपयोग किया है. बर्ड फ्लू मौजूदा वक्त में एक प्रमुख वैश्विक खतरा है. इस बीमारी का असर जंगली पक्षियों के अलावा कृषि क्षेत्र में देखा गया है. इसका प्रभाव बेहद विनाशकारी साबित हुआ है.
नेचर कम्युनिकेशंस जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन में बताया गया कि रिसर्चर्स ने ANP32A नामक जीन में छोटे बदलाव के साथ मुर्गियों का प्रजनन कराया. संक्रमण के दौरान, इन्फ्लूएंजा वायरस खुद को दोहराने में मदद करने के लिए ANP32A प्रोटीन का अपहरण कर लेते हैं. बताया गया कि जब जीन-संपादित पक्षियों को वायरस की सामान्य खुराक (एवियन इन्फ्लूएंजा का H9N2 स्ट्रेन) के संपर्क में लाया गया, तो 10 में से 9 पक्षियों में इसका संक्रमण नहीं फैला. अन्य मुर्गियों में इसका कोई प्रसार नहीं हुआ.
जब पक्षियों को वायरस की कृत्रिम रूप से उच्च खुराक के संपर्क में लाया गया, तो उनमें से केवल आधे ही संक्रमित हुए. सिंगल जीन संपादन ने गैर-संपादित पक्षियों की तुलना में संक्रमित जीन-संपादित पक्षियों में वायरस की बहुत कम मात्रा के साथ, संचरण के खिलाफ कुछ सुरक्षा भी प्रदान की.
रिसर्च पर क्या बोले जांचकर्ता?
साथ ही, संपादन ने वायरस के आगे प्रसार को एक ही इनक्यूबेटर में रखे गए चार गैर-संपादित मुर्गियों में से केवल एक तक सीमित करने में भी मदद की. जीन-संपादित पक्षियों में कोई संचरण नहीं था. एडिनबर्ग विश्वविद्यालय के रोसलिन इंस्टीट्यूट के प्रमुख जांचकर्ता प्रोफेसर माइक मैकग्रे ने इसपर कहा, ‘बर्ड फ्लू पक्षियों की आबादी के लिए एक बड़ा खतरा है. वायरस के खिलाफ टीकाकरण कई चुनौतियों का सामना करता है, जिसमें वैक्सीन की तैनाती से जुड़े महत्वपूर्ण व्यावहारिक और लागत संबंधी मुद्दे भी शामिल हैं.’