अगले साल होने वाले लोकसभा चुनावों से पहले होने वाले पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों की तारीखों का ऐलान हो गया है। चुनाव कार्यक्रम के ऐलान के साथ ही अब सबकी निगाह इस बात पर लग गयी है कि सत्ता का सेमीफाइनल कौन जीतेगा? सवाल यह भी है कि क्या जो सेमीफाइनल जीतेगा वही लोकसभा चुनाव भी जीतेगा? हम आपको बता दें कि जिन पांच राज्यों में विधानसभा चुनावों की तारीखों का ऐलान हुआ है उसमें कांग्रेस के पास दो राज्यों- छत्तीसगढ़ और राजस्थान में सरकार है तो वहीं भाजपा के पास मध्य प्रदेश में सरकार है। हालांकि पिछले विधानसभा चुनावों के बाद मध्य प्रदेश में कांग्रेस की ही सरकार बनी थी लेकिन आंतरिक मतभेदों के चलते कमल नाथ की सरकार गिर गयी थी और कांग्रेस विधायकों के दल बदल के चलते शिवराज सिंह चौहान एक बार फिर मुख्यमंत्री बन गये थे। इसके अलावा तेलंगाना में भारत राष्ट्र समिति की सरकार है तो वहीं मिजोरम में क्षेत्रीय दल मिजो नेशनल फ्रंट सत्ता में है।
बहरहाल, चुनावों की तारीखों के ऐलान के बाद सभी दलों के नेता अपनी अपनी जीत के दावे कर रहे हैं लेकिन देखना होगा कि जनता के मन में क्या है। आइये राज्यवार राजनीतिक हालात, मुद्दों और विभिन्न पार्टियों के समक्ष उपलब्ध अवसरों और चुनौतियों पर एक नजर डालते हैं-
छत्तीसगढ़
छत्तीसगढ़ में 2003 से 2018 के बीच 15 वर्षों तक शासन करने वाली भाजपा के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर के कारण कांग्रेस ने 2018 विधानसभा चुनाव में भारी जीत दर्ज की थी। कांग्रेस के पास वर्तमान में 90 सदस्यीय राज्य विधानसभा में 71 सीटें हैं। पार्टी ने आगामी चुनावों में भूपेश बघेल के नेतृत्व वाली सरकार की किसान समर्थक, आदिवासी समर्थक और गरीब समर्थक योजनाओं के दम पर 75 सीटें जीतने का लक्ष्य रखा है। सत्ताधारी दल मुख्यमंत्री बघेल की लोकप्रियता को भुनाने की कोशिश में है क्योंकि अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) और ग्रामीण मतदाताओं पर उनकी अच्छी खासी पकड़ है।
छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की ताकत के बारे में बात करें तो देखने को मिलता है कि राजीव गांधी किसान न्याय और गोधन न्याय योजना सहित कई कल्याणकारी योजनाओं का कार्यान्वयन, किसानों और ग्रामीण आबादी के लिए योजनाएं, बेरोजगारी भत्ता के अलावा समर्थन मूल्य पर बाजरा तथा विभिन्न वन उपज की खरीद कांग्रेस के पक्ष में मतदाताओं को आकर्षित कर सकती है। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने स्थानीय लोगों में अपनी लोकप्रियता बढ़ाते हुए अपनी छवि ‘माटी पुत्र’ के रूप में विकसित की है। अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) और ग्रामीण मतदाताओं पर उनकी अच्छी खासी पकड़ है। इसके अलावा, पिछले पांच वर्षों में पार्टी ने बूथ स्तर तक अपने संगठनात्मक ढांचे को मजबूत किया है। राजीव युवा मितान क्लब योजना से जुड़े करीब तीन लाख युवा, मतदाताओं को अपने पक्ष में गोलबंद करने में पार्टी की मदद कर सकते हैं। इस योजना का उद्देश्य राज्य के युवाओं को रचनात्मक कार्यों से जोड़ना, नेतृत्व कौशल विकसित करना और उन्हें उनकी सामाजिक जिम्मेदारियों के बारे में जागरूक करना है। कांग्रेस ने 2018 के बाद छत्तीसगढ़ में पांच विधानसभा सीटों पर हुए उपचुनाव में भी जीत हासिल की थी और राज्य में अपनी मजबूत स्थिति का अहसास कराया था।
इसके अलावा, कांग्रेस की कमजोरियों की बात करें तो आपको बता दें कि पार्टी की राज्य इकाई में गुटबाजी और अंदरुनी कलह है। पिछले पांच वर्षों में, पार्टी में मुख्यमंत्री बघेल के धुर विरोधी टी.एस. सिंहदेव ने कई बार विद्रोह का झंडा उठाया है। आखिरकार पार्टी को इस साल की शुरुआत में उन्हें उपमुख्यमंत्री नियुक्त करके संतुष्ट करना पड़ा। वहीं, प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष मोहन मरकाम के भी बघेल के साथ अच्छे संबंध नहीं थे। हालांकि, कुछ महीने पहले ही उन्हें राज्य मंत्रिमंडल में शामिल किया गया। इन सबके बावजूद पार्टी में अंदरूनी कलह अभी भी बरकरार बताई जाती है। भूपेश बघेल सरकार राज्य में कोयला परिवहन, शराब बिक्री, जिला खनिज फाउंडेशन (डीएमएफ) कोष के उपयोग और लोक सेवा आयोग भर्ती में भ्रष्टाचार के आरोपों का सामना कर रही है। वर्तमान शासन के दौरान राज्य में धर्मांतरण, सांप्रदायिक हिंसा और झड़पों की कुछ घटनाएं हुईं, जिससे विपक्षी दल भाजपा को कांग्रेस पर हिंदू विरोधी होने का आरोप लगाने का मौका मिला।
कांग्रेस के पास अवसरों की बात करें तो आपको बता दें कि पिछले लगभग पांच वर्षों में भाजपा कांग्रेस पर प्रभावी हमला करने में विफल रही है। भाजपा में नेतृत्व का मुद्दा लगातार बना हुआ है। 2018 के विधानसभा चुनावों के बाद भाजपा ने अपने प्रदेश अध्यक्ष को तीन बार बदला है और पिछले वर्ष विधानसभा में अपने नेता प्रतिपक्ष को भी बदल दिया है। भाजपा ने रमन सिंह को भी लगभग दरकिनार कर दिया है, जो 2013 से 2018 के बीच मुख्यमंत्री रहे। इनके कार्यकाल में सरकार पर नागरिक आपूर्ति घोटाले और चिट फंड घोटाले का आरोप लगा। राज्य में कांग्रेस लगातार भाजपा पर निशाना साध रही है और दावा कर रही है कि उसके केंद्रीय नेतृत्व को राज्य में पार्टी के अग्रिम पंक्ति के नेताओं पर भरोसा नहीं है।
कांग्रेस के खिलाफ जो मुद्दे जा सकते हैं अगर उसकी बात करें तो आपको बता दें कि छत्तीसगढ़ में शराबबंदी और संविदा कर्मचारियों के नियमितीकरण सहित अधूरे वादे विभिन्न निर्वाचन क्षेत्रों में लोगों के क्रोध का कारण बन सकते हैं। ‘मोदी फैक्टर’ जो भाजपा को प्रतिद्वंद्वी पार्टियों पर बढ़त दिलाता है। आम आदमी पार्टी (आप) और सर्व आदिवासी समाज (आदिवासी संगठनों का एक समूह) के चुनाव में ताल ठोंकने से कांग्रेस के वोट बैंक में सेंध लग सकती है। हम आपको बता दें कि वर्ष 2018 में चुने गए 68 कांग्रेस विधायकों में से कुल 35 पहली बार चुने गए थे और उनमें से अधिकांश अब अपने प्रदर्शन को लेकर जनता के विरोध का सामना कर रहे हैं। वैसे छत्तीसगढ़ में आमतौर पर भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस सबसे प्रमुख राजनीतिक दल माने जाते हैं। राज्य में कुछ अन्य राजनीतिक दल भी हैं लेकिन उनका प्रभाव कुछ क्षेत्रों तक ही सीमित है। आदिवासी समुदायों की संस्था ‘सर्व आदिवासी समाज’ के चुनाव मैदान में आने से इस बार का चुनाव दिलचस्प हो सकता है। राजनीतिक जानकारों का कहना है कि इससे ग्रामीण और आदिवासी इलाकों में सत्ताधारी दल को नुकसान हो सकता है। राज्य में आदिवासियों के हितों के लिए काम करने वाली गोंडवाना गणतंत्र पार्टी (जीजीपी) भी चुनाव मैदान में है। हम आपको बता दें कि राज्य की आबादी में लगभग 32 प्रतिशत हिस्सेदारी जनजातीय समुदाय की है।
दूसरी ओर राज्य में भाजपा की बात करें तो आपको बता दें कि पार्टी अब चुनावी रणनीति के तहत सरकार को भ्रष्टाचार और कुशासन के मुद्दों पर घेरने की कोशिश कर रही है। भाजपा अपने पक्ष में माहौल बनाने के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की लोकप्रियता पर भरोसा कर रही है। वहीं पार्टी के स्टार प्रचारक राज्य में अपनी यात्राओं के दौरान कई मुद्दों, विशेषकर भ्रष्टाचार को लेकर कांग्रेस सरकार पर खुलकर हमले कर रहे हैं। कुछ महीने पहले तक भाजपा की राज्य इकाई जो गुटबाजी से ग्रस्त दिखाई दे रही थी पिछले कुछ महीनों में आक्रामक हो गई है। राज्य में चुनाव के करीब आते ही भाजपा के रणनीतिकार अमित शाह ने यहां कई बैठकें की है तथा प्रधानमंत्री मोदी की रैलियों में अच्छी भीड़ ने पार्टी कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ाया है। पिछले तीन महीनों में अपनी चार रैलियों के दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने कोयला, शराब, गोबर खरीद और जिला खनिज फाउंडेशन (डीएमएफ) फंड के उपयोग सहित हर क्षेत्र और सरकारी योजनाओं में भ्रष्टाचार तथा कथित घोटालों को लेकर कांग्रेस पर निशाना साधा है। प्रधानमंत्री ने भाजपा के सत्ता में आने पर भर्ती परीक्षा आयोजित करने वाले राज्य लोक सेवा आयोग (पीएससी) में कथित घोटाले की जांच कराने का भी वादा किया है। इधर, भाजपा ने यह भी आरोप लगाया है कि आदिवासी बहुल इलाकों में धर्मांतरण हो रहा है तथा दावा किया कि सरकार उन पर अंकुश लगाने में विफल रही है। राज्य में भाजपा ने अब तक 21 विधानसभा सीटों के लिए उम्मीदवारों की घोषणा कर दी है, जबकि सत्ताधारी दल कांग्रेस ने अभी तक अपने उम्मीदवारों की घोषणा नहीं की है। दोनों प्रमुख दलों ने कहा है कि वे सामूहिक नेतृत्व के आधार पर चुनाव लड़ेंगे, न कि किसी एक राजनेता के चेहरे पर।
हम आपको बता दें कि पिछले चुनाव में कांग्रेस ने विधानसभा की कुल 90 सीटों में से 68 सीटें जीती थीं, जबकि भाजपा 15 सीटों के साथ दूसरे स्थान पर रही थी। पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी द्वारा स्थापित जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ (जे) को पांच सीटें मिली थीं और उसकी सहयोगी बहुजन समाज पार्टी (बसपा) ने दो सीटों पर जीत हासिल की थी। कांग्रेस को 2018 में 43.04 प्रतिशत मत मिले थे, जो भाजपा (32.97 प्रतिशत) से लगभग 10 प्रतिशत अधिक था।
तेलंगाना
माना जा रहा है कि तेलंगाना विधानसभा के लिए होने वाले चुनावों के लिए प्रचार अभियान के दौरान तेलंगाना राज्य लोक सेवा आयोग (टीएसपीएससी) की परीक्षाओं से जुड़े प्रश्नपत्र लीक मामले के अलावा दिल्ली आबकारी नीति मामले में भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) की विधान परिषद सदस्य के कविता पर लगे आरोपों, बीआरएस सरकार के ‘धरणी’ भूमि रिकॉर्ड पोर्टल से संबंधित शिकायतों और राज्य सरकार की कथित विफलताओं का मुद्दा छाया रह सकता है। वहीं, बीआरएस मतदाताओं को अपने पक्ष में मतदान करने के लिए प्रेरित करने के वास्ते विकास और जनकल्याण के अपने ‘तेलंगाना मॉडल’ को प्रचारित करना जारी रखेगी। देखा जाये तो तेलंगाना में नौकरियों की कमी एक प्रमुख मुद्दा है, क्योंकि युवाओं ने नये राज्य में नौकरियां हासिल करने की उम्मीद के साथ अलग प्रदेश के गठन के लिए लड़ाई लड़ी थी।
कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का आरोप है कि बीआरएस सरकार ‘हर परिवार को नौकरी देने का अपना वादा’ निभाने में नाकाम रही है। दोनों पार्टियों का दावा है कि बीआरएस सरकार ने अपने कार्यकाल के दौरान पर्याप्त भर्तियां न करके तेलंगाना के युवाओं को निराश किया है। वे टीएसपीएससी द्वारा आयोजित भर्ती परीक्षाओं के प्रश्नपत्र लीक होने के लिए भी सरकार को कसूरवार ठहरा रही हैं। प्रश्नपत्र लीक की घटनाओं ने तेलंगाना को हिलाकर रख दिया था। कांग्रेस और भाजपा ने इस साल मार्च और अप्रैल के दौरान बीआरएस सरकार के खिलाफ कई विरोध-प्रदर्शन किए थे। दोनों दलों ने बेरोजगारी भत्ता प्रदान करने के अपने चुनावी वादे को पूरा नहीं करने के लिए भी बीआरएस सरकार की आलोचना की थी।
इसके अलावा, कांग्रेस ने आरोप लगाया है कि दिल्ली आबकारी नीति घोटाला मामले में सत्तारुढ़ पार्टी की विधान परिषद सदस्य और मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव की बेटी के कविता पर लगे आरोपों के संबंध में बीआरएस और भाजपा के बीच एक मौन सहमति है। हम आपको बता दें कि प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने इस मामले में कविता से भी पूछताछ की है, जिससे कांग्रेस और भाजपा को मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव के नेतृत्व वाली बीआरएस सरकार पर हमला करने का एक हथियार मिल गया। यही नहीं, एकीकृत भूमि रिकॉर्ड प्रबंधन प्रणाली ‘धरणी’ को लेकर भी बीआरएस सरकार को कांग्रेस और भाजपा की कड़ी आलोचना का सामना करना पड़ा है। ऐसे में प्रचार अभियान के दौरान ‘धरणी’ के खराब कार्यान्वयन का मुद्दा भी प्रमुखता से उठने की उम्मीद है। कांग्रेस ने ‘धरणी’ को लेकर सरकार पर भ्रष्टाचार, अनियमितताओं और विफलताओं का आरोप लगाया है। कांग्रेस नेताओं ने दावा किया है कि बड़ी संख्या में छोटे और सीमांत किसानों के परिवारों के भूमि रिकॉर्ड को ऑनलाइन प्रणाली में शामिल नहीं किया गया है।
तेलंगाना में विरोधी दल जिन अन्य मुद्दों को लेकर बीआरएस सरकार को निशाना बना सकते हैं, उनमें गरीबों के लिए दो बेडरूम वाले घर बनाने, ‘हर परिवार को नौकरी देने’ और दलितों का कल्याण सुनिश्चित करने के पार्टी के चुनावी वादे शामिल हैं। कांग्रेस और भाजपा का मानना है कि बीआरएस सरकार ने अपने कार्यकाल के दौरान प्राप्त आवेदनों की संख्या की तुलना में गरीबों के लिए कम दो बेडरूम वाले घर बनाए हैं। कांग्रेस का आरोप है कि बीआरएस की प्रमुख दलित कल्याण योजना ‘दलित बंधु’ से जमीनी स्तर पर ज्यादातर लोगों को लाभ नहीं हुआ। वहीं, भाजपा का दावा है कि बीआरएस सरकार का वादे के मुताबिक दलितों को तीन एकड़ जमीन वितरित करने में नाकाम रहना भी एक बड़ा चुनावी मुद्दा होगा।
हम आपको यह भी बता दें कि हाल ही में कांग्रेस ने हैदराबाद में एक जनसभा के दौरान तेलंगाना के लिए छह चुनावी ‘गारंटी’ की घोषणा की थी। पार्टी इन घोषणाओं के जरिये जमीनी स्तर के मतदाताओं के बीच पैठ बनाना चाहती है। पड़ोसी राज्य कर्नाटक में किए गए इसी तरह के वादों के बलबूते कांग्रेस को इस साल मई में वहां आयोजित विधानसभा चुनावों में भाजपा को करारी शिकस्त देने और सत्ता में वापसी करने में मदद मिली थी।
दूसरी ओर, बीआरएस अध्यक्ष और मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव ने जोर देकर कहा है कि प्रति व्यक्ति आय के मामले में तेलंगाना देश में शीर्ष पर है। पार्टी नेता बीआरएस सरकार में राज्य में हुई प्रगति को दर्शाने के लिए अक्सर ‘मिशन भगीरथ’ का जिक्र करते हैं, जिसके तहत घरों में पाइप से पीने के पानी की आपूर्ति की जाती है। राज्य सरकार ने दावा किया है कि मुख्यमंत्री राव के दिमाग की उपज इस पहल के तहत हर घर में पाइप से पीने का पानी पहुंचाया जा रहा है। सामाजिक सुरक्षा पेंशन में बढ़ोतरी, किसानों के लिए ‘रायथु बंधु’ निवेश सहायता योजना और ‘रायथु बीमा’ जीवन बीमा योजना, ‘कल्याण लक्ष्मी’ एवं ‘शादी मुबारक’ जैसी विवाह सहायता योजना तथा कृषि क्षेत्र को हफ्ते में सातों दिन चौबीस घंटे मुफ्त बिजली आपूर्ति उन योजनाओं में शामिल है, जिनके जरिये बीआरएस अपनी उपलब्धियां गिनाने की कोशिश करेगी। बीआरएस केंद्र में सत्तारुढ़ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) और भाजपा की कथित सांप्रदायिक राजनीति तथा आंध्र प्रदेश पुनर्गठन अधिनियम के तहत तेलंगाना से किए गए वादों को पूरा नहीं करने को लेकर बेहद आलोचनात्मक रही है।
तेलंगाना में भाजपा की बात करें तो पिछले तीन साल में कुछ उपचुनाव और वृहद हैदराबाद नगर निगम चुनाव जीतने के बाद आंतरिक कलह का सामना करना पड़ा। अंसतुष्टों को शांत करने की कवायद के रूप में पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व को भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष के स्थान पर बंदी संजय कुमार को हटाकर केंद्रीय मंत्री जी किशन रेड्डी को नियुक्त करना पड़ा। भाजपा की ताकत, कमजोरियों, अवसरों और चुनौतियों का विश्लेषण करने के दौरान अगर भाजपा की ताकत के बारे में बात करें तो राज्य में पार्टी द्वारा बरकरार साफ छवि उसे फायदा पहुंचा सकती है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की लोकप्रियता और राज्य में पार्टी की राजनीतिक स्फूर्ति उसकी ताकत बन सकती है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरआरएस) से संबद्ध विश्व हिंदू परिषद (विहिप) और बजरंग दल जैसे संघ परिवार से समर्थन मिलेगा।
भाजपा की कमजोरियों की बात करें तो आपको बता दें कि कई निर्वाचन क्षेत्रों में भाजपा के पास मजबूत संगठनात्मक ढांचे का अभाव है और सभी 119 व