जातीय जनगणना पर आपत्ति क्यों जता रहे हैं कुछ लोग?

जातीय जनगणना पर आपत्ति क्यों जता रहे हैं कुछ लोग?

जाति जोड़ती नहीं बल्कि समाज को तोड़ती है। जाति की प्रकृति ही विखंडन और विभाजन करना है। भारत में जाति व्यवस्था प्राचीन काल से विद्यमान है। आज वह अव्यवस्था में तब्दील हो गयी है। वर्तमान में जाति की समस्या विकराल समस्या है। जाति के आधार पर राष्ट्र का उत्थान नहीं हो सकता। जाति प्रथा राष्ट्रीय चेतना को धूमिल कर देती है। फिर भी इससे छुटकारा पाना इतना आसान नहीं है। भारतीय समाज का ताना-बाना जाति व्यवस्था पर आधारित है। जब तक समाज में जाति के आधार पर भेदभाव होता रहेगा तब तक आदर्श समाज का निर्माण नहीं हो सकता। जाति प्रथा अगर गलत है तो उस पर परदा नहीं डालना चाहिए। जातीय जनगणना देशभर में होनी चाहिए और सत्य आंकड़े सामने आने चाहिए। भाजपा भी आज नहीं तो कल इसका समर्थन करेगी। समाज में आज भी अस्पृश्यता विद्यमान है। समाज के किसी भी वर्ग के साथ अन्याय एवं अत्याचार नहीं होना चाहिए। अनुसूचित समाज के बंधुओं ने बहुत अत्याचार व कष्ट सहन किये हैं फिर भी उन्होंने अपना धर्म नहीं छोड़ा। उनके साथ समानता का व्यवहार होना चाहिए और उनको आगे बढ़ने का अवसर उपलब्ध कराना चाहिए।

वर्तमान में देखा जाए तो पिछड़े और दलित समाज के बंधु किसी की कृपा नहीं चाहते हैं। वह समाज में बराबरी का स्थान और सम्मान चाहते हैं। पिछड़े और अति पिछड़े अभी तक पिछड़े हुए हैं क्योंकि इन्हें सभी प्रकार की सुविधा और अवसर नहीं मिल पाया। सभी व्यक्ति ईश्वर की संतान हैं। सभी में ईश्वर का अंश विद्यमान है फिर उनके प्रति नफरत का भाव नहीं रखना चाहिए। अगर व आर्थिक रूप से पीछे हैं तो इसके लिए जिम्मेदार वह नहीं बल्कि समर्थ समाज है।

बिहार में हुई जातीय जनगणना के आंकड़ों ने देश का ध्यान आकृष्ट किया है। जातिगत जनगणना कराने वाला बिहार देश का पहला राज्य बन गया है। बिहार में सर्वाधिक 63 प्रतिशत आबादी पिछड़े वर्ग की है। हिन्दू सवर्ण अपेक्षाकृत कम हुए हैं जबकि पिछड़ा वर्ग व अनुसूचित जाति की संख्या में वृद्धि हुई है। अभी 15.52 प्रतिशत सवर्ण हैं। वहीं अनुसूचित जाति 19.65 प्रतिशत व अनुसूचित जनजाति 01.68 प्रतिशत है। वहीं मुस्लिम 18 प्रतिशत हैं। इससे पहले 1931 में जातिगत जनगणना हुई थी। 1931 की जनगणना के अनुसार हिन्दू जनसंख्या जहां 85 प्रतिशत से घटकर 82 प्रतिशत हो गयी है। वहीं मुस्लिम जनसंख्या 14 प्रतिशत से बढ़कर 17 प्रतिशत हो गयी है। हिन्दू जातियों में देखें तो केवल यादवों की जनसंख्या में दो प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हुई है। वहीं मल्लाह, मुसहर व चमार में 01 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हुई है शेष सभी हिन्दू जातियों की जनसंख्या के प्रतिशत में गिरावट आयी है। यह गिरावट चिंताजनक है।

सोशल मीडिया पर लोग लिख रहे हैं कि बिहार में हैं अगर आप तो सावधान रहिए, या फिर बिहार छोड़ दीजिए। कम से कम बच्चों को बाहर ही भेज दीजिए। बिहार अब रहने लायक नहीं रहा। ऐसे लोग सामाजिक विघटन को बढ़ावा देना चाहते हैं। भारत के नौ राज्यों में हिन्दू अल्पसंख्यक हो गए हैं। मुस्लिम जनसंख्या देश में तेजी से बढ़ रही है। उन्हें इसकी चिंता नहीं है। जाति प्रथा को कैसे समाप्त किया जाए इस पर विचार होना चाहिए। इसके लिए जरूरी है कि सबसे पहले उपजातियों को समाप्त किया जाए। क्योंकि इनके बीच आपसी तौर तरीके तथा स्तर में अधिक समानता है। लेकिन राजनीतिक दल जातियों में उप जाति खोज रहे हैं।

वर्तमान में देखा जाये तो जातिवाद का विरोध करने वाले सामाजिक व राजनीतिक संगठन भी जातिवाद से ग्रस्त हैं। भाजपा समेत सभी राजनैतिक दल विधानसभा व लोकसभा चुनाव के समय जातिगत समीकरण को ही आधार बनाकर प्रत्याशी चयन करते हैं। राजनीतिक दल जातियों में उपजातियां खोजते हैं। वोटों के लिए जातीय सम्मेलन करते हैं। पिछड़ों में अति पिछड़ों की तलाश कर रहे हैं। जाति प्रथा किसी भी रूप उचित नहीं है। लेकिन जाति के आधार पर आरक्षण, जाति के आधार पर आयोग का गठन, जाति के आधार पर संवैधानिक संस्थाएं, जातीय संगठनों को मान्यता, जाति के आधार पर राजनीति में भागीदारी, जाति के आधार पर मोर्चा व प्रकोष्ठों का गठन, जाति के आधार पर योजनाओं का निर्माण होता है तो जातीय जनगणना पर आपत्ति नहीं करनी चाहिए।

आज जातीय जनगणना की मांग कांग्रेस भी कर रही है। कांग्रेस पार्टी पिछड़ों की समर्थक कभी नहीं रही। पिछड़ों के उत्थान के लिए कांग्रेस ने काम भी नहीं किया। जब मण्डल कमीशन लागू किया गया था जब भी विपक्ष के नेता के तौर पर राजीव गांधी ने विरोध किया था। कर्नाटक की पिछली कांग्रेस सरकार ने भी जातिगत जनगणना कराई थी लेकिन उसका विवरण जारी नहीं किया। राजस्थान में भी 2011 में तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने जातिगत जनगणना कराई थी लेकिन उसके आंकड़े सार्वजनिक नहीं किये। मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्री रहते साल 2011 में जो आखिरी जनगणना हुई थी, उसमें जातिगत आंकड़े भी दर्ज किये गए थे, लेकिन यह डाटा सार्वजनिक नहीं किया गया।

बिहार सरकार ने जातिगत आंकड़े जारी किये हैं। अब देखना यह है बिहार सरकार उन जातिेयों के उत्थान के लिए कोई नीति बनाती है या फिर केवल यह मुद्दा राजनैतिक स्टंट मात्र बनकर रह जायेगा। भाजपा के सहयोगी दल भी जातिगत जनगणना कराये जाने की मांग कर रहे हैं। इससे भाजपा पर दबाव निश्चित तौर पर बढ़ेगा क्योंकि इतनी बड़ी आबादी को नकारा नहीं जा सकता है। सवर्ण हिन्दू हमेशा ही जातिगत जनगणना के विरोधी रहे हैं। जाति व्यवस्था देश की सबसे बड़ी समस्या है। समस्या से ही समाधान निकालना है। यह सच्चाई प्रकट होनी थी। बावजूद उनकी हिस्सेदारी काफी कम है, आज भी उनके साथ भेदभाव हो रहा है। यदि जाति जनगणना के आंकड़े सही होंगे तो उनके कल्याण के लिए संचालित की जाने वाली योजनाओं के क्रियान्वयन में आसानी होगी। इससे उनकी शैक्षणिक, आर्थिक स्थिति कैसी है, भविष्य में उनके लिए किस तरह की नीतियों की आवश्यकता है, इसके बारे में निर्णय लेने में आसानी होगी। देखा जाये तो भारत के अलावा कोई भी ऐसा देश नहीं होगा जिसमें इतनी जाति और उप जाति होंगी। फिर भी सभी जातियों में आपस में एकता थी और आज भी सामाजिक एकता विद्यमान है।

वैसे जातीय जनगणना से भाजपा विरोधी पार्टियों को बहुत फायदा होने वाला नहीं है। पिछड़ों, अति पिछड़ों और दलितों में हिन्दुत्व के प्रति स्वाभिमान और मैं भी हिन्दू हूं का बोध विकसित हुआ है। देश में पिछड़े समाज के सबसे ज्यादा सांसद व विधायक भाजपा में हैं। नरेन्द्र मोदी के प्रभावशाली व्यक्तित्व के कारण पिछड़े समुदाय का वोट भाजपा के पास ही सर्वाधिक जाता है। वह जाति-जनगणना होने से भाजपा विरोधी पार्टियों के पास जाने वाला नहीं है। जाति की बात नापसंद करने वाले युवाओं की अब बड़ी संख्या है। ये युवा हर समुदाय में हैं और समाज के मत को प्रभावित करते हैं। इससे भाजपा और अधिक मजबूत होगी।

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