“सोशल मीडिया और इंटरनेट के इस दौर में लड़के-लड़कियां कम उम्र में ही प्यूबर्टी हासिल कर लेते हैं. इस शुरुआती युवावस्था की वजह से वे एक-दूसरे के प्रति आकर्षित होते हैं, जहां वे शारीरक संबंध भी बना लेते हैं. इस तरह के केस में लड़के बिल्कुल भी अपराधी नहीं होते.” यह टिप्पणी मध्य प्रदेश हाई कोर्ट की है, जहां बेंच ने केंद्र सरकार को यौन संबंधों के लिए सहमति की उम्र कम करने की सलाह दी थी. मध्य प्रदेश हाई कोर्ट इकलौता नहीं है जिसने केंद्र को यह सलाह दी. अब इस मामले में विधि आयोग ने अपना सुझाव पेश किया है.
विधि आयोग या कहें लॉ कमिशन ने पॉक्सो एक्ट के तहत आने वाले मामलों से निपटने के लिए कानून में कुछ संशोधन के सुझाव दिए हैं. देश की अदालतों में ऐसे कई मामले सामने आए, जहां 18 साल से कम उम्र की लड़की के साथ संबंध बनाने पर लड़के को अपराधी करार दिया गया या बलात्कार जैसे गंभीर आरोप लगे. इन मामलों से संबंधित सुनवाई के दौरान एमपी हाई कोर्ट से लेकर दिल्ली-मद्रास समेत कई हाई कोर्ट बेंच ने केंद्र को सहमित की उम्र कम करने की सलाह दी.
गंभीरता से नहीं निपटने का सुझाव
केंद्र सरकार ने अदालतों के सुझाव पर विधि आयोग को यह जिम्मेदारी सौंपी. अब आयोग ने संशोधन के कुछ प्रस्ताव के साथ अपनी राय दी. आयोग ऐसे तो सहमति की उम्र घटाने के खिलाफ है लेकिन प्रस्ताव के रूप में इस तरह के केस से निपटने का तरीका पेश किया है. आयोग ने कहा कि पॉक्सो कानून में संशोधन जरूरी है. अगर कोई 18 साल से कम उम्र की लड़की के साथ यौन संबंधों का मामले सामने आता है, तो इस तरह के केस से उतनी गंभीरता से नहीं निपटा जाना चाहिए, जितना की कानून के तहत कार्रवाई की उम्मीद की गई है.
पॉक्सो एक्ट के तहत उम्रकैद-मौत की सजा का प्रावधान
पॉक्सो कानून बच्चों को यौन उत्पीड़न और अश्लील साहित्य (पोर्नोग्राफी) से बचाने की एक कोशिश है. बीते कुछ सालों में ऐसे कई मामले सामने आए, जहां छिटपुट विवाद देखे गए हैं. इस कानून में 18 साल से कम उम्र के शख्स को एक बच्चे के रूप में परिभाषित किया गया है. ऐसे में इससे संबंधित केस से निपटना थोड़ा मुश्किल होता है. पॉक्से एक्ट की धारा 6 के तहत इस तरह के केस से सख्ती से निपटने का निर्देश दिया गया है. इस केस में 20 साल या आजीवन कारावास के सजा का प्रावधान है. कुछ गंभीर मामलों में आरोप के लिए मौत की सजा का भी प्रावधान है.
लॉ कमिशन ने किया सिफारिश
लॉ कमिशन ने कानून में संशोधन के सुझाव तो दिए हैं और कहा है कि 16-18 साल की आयु के बीच यौन संबंधों में मौन स्वीकृति होती है, लेकिन कानून इसकी इजाजत नहीं देता. लॉ कमिशन ने कहा है कि ऐसे मामलों में सजा तय करते समय विचार किया जाना चाहिए. सुझावों के मुताबिक, विशेष अदालतों को पॉक्सो कानून की उप-धारा (1) के तहत निर्धारित न्यूनतम सजा से कम सजा देने की अनुमति दी जाएगी. विशेष अदालतों को सजा तय करते समय विभिन्न पहलुओं पर विचार करने की सलाह दी गई है. कहा गया है कि ऐसे मामलों में अदालत को देखना चाहिए कि क्या यौन संबंध बनाने में सहमति थी?
अदालतों को विधि आयोग का सुझाव
अदालतें आरोपी और बच्चे के बीच उम्र के अंतर का भी आकलन करेंगी और यह सुनिश्चित करेंगी कि यह तीन साल से अधिक न हो. विधि आयोग की सिफारिश के मुताबिक, अदालत आरोपी के आपराधिक इतिहास, अपराध के बाद आचरण का आकलन करेगी और बच्चे पर अनुचित प्रभाव, धोखाधड़ी, गलत बयानी, जबरदस्ती, बल प्रयोग, हिंसा या धोखे की गैर मौजूदगी की पुष्टि करेगी. साथ ही, अदालत इस बात को सत्यापित करेगी कि आरोपी की तरफ से पीड़ित के परिवार को किसी तरह की धमकियां या कोई बदसलूकी ना की गई हो. इसके बाद ही अदालतें सजा तय करेगी. हालांकि, यह अभी विधि आयोग की तरफ से सुझाव दिया गया है. इसपर सरकार ने अपनी सहमति नहीं दी है.