तमिलनाडु में AIADMK के एनडीए गठबंधन से अलग होने की घोषणा ने बीजेपी को स्तब्ध कर रखा है. बीजेपी की तरफ से अन्नाद्रमुक के अलग होने पर किसी भी तरह की कोई आधिकारिक टिप्पणी नहीं दी जा रही है. बीजेपी सूत्रों का कहना है कि पार्टी के राष्ट्रीय नेतृत्व को उम्मीद नहीं थी कि अन्नाद्रमुक, जो पिछले कुछ समय से तमिलनाडु बीजेपी अध्यक्ष के अन्नामलाई के खिलाफ लगातार शिकायत कर रही है, वो इस तरह से अलग हो जाएगी. बीजेपी नेताओं को भरोसा है कि पार्टी का शीर्ष नेतृत्व जल्द ही पहल कर एआईएडीएमके के साथ बातचीत और समझौता करने के प्रयास शुरू कर सकता है.
दरअसल तमिलनाडु की राजनीति में बीजेपी सदा हाशिए पर बनी रही है और मौजूदा प्रदेश अध्यक्ष के अन्नामलाई पूरे प्रदेश का दौरा कर सूबे में बीजेपी को अन्नाद्रमुक की छाया से बाहर निकालने का प्रयास कर रहे हैं. मगर इसके बावजूद एनडीए का कुनबा बढ़ाने की कोशिश में लगातार जुटी बीजेपी के लिए एआईएडीएमके का अलग होना किसी झटके से कम नहीं है.
बीजेपी नेता का क्या कहना है?
तमिलनाडु के पूरे राजनीतिक प्रकरण से वाकिफ बीजेपी के एक वरिष्ठ नेता का मानना है कि लोकसभा चुनाव के लिए अभी पर्याप्त समय होने के कारण पार्टी के शीर्षस्थ नेतृत्व ने तमिलनाडु को लेकर अब तक कोई गंभीर चुनावी चर्चा शुरू नहीं की है. इसके बावजूद एआईएडीएमके से मिली शिकायत के बाद हाल ही में प्रदेश अध्यक्ष के अन्नामलाई को अन्नाद्रमुक के खिलाफ किसी भी तरह का भड़काऊ टिप्पणी से बचने की हिदायत दी गई थी. जो ये दिखाता है कि बीजेपी राष्ट्रीय नेतृत्व गठबंधन को बरकरार रखने के लिए उत्सुक रहा है.
दरअसल के अन्नामलाई द्वारा के जयललिता और सीएन अन्नादुरई जैसे शख्सियत पर हमले के बाद अन्नाद्रमुक के नेता काफी असहज और नाराज रहते हुए बीजेपी से दूरी बनाने की लगातार कोशिश कर रहे थे. पार्टी सूत्रों का कहना है कि प्रदेश अध्यक्ष के अन्नामलाई की आक्रामक राजनीतिक शैली के जरिए बीजेपी तमिलनाडु में जमीन पर अपनी मजबूत उपस्थिति दर्ज कराने में सफल हो रही है और एआईएडीएमके से दूरी हमें स्वतंत्र रूप से अपना जनाधार मजबूत करने में मदद कर सकती है.
तमिलनाडु की राजनीति से वाकिफ पार्टी के नेताओं का मानना है कि ये संभव है कि अन्नामलाई को भरपूर समर्थन करना पार्टी की एक स्ट्रेटजी का हिस्सा हो फिर भी अन्नाद्रमुक जैसे एक पुराने विश्वसनीय और मजबूत सहयोगी का अलग होना ज्यादा महंगा सौदा हो सकता है, खासकर तब जब पार्टी का अपना कैडर अब भी उतना मजबूत ना हो. हाल में अपने तमिलनाडु यात्रा के दौरान बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष के अन्नामलाई ने जिन मुद्दों पर सबसे ज्यादा ताकत लगाई है उनमें सबसे अहम मुद्दों में से एक सनातन धर्म विवाद रहा.
सनातन धर्म पर सवाल उठाने वाले डीएमके नेताओं के खिलाफ कड़ा स्टैंड लेकर उसे एक बड़ा इश्यू बनाने से होने वाले पोलराइजेशन से बीजेपी को उत्तर भारत और देश के अन्य हिस्सों में निश्चित तौर पर फायदा होता दिखता है लेकिन तमिलनाडु में इस मुद्दे का फायदा कितना और नुकसान कितना होगा इसको भी लेकर एआईएडीएमके लगातार असेसमेंट करता रहा. तमिलनाडु में डीएमके द्वारा सनातन पर सवाल खड़े करने का पुराना इतिहास रहा लेकिन प्रो हिंदू एजेंडा पहली बार चलाकर बीजेपी दक्षिण में एक वाटर टेस्ट भी कर रही है. अन्नाद्रमुक पार्टी को बीजेपी के इस नए प्रयोग पर बहुत भरोसा नहीं था.
बहरहाल पार्टी नेताओं को भरोसा है कि राष्ट्रीय नेतृत्व संबंधों को सुधारने के लिए शीघ्र कदम उठाएगा और लोकसभा चुनाव के मद्देनजर राज्य में नए पहल हो सकते हैं. गौरतलब है विगत लोकसभा चुनाव बीजेपी और एआईएडीएमके गठबंधन में लड़े थे. तमिलनाडु की कुल 39 सीटों में से 35 पर एआईएडीएमके ने अपने उम्मीदवार उतारे थे जबकि 4 सीटों पर बीजेपी ने अपने प्रत्याशी खड़े किए थे. सूबे की 39 सीटों में से 38 डीएमके ने जीते थे जबकि 1 सीट एआईएडीएमके जीत पाई थी.