स्वतंत्र भारत में हर व्यक्ति को सम्मान और उचित स्थान मिले, हमारा भारत विश्वगुरु बने, समाज के अंतिम पायदान पर खड़े व्यक्ति के चेहरे पर खुशी हो, हमारी सांस्कृतिक पहचान बनी रहे, ऐसी ही सोच भारतीय राजनीति के संत पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी की थी। इसके लिए उन्होंने स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद अनिश्चय की स्थिति में खड़े देश को एकात्म मानववाद की विचारधारा दी और अंत्योदय का दर्शन दिया था। उन्होंने देश की दिशा और दशा को बदलने के लिए जो बीज बोए थे, वह अब फल देने लगा है। आज उनके चिंतन को मूर्त रूप देने और इनकी सोच को साकार करने का कार्य उनके वैचारिक उत्तराधिकारी और भारत के यशस्वी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कर रहे हैं। जिस प्रकार राष्ट्र के निर्माण व जनसेवा में तल्लीनता के कारण दीनदयाल जी का कोई व्यक्तिगत जीवन नहीं रहा, उसी प्रकार नरेंद्र मोदी ने भी अपने को प्रधानमंत्री नहीं, बल्कि प्रधान सेवक मानते हुए अंतिम व्यक्ति की खुशहाली के लिए सरकार को सेवा का माध्यम बनाया है। एक योग्य उत्तराधिकारी ही अपने पूर्वजों को सम्मान और उनके सपने को साकार करता है और पूर्वजों की प्रेरणा से ओतप्रोत नरेंद्र मोदी डॉ. श्यामाप्रसाद मुखर्जी, पंडित दीनदयाल उपाध्याय और भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी जी के प्रति सम्मान प्रदर्शित करते हुए उनके सपनों को साकार करने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं।
पं. दीनदयाल उपाध्याय का उद्देश्य स्वतंत्रता की पुनर्रचना के प्रयासों के लिए विशुद्ध भारतीय तत्व दृष्टि प्रदान करना था। उन्होंने भारत की सनातन विचारधारा को सामयिक रूप में प्रस्तुत करते हुए एकात्म मानववाद की विचारधारा भारत जैसे देश को दी। उनका विचार था कि आर्थिक विकास का मुख्य उद्देश्य सामान्य मानव का सुख होना चाहिए। उनका कहना था कि भारत में रहने वाला, इसके प्रति अपनत्व की भावना और आदर का भाव रखने वाला मानव समूह एक जन हैं। चाहे उनकी जीवन प्रणाली हो, चाहे कला हो, फिर चाहे साहित्य हो या दर्शन हो, सब मिलकर ही भारतीय संस्कृति है। इसलिए भारतीय राष्ट्रवाद का आधार यह संस्कृति ही है। इस संस्कृति में निष्ठा रहे तभी भारत एकात्म रहेगा। किसी भी व्यक्ति या समाज के गुणात्मक उत्थान के लिए आर्थिक और सामाजिक पक्ष ही नहीं, बल्कि उसका सर्वांगीण विकास भी अनिवार्य है।
पं. दीनदयाल उपाध्याय जी का मत था कि राष्ट्र की निर्धनता और अशिक्षा को दूर किए बिना किसी भी प्रकार की गुणात्मक उन्नति संभव नहीं है। 1951 में डॉ. श्यामाप्रसाद मुखर्जी द्वारा भारतीय जनसंघ की स्थापना की गई तो प्रथम महामंत्री के रूप में दीनदयाल जी ने राजनीतिक कुशलता और सांगठनिक क्षमता का परिचय दिया। उनकी इस अद्भुत सांगठनिक क्षमता से प्रभावित होकर डॉ.श्यामा प्रसाद मुखर्जी को कहना पड़ा था कि यदि मुझे ऐसे दो दीनदयाल मिल जाएं तो मैं देश की राजनीति का मानचित्र बदल दूंगा। 1967 में जनसंघ के अध्यक्ष के पद पर पदासीन हुए, लेकिन दुर्भाग्यवश वे महज 44 दिनों तक ही कार्य कर पाए। 11 फरवरी 1968 को उनकी निर्मम हत्या कर दी गई।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी उसी सोच के आधार पर देश को आगे ले जा रहे हैं। एकात्म मानववाद को मूल केंद्र में रखते हुए केंद्र की मोदी सरकार गरीब से गरीब व्यक्ति के उत्थान एवं विकास के संकल्प के साथ समाज के कमजोर और गरीब वर्ग के उत्थान के लिए मोदी सरकार कार्य कर रही है। गत नौ वर्षों से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में चल रही सरकार ने गरीब-कल्याण के अपने लक्ष्य से पंडित दीनदयाल उपाध्याय के एकात्म मानववाद के दर्शन और अंत्योदय की विचारधारा को साकार करके दिखाया है। सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास और सबका प्रयास के लिए केंद्र सरकार लगातार काम कर रही है। नरेंद्र मोदी की सरकार का सीधा असर है कि अंत्योदय योजनाओं का सबसे ज्यादा लाभ गरीब, वंचित, शोषित, पीड़ित के साथ ही समाज के अंतिम पायदान पर खड़े लोगों को मिल रहा हैं। पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी ने व्यक्तिगत व सामुदायिक जीवन को गुणवत्ता प्रदान करने का मार्ग दिखाया था, जिसे केंद्र की मोदी जी की सरकार ने प्रशस्त किया है। वर्तमान समय में समाज जीवन को एकात्म मानववाद से निकले मूल्यों व संस्कारों को आत्मसात करना आवश्यक हो गया है। पं. दीनदयाल उपाध्याय जी के जीवन के प्रत्येक पक्ष जैसे विचारक, संपादक, दार्शनिक अथवा अर्थशास्त्री का रहा हो, हर क्षेत्र में उन्होंने सहयोग, समन्वय व सह अस्तित्व को स्थान दिया। अंत्योदय के जनक पं. दीनदयाल उपाध्याय जी ने समाज और देश के वंचित वर्ग के हित संवर्धन के लिए साझा सामाजिक दायित्वों को प्राथमिकता देने के लिए सम्यक दृष्टि भी प्रदान की। राष्ट्रधर्म, पांचजन्य और स्वदेश जैसी राष्ट्रवादी पत्रिकाओं के यशस्वी संपादक के रूप में राष्ट्रवादी स्वर को मुखर करनेवाले एक सफल संपादक के साथ ही पं. दीनदयाल उपाध्याय का व्यक्तित्व संवेदना से परिपूर्ण था, इसलिए वे एक सफल साहित्यकार एवं मानव हित को समर्पित संवेदनशील चिन्तक भी थे।
यही कारण है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारतीय राजनीति के ऐसे महान चिंतक पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी के विचार और चिंतन का लाभ देश को देने के उद्देश्य से उनके नाम पर कई शोध संस्थानों की स्थापना कराई है। उनकी सोच के अनुरूप कई योजनाएं चलाकर आम लोगों को लाभ पहुंचाया है। इनमें दीनदयाल उपाध्याय स्वरोजगार योजना, दीनदयाल उपाध्याय गृह आवास विकास योजना, दीनदयाल उपाध्याय किसान कल्याण योजना, दीनदयाल उपाध्याय रसोई योजना, दीनदयाल उपाध्याय वरिष्ठ नागरिक तीर्थयात्रा योजना आदि शामिल हैं। इसके अलावा कई राज्य सरकारों ने भी उनके नाम पर अनेक जन कल्याणकारी योजनाएं चलाई हैं।
केंद्र की मोदी सरकार और भाजपा शासित राज्य सरकारों ने उनकी स्मृति को जीवंत रखने के लिए कई संस्थानों की स्थापना उनके नाम पर की है। जिस स्थान पर उनकी निर्मम हत्या हुई थी, उस मुगलसराय स्टेशन का नामकरण पं. दीनदयाल उपाध्याय जंक्शन करते हुए उनकी स्मृतियों को जीवंत रखा गया है। रेलगाड़ियों में आर्थिक रूप से कमजोर लोगों के लिए दीनदयालु कोच का संचालन कर उनकी रेलयात्रा को सुविधायुक्त और सुगम बनाया गया है। विश्व की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी भारतीय जनता पार्टी के केन्द्रीय कार्यालय के निकट बने दीनदयाल उपाध्याय उद्यान में उनकी आदमकद प्रतिमा लगाईं गई है, जिसका अनावरण पंडित जी की जयंती पर 25 सितंबर 2023 को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के कर कमलों से किया जाना है।
आज पूरा विश्व उम्मीद भरी नजरों के साथ भारत की ओर ही देख रहा है। इसके पीछे निश्चित रूप से नरेंद्र मोदी सरकार की एकात्म मानववाद पर आधारित नीतियां और अन्त्योदय के आधार पर किया जाने वाला कार्य ही है। भारतीय राजनीति के महान संत, साधक, चिन्तक और सांस्कृतिक राष्ट्रवाद का सूत्र वाक्य देनेवाले महान विभूति को उनकी जयंती पर शतकोटि नमन्।