आज विश्व के कई देश विभिन्न प्रकार की राजनैतिक, सामाजिक एवं आर्थिक समस्याओं से जूझ रहे हैं। जबकि भारत न केवल आर्थिक बल्कि राजनैतिक एवं सामाजिक क्षेत्रों में भी तुलनात्मक रूप से बहुत मजबूत स्थिति में दिखाई दे रहा है, इसलिए विश्व के कई देश आज अपनी विभिन्न प्रकार की समस्याओं के हल के लिए भारत की ओर आशाभारी नजरों से देख रहे हैं। किसी भी देश के लिए अपने नागरिकों का अन्य देशों के नागरिकों से सीधा सम्पर्क स्थापित करने के लिए यातायात के साधनों का विकसित अवस्था में होना बहुत जरूरी है। इससे व्यापार के साथ साथ एक दूसरे देश की संस्कृति को समझने एवं अपनाने का मौका मिलता है। हालांकि, आज हवाई यातायात के साधन तो पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध हैं परंतु यह एक बहुत खर्चीला साधन है इसलिए इसका उपयोग साधारण नागरिक के लिए बहुत मुश्किल है। इस दृष्टि से हाल ही में भारत-पश्चिम एशिया-यूरोप आर्थिक गलियारे की घोषणा से इस रूट पर पड़ने वाले समस्त देशों के बीच व्यापार के साथ साथ इन देशों के आम नागरिकों के बीच आपसी सम्पर्क बढ़ने की सम्भावना भी बढ़ गई है।
उक्त आर्थिक गलियारे की घोषणा भारत, संयुक्त अरब अमीरात, सऊदी अरब, अमेरिका, फ्रांस, जर्मनी, इटली और यूरोपीय संघ ने जी20 शिखर सम्मेलन के दौरान की है। इससे एशिया, अरब की खाड़ी और यूरोप के बीच बढ़ी हुई कनेक्टिविटी और आर्थिक एकीकरण के माध्यम से आर्थिक विकास को प्रोत्साहन के साथ ही इन देशों के नागरिकों के बीच आपसी सम्बंध प्रगाढ़ होने की सम्भावना भी व्यक्त की जा रही है। उक्त गलियारा भारत से संयुक्त अरब अमीरात, सऊदी अरब, जॉर्डन और इजराइल के माध्यम से यूरोप तक विस्तारित होगा। उक्त घोषणा के अंतर्गत दो अलग-अलग गलियारे शामिल होंगे। एक, पूर्वी गलियारा जो भारत को पश्चिम एशिया से जोड़ेगा और दूसरा, उत्तरी गलियारा जो पश्चिम एशिया को यूरोप से जोड़ेगा। इसमें एक रेल लाइन शामिल होगी जिसका निर्माण पूर्ण होने पर यह दक्षिण पूर्व एशिया से भारत होते हुए पश्चिम एशिया तक माल एवं सेवाओं के परिवहन को बढ़ावा देने वाले मौजूदा मल्टी-मॉडल परिवहन मार्ग के पूरक के तौर पर एक विश्वसनीय एवं किफायती सीमा-पार जहाज-से-रेल पारगमन नेटवर्क प्रदान करेगी।
दरअसल चीन ने वर्ष 2016 में वन बेल्ट वन रोड परियोजना (बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) प्रारम्भ की थी। इस परियोजना में एशिया, यूरोप एवं अफ़्रीका के बीच भूमि और समुद्र के माध्यम से कनेक्टिविटी बढ़ाने का प्रयास किया जा रहा है। इस परियोजना से आज लगभग समस्त सदस्य देश परेशान है क्योंकि चीन ने इसके जरिये कई देशों को कर्ज के जाल में फंसा दिया है तथा साथ ही वह अपनी विस्तारवाद की नीति को भी इस योजना के माध्यम से आगे बढ़ा रहा है। इसलिए इटली द्वारा इस परियोजना से बाहर निकलने पर विचार किया जा रहा है जिससे चीन को बड़ा झटका लगा है। चीन के खास दोस्त पाकिस्तान में भी चीनी नागरिकों पर हाल ही में हुए हमलों के चलते इस परियोजना के कार्य में बाधा खड़ी हुई है। भारत द्वारा अन्य देशों के सहयोग से प्रारम्भ किए जा रहे आर्थिक गलियारे से चीन द्वारा विभिन्न देशों के सहयोग से प्रारम्भ की गई बीआरआई परियोजना को बहुत अधिक झटका लग सकता है।
भारतीय सनातन संस्कृति तो प्राचीन काल में पूरे विश्व में फैली हुई थी। अमेरिका, लातिनी अमेरिका, मेक्सिको, जर्मनी जिसे यूरोप का आर्यावर्त कहा जाता है। मिस्र से लेकर दक्षिण अफ्रीका तक, कंपूचिया, लाओस, चीन, जापान आदि देशों में स्थान स्थान पर ऐसे अवशेष एवं साक्षय विद्यमान हैं जो बताते हैं कि आदिकाल में वहां भारतीय सनातन संस्कृति का ही साम्राज्य था। यह विस्तार मात्र सांस्कृतिक एवं धार्मिक ही नहीं था अपितु, इन राष्ट्रों की अर्थव्यवस्था, शासन संचालन व्यवस्था, कला, उद्योग, इत्यादि में भारतीय सनातन संस्कृति का योदगान स्पष्ट दिखाई देता रहा है। मारिशस, आस्ट्रेलिया, फिजी व प्रशांत महासागर के अन्य छोटे छोटे द्वीप, रूस, कोरिया मंगोलिया, इंडोनेशिया, आदि में आज भी कई विस्तृत साक्ष्य मिलते हैं जिससे हमें भारतीय संस्कृति के विश्व संस्कृति होने की एक झलक मिलती है।
उस खंडकाल में विश्व निर्माण अभियान पर निकले हुए भारतीय व्यवसाय, शिक्षा, चिकित्सा, सुशासन आदि अनेक उपलब्धियों से सुदूर देशों को लाभान्वित करते थे। वैश्विक स्तर पर जन मानस की भलाई के लिए हमारे पूर्वज उत्साह और साहस के साथ अपनी यात्रा आरंभ करते थे। उन दिनों की जाने वाली यात्राओं के लिए नौकायन और दुर्गम पैदल थल यात्रा ही मात्र साधन थे। इन परिस्थितियों में अधिक सरल उपाय जलयात्रा का ही रह जाता था। विश्व परिवार के साथ सम्पर्क बनाने के लिए प्राचीन काल में भारत ने अपने जलयान के साधनों को अधिकाधिक विकसित किया था। जल मार्गों की जानकारी प्राप्त कर, नौकायन विज्ञान को विकसित करने के लिए घोर प्रयत्न किया गया था। न केवल भारतीय समुद्र तटों पर अच्छे बंदरगाह विकसित किए गए थे बल्कि अन्य देशों में भी सुविधाजनक बंदरगाह बनाए गए थे। इस प्रकार प्राचीन काल में भी भारत से पश्चिमी एशिया के देशों से होते हुए यूरोप एवं अमेरिका तक जलमार्ग विकसित किए गए थे।
केरल, चोल और पांड्य नामक दक्षिण भारत के राज्यों का व्यापार ग्रीस, रोम और चीन के साथ होता था। चंद्रगुप्त मौर्य की जलसेना बहुत विकसित और विस्तृत थी। इसका विवरण चाणक्य कृत- अर्थशास्त्र में दिया गया है। प्रसिद्ध यात्री मेगस्थनीज ने भी अपनी यात्रा विवरण में भारत की समुन्नत जल शक्ति का उल्लेख किया है। इसी प्रकार प्राचीन भारत और प्राचीन अमेरिका में घनिष्ठ सम्बंध था। व्यापारी और धर्म उपदेशक लम्बी जल यात्राएं करके आते जाते थे। इंद्र, गणेश, अग्नि, शिव, एवं अन्य देवी देवता भारत की तरह वहां भी पूजे जाते थे। इतिहासकार बताते हैं कि उस समय अमेरिका एक प्रकार से भारतवर्ष का एक सांस्कृतिक उपनिवेश था।
भारत-पश्चिमी एशिया-यूरोप आर्थिक गलियारा भारत और रोमन साम्राज्य के बीच एक प्राचीन व्यापार मार्ग होने का संकेत भी देता है। ऐसे साक्ष्य मिलते हैं कि भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारे का अस्तित्व आम युग की शुरुआती शताब्दियों में चरम पर था। सिल्क रूट के नाम से भी एक गलियारा उपलब्ध था। इसी संदर्भ में लेखक विलियम डेलरिम्पल की पुस्तक द गोल्डन रोड इस विषय पर विस्तार से प्रकाश डालती है। विलियम डेलरिम्पल ने बताया कि प्राचीन लाल सागर व्यापार मार्ग, चीन से भूमिगत मार्ग की तुलना में बहुत बड़ा और ऐतिहासिक रूप से अधिक महत्वपूर्ण रहा है। अब उक्त नया गलियारा उक्त वर्णित पुराने गलियारों से भी अधिक उच्चस्तरीय होगा।
इस प्रकार, नया आर्थिक गलियारा कहीं अपने इतिहास को दोहराने तो नहीं जा रहा है कि आगे आने वाले समय में इसके माध्यम से भारत एक बार पुनः पूरे विश्व में एक महान आर्थिक, सांस्कृतिक एवं आध्यात्मिक शक्ति बनकर उभरे। हालांकि भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने इस गलियारे के सम्बंध में कहा है कि मजबूत कनेक्टिविटी और बुनियादी ढांचा मानवता के लिए बुनियादी आधार है तथा भारत ने हमेशा इस पर जोर दिया है। भारत एक विकसित राष्ट्र बनने के लिए एक मजबूत नींव रखने जा रहा है। पीजीआईआई (वैश्विक बुनियादी ढांचे और निवेश के लिए साझेदारी) के माध्यम से, भारत ‘ग्लोबल साउथ’ देशों में बुनियादी ढांचे के अंतर को भरने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। भारत कनेक्टिविटी को क्षेत्रीय सीमाओं तक सीमित नहीं करता है। भारत का विश्वास है कि कनेक्टिविटी आपसी विश्वास को मजबूत करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। ‘ग्लोबल साउथ’ शब्द का इस्तेमाल एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका के विकासशील देशों के लिए किया जाता है। भारत के प्रधानमंत्री ने इन समस्त देशों की संप्रभुता और अखंडता का सम्मान करने पर जोर दिया है। भारत का स्पष्ट मत है कि कर्ज के बोझ के बजाय वित्तीय व्यवहार्यता को बढ़ावा देने के साथ-साथ सभी पर्यावरणीय दिशानिर्देशों का पालन करने पर भी जोर दिया जाना चाहिए।