द्विपक्षीय समझौतों को छोड़ कर सामूहिक तौर पर जी-20 के सदस्यों पर कोई बाध्यता नहीं है कि वो जी-20 के मंच पर किए अपने किए वादों को निभाएं ही। जी-20 के पास भी ऐसा कोई साधन नहीं है, जिसके तहत इन वादों को लागू करने के लिए कुछ किया जा सके। जी-20 की अब तक कि सबसे बड़ी उपलब्धि साल 2008 के आर्थिक संकट को मैनेज करना था। तब आर्थिक संकट को काबू करने में इस समूह ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। वहीं जी-20 ने आईएमएफ़ और वल्र्ड बैंक में कुछ सार्थक बदलाव भी किए। इसके बावजूद जलवायु परिवर्तन जैसे मसले हैं जिन पर पेरिस समझौते के बाद भी कुछ नहीं हुआ। जिस तरह यूनाइटेड नेशन्स में बातचीत होती है लेकिन उनके पास धन है जिसका इस्तेमाल कुछ मामलों में किया जा सकता है। जी-20 में ऐसा नहीं है।
ऊपर से देखें तो जी-20 की बैठक में ख़ूब तड़क-भड़क नजऱ आती है। 20 बड़ी अर्थव्यवस्था वाले देशों के प्रमुखों का जुटना, एजेंडा तय करना लेकिन गहराई से देखें तो अभी तक जी-20 से कुछ भी हासिल नहीं हुआ है। इस तरह के आर्थिक प्लेटफॉर्म तभी ज़्यादा कामयाब होते हैं जब दुनिया में भूराजनीतिक तनाव कम हों। अभी ऐसी स्थिति है कि ये तनाव बहुत ज़्यादा हावी हैं। बड़ी शक्तियां आपस में एक दूसरे के साथ काम करने को तैयार नहीं हैं। उन्हें साथ लाना बड़ी चुनौती होती जा रही है। वैश्विक तनाव का प्रभाव केवल जी-20 पर हुआ है, ऐसा नहीं है। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भी डेडलॉक है क्योंकि रूस-चीन एक तरफ़ हैं और पश्चिमी देश एक तरफ़ हैं। कोविड के समय विश्व स्वास्थ्य संगठन ने काम नहीं किया क्योंकि चीन ने वहां अड़ंगे लगाए। डब्ल्यूटीओ काम नहीं कर रहा। जी-20 एक नया संगठन है, जिसमें आर्थिक हालातों को सुधारने की बात की गई है, लेकिन इसका कोई ख़ास असर विश्व पर नहीं हुआ। 1999 में गठन के बाद से समूह के अधिकांश साझे बयान बस बयान तक ही सीमित रह गए। जैसे रोम में साल 2021 शिखर सम्मेलन के दौरान जी20 नेताओं ने कहा था कि वे सार्थक और प्रभावी कार्यों के साथ ग्लोबल वार्मिंग को सीमित करेंगे, विदेशों में कोयला बिजली संयंत्रों के वित्तपोषण को समाप्त करेंगे। बाद में साल 2022 में अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी ने बताया कि दुनिया भर में कोयला आधारित बिजली उत्पादन एक नई ऊंचाई पर पहुंच गया है। कोयले में निवेश 10 प्रतिशत बढ़कर 150 अरब डॉलर होने की उम्मीद है। इससे कार्बनजनित प्रदूषण में बढ़ोत्तरी हुई है।
मई में हिरोशिमा में जी7 नेताओं द्वारा निरंतर जीवाश्म ईंधन को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने में तेजी लाने पर सहमति जताने के बावजूद जी20 की ओर से रोडमैप पर सहमति नहीं बन पाई। वर्ष 2021 में, जी-20 ने एक बड़े टैक्स सुधार का समर्थन किया जिसमें प्रत्येक देश के लिए कम से कम 15 प्रतिशत का वैश्विक न्यूनतम कर शामिल था। इसने नए नियमों का भी समर्थन किया जिसके तहत अमेजऩ जैसे बड़े वैश्विक व्यवसायों को उन देशों में कर का भुगतान करना होगा जहां उनके उत्पाद बेचे जाते हैं, भले ही वहां उनके कार्यालय न हों। ग्लोबल टैक्स एग्रीमेंट एक बड़ा कदम था लेकिन ये अब तक लागू नहीं हुआ। साल 1999 से पहले कुछ सालों से एशिया आर्थिक संकट से जूझ रहा था, जिसे देखते हुए जर्मनी में जी8 देशों की बैठक हुई और जी20 का गठन किया गया। इसमें सभी मजबूत अर्थव्यवस्था वाले 20 देशों के वित्त मंत्री और केंद्रीय बैंक के गवर्नरों को बुलाया गया। संगठन का मकसद वैश्विक आर्थिक मुद्दों पर आपसी चर्चा कर हल निकालना था। साल 2008 की वैश्विक मंदी के बाद यह निर्णय लिया गया कि इस बैठक में सभी देशों के राष्ट्राध्यक्ष भी हिस्सा लेंगे। जी20 समिट दुनिया के 20 देशों द्वारा मिलकर बनाया गया एक शक्तिशाली ग्रुप है। साल 1999 में इसकी स्थापना की गई। इसे मजबूत अर्थव्यवस्था वाले देशों द्वारा मिलकर आपसी सहयोग के लिए बनाया गया था। इसमें भारत, चीन, अमेरिका, रूस, जर्मनी, जापान के अलावा ब्रिटेन, फ्रांस, इटली, ऑस्ट्रेलिया, ब्राजील, कनाडा, इंडोनेशिया, साउथ अफ्रीका सउदी अरब, तुर्किये, मेक्सिको, साउथ कोरिया, यूरोपीय संघ और अर्जेंटीना शामिल हैं। युरोपियन यूनियन सहित कुछ अंतरराष्ट्रीय संगठन इसके आमंत्रित सदस्य हैं। दिखने में जी-20 बहुत ताकतवर वैश्विक संगठन नजर आता है। इसके सदस्य देशों के पास मिलाकर दुनिया की 80 प्रतिशत जीडीपी, 60 प्रतिशत आबादी और 75 प्रतिशत ग्लोबल ट्रेड है। ऐसे में इस सम्मेलन में लिया गया फैसला दुनिया की इकोनॉमी पर बड़ा असर डाल सकता है, लेकिन फैसले पर अमल हो इसकी कोई गारन्टी नहीं है। यही वजह है कि जी-20 अपने अस्तित्व में आने के बाद से लेकर अभी तक विश्व को कोई ठोस दिशा नहीं दे सका है। इसके सदस्य देश आपस में द्विपक्षीय या त्रिपक्षीय आधार पर कोई समझौता अपने देशों के फायदे के लिए बेशक कर लें, किन्तु उसका वैश्विक लाभ मिलता नजर नहीं आता है। उदाहरण के तौर पर भारत ने अमरीका, यूएई सहित अन्य देशों से निजी तौर पर ऐसे ही समझौते किए हैं।
जी-20 देशों के समूह के पास बैठक के दौरान लिए गए निर्णर्यों की पालना की बाध्यता के लिए जब तक कोई कानूनी उपाय नहीं किए जाएंगे, तब तक भारी-भरकम नजर आने वाले इस संगठन की प्रासंगिकता पूरी नहीं हो पाएगी। इसके विपरीत संयुक्त राष्ट्र संगठन में जब कोई प्रस्ताव पारित किया जाता है कि तो सभी देशों को उसके मानने की बाध्यता होती है। नहीं मानने की सूरत में उस देश की आलोचना के साथ कई तरह के प्रतिबंध लगाए जा सकते हैं। इसका उदाहरण ईरान है। परमाणु शक्ति को लेकर ईरान पर कई प्रतिबंध लगाए गए हैं। ऐसे ही कानून जब तक जी20 के निर्णर्यों को लागू करने के लिए नहीं बनेंगे, तब तक यह संगठन अपने सर्वोच्च उद्देश्य तक नहीं पहुंच सकेगा।