चंडीगढ़: कनाडा में जून माह में खालिस्तानी आतंकी हरदीप सिंह निज्जर की मौत को लेकर भारत और कनाडा में तनाव अभी भी जारी है. कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो वोट बैंक की राजनीति को लेकर अपने पहले कार्यकाल से सिख समुदाय और संगठनों काे विशेष तरजीह देते आए हैं. जब वह पहली बार सत्ता में आए थे तब भी उन्होंने कनाडाई सिखों की तुलना भारत के सिखों के साथ की थी. ट्रूडो ने 2015 में अपनी पहली कैबिनेट में 4 सिख मंत्रियों को शामिल किया था और कहा था कि इतने सिख तो भारत में भी मंत्री नहीं हैं. यही वजह है कि उन्हें कनाडा में लोग मजाक करते हुए जस्टिन सिंह ट्रूडो भी कहते हैं.
बीबीसी की एक रिपोर्ट के मुताबिक सिखों के प्रति उदारता के कारण कनाडाई पीएम को मजाक में जस्टिन ‘सिंह’ ट्रूडो भी कहा जाता है. कनाडा की सियासत में ट्रूडो के कार्यकाल से ही नहीं बहुत पहले से भारतीय मूल के लोगों का दबदबा कायम है. 2015 में हाउस ऑफ कॉमंस के लिए भारतीय मूल के 19 लोगों को चुना गया था. इनमें से 17 ट्रूडो की लिबरल पार्टी से थे.
पंजाबियों की पहली पसंद है कनाडा
कनाडा पंजाबियों की विदेश में बसने के लिए पहली पसंद है. पिछले साल कनाडा की संघीय सरकार ने ऐलान किया था कि 2025 तक हर साल पांच लाख प्रवासियों को कनाडा बुलाया जाएगा. यानी अगले तीन साल में क़रीब 15 लाख आप्रवासी कनाडा जाएंगे. इस नीति के तहत भी पंजाबियों के सबसे अधिक आवेदन कनाडा जाने के लिए किए जाते हैं.
कनाडा बढ़ती बुजुर्ग आबादी और निम्न जन्म दर का सामना कर रहा है. जिसके चलते कनाडा में श्रमिकों की कमी होने लगी है. यही वजह है कि कनाडा को दूसरे देशों से काम करने के लिए प्रवासी चाहिए. कनाडा में हर चौथा प्रवासी के रूप में बसा है और देश में 7 अन्य देशों के मुकाबले यहां प्रवासियों की आबादी सबसे अधिक हैं.