चूहों के आतंक से सिर्फ आप नहीं परेशान हैं, उत्तर रेलवे भी चूहों से छुटकारा पाने के लिए हर मुमकिन कोशिश की है। एक-एक चूहे पर 41 हजार रुपए तक। हैरान मत होइए। ये डाटा एक RTI से सामने आया है। उत्तर रेलवे ने चूहों को पकड़ने में 69 लाख की रकम खर्च की है। ये रकम केवल 3 साल में खर्च की गई है।
सेंट्रल वेयर हाउसिंग कॉर्पोरेशन को लखनऊ में चूहा पकड़ने के लिए रखा था। यह चूहे स्टेशन के प्लेटफॉर्म और पटरियों पर अक्सर दिख जाते हैं। रेलवे की प्रॉपर्टी को नुकसान पहुंचाते हैं। ऐसे में तय किया गया कि उनको पकड़ने का अभियान चलाया जाएगा। तीन साल के करीब 1095 दिन में अधिकारियों ने 168 चूहे पकड़े। मतलब ठेका कंपनी ने एक चूहा पकड़ने में करीब साढ़े छह दिन का समय लिया।
एक चूहा के लिए 41 हजार रुपए का खर्च
अब इन साढ़े छह दिन में अधिकारियों ने एक चूहे को पकड़ने में 41 हजार रुपए बर्बाद कर दिए। स्थिति यह है कि हर साल चूहे को पकड़ने वाले अभियान में करीब 23 लाख 16 हजार 150 रुपए का खर्च आया। यह अभियान लगातार तीन साल तक चला और इसमें 69 लाख 48 हजार 450 रुपए का खर्च आया। यह पैसा पानी की तरह बर्बाद हुआ और इसको लेकर विभाग में सभी जिम्मेदार लोगों ने अपनी आंख बंद रखी।
आखिरी के दो साल में हर चूहे पर 50 हजार खर्च
यह अभियान साल 2020 में शुरू हुआ। पहले साल तो अधिकारियों ने अपने औसत से अच्छा अभियान चलाया और बहुत मेहनत के बाद 83 चूहे पकड़े। मसलन 4 दिन में एक चूहा। लेकिन उसके बाद तो उनकी कामचोरी और भ्रष्टाचार ऐसा बढ़ा कि साल 2021 में 45 चूहे पकड़े। उसके लिए प्रति चूहा 51 हजार रुपए का खर्च आया। साल 2022 में 40 चूहे पकड़े गए और इसके लिए 57900 रुपए का खर्च आया।
इस मामले में रेलवे अधिकारी कुछ भी कहने से बच रहे है। स्थिति यह है कि इसका खुलासा होने के बाद हड़कंप मचा हुआ है। सोशल मीडिया से लेकर हर जगह इस भ्रष्टाचार में शामिल लोगों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने की मांग की जा रही है।
2013 में पहली बार चूहा मारने का ठेका
रेलवे ने एक जुलाई 2013 में पहली बार चूहों को मारने का ठेका 3.50 लाख रुपए में जारी किया था। उसके बाद साल 2016 में करीब साढ़े चार लाख 76 हजार रुपए कर ठेका दिया गया। चूहों के कारण यात्रियों और रेलवे को हर साल लाखों रुपए का नुकसान उठाना पड़ रहा था।