बांग्लादेश में अगले साल होने वाले संसदीय चुनाव के लिए राजनीतिक सुगबुगाहट शुरू हो गयी है। विपक्ष मांग कर रहा है कि अंतरिम सरकार को नेतृत्व सौंप कर चुनाव कराये जाएं लेकिन प्रधानमंत्री शेख हसीना इसके लिए तैयार नहीं हैं। बांग्लादेश के संसदीय चुनावों की निष्पक्षता पर चूंकि हमेशा से ही सवाल उठते रहे हैं इसलिए इस बार भी लोगों के मन में तमाम तरह के संशय हैं। बांग्लादेश के चुनावों पर भारत की खासतौर पर नजर है क्योंकि शेख हसीना भारत समर्थक मानी जाती हैं जबकि उनकी प्रतिद्वंद्वी पार्टी का रुख चीन के समर्थन वाला है। इसके अलावा शेख हसीना की मुख्य प्रतिद्वंद्वी खालिदा जिया के राज में बांग्लादेश में कट्टरपंथी हावी हो जाते हैं।
बांग्लादेश में शेख हसीना के नेतृत्व में देश ने तरक्की तो की है लेकिन अर्थव्यवस्था के मोर्चे पर यह देश कर्ज के जाल में फँसता ही चला जा रहा है और भ्रष्टाचार भी चरम पर है। बताया जाता है कि वर्तमान सरकार के साथ गहरे संबंध रखने वाले राजनेताओं और व्यापारियों ने अमेरिका, कनाडा, सिंगापुर और अन्य जगहों पर घर खरीदे हैं और कंपनियां स्थापित की हैं लेकिन आम बांग्लादेशी तमाम तरह की दुश्वारियों का सामना कर रहा है। बांग्लादेश में बेरोजगारी बहुत तेजी से बढ़ रही है। देखा जाये तो सऊदी अरब, मिस्र और ईरान की तुलना में बड़ी मुस्लिम आबादी वाले युवा लोगों से भरे इस देश के लिए एक स्वस्थ और मजबूत लोकतंत्र ही समस्याओं का समाधान निकाल सकता है लेकिन फिलहाल इसके आसार नजर नहीं आ रहे हैं।
जहां तक बांग्लादेश के संसदीय चुनावों के इतिहास की बात है तो आपको बता दें कि एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में 1971 में जन्म के बाद बांग्लादेश में लोकतंत्र और कानून का शासन मुश्किलों में घिरा रहा है क्योंकि इसके पहले दशकों में संस्थापक राष्ट्रपति की हत्या के बाद तख्तापलट और जवाबी तख्ता पलट का दौर रहा। बांग्लादेश में राजनीतिक परिदृश्य शासन प्रणालियों द्वारा हमेशा बदलता रहा है। यह एक-दलीय शासन, सैन्य नियंत्रण, चुनावी लोकतंत्र और एक नागरिक सरकार के तहत एक निरंकुश शासन के बीच स्थानांतरित हुआ। देखा जाये तो देश की राजनीतिक व्यवस्था अब काफी हद तक रूस से मिलती-जुलती है, जिसमें कुलीन वर्गों का एक समूह अत्यधिक आर्थिक लाभ उठा रहा है और वर्तमान शासन को सत्ता में बनाए रखने के लिए भारी निवेश किया है।
बांग्लादेश में जनवरी 2024 में चुनाव होने हैं और मुख्य विपक्षी दल बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी एक तटस्थ कार्यवाहक सरकार के तहत चुनाव कराने की मांग को लेकर बड़े पैमाने पर सड़कों पर उतर कर रैलियां कर, सरकार पर दबाव बढ़ा रही है। हालांकि, देश में सत्तारुढ़ बांग्लादेश आवामी लीग इस बात पर अड़ी हुई है कि प्रधानमंत्री शेख हसीना के नेतृत्व में ही देश में चुनाव कराये जायेंगे। हम आपको बता दें कि बांग्लादेश में स्वतंत्र एवं निष्पक्ष माना जाने वाला पिछला चुनाव 2008 में हुआ था और उसके अगले वर्ष शेख हसीना सत्ता में आईं थीं। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि बांग्लादेश में 2014 और 2018 के चुनाव विवादों से भरे रहे थे। 2014 के चुनाव का तो विपक्ष ने बहिष्कार किया था। विपक्ष ने 2018 के चुनाव में भाग लिया था, लेकिन डराने-धमकाने, विपक्ष के दमन और बड़े पैमाने पर वोट में धांधली के आरोपों से मतदान प्रभावित हुआ था, इसमें सत्ताधारी दल के लिये बूथों पर कब्जा भी शामिल था।
रिपोर्टें हैं कि ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल बांग्लादेश ने मतदान की निष्पक्षता के लिए सर्वेक्षण किया था जिसमें 50 में से 47 सीटों पर कई तरह की विसंगतियां पायी गयी थीं। मानवाधिकार संगठनों ने शेख हसीना सरकार पर क्रूर नीति के तहत काम करने का आरोप लगाया है, जिसमें लोगों को जबरन गायब करना, न्यायेतर हत्याएं और आलोचकों तथा विपक्षी हस्तियों को कैद करना शामिल है। ह्यूमन राइट्स वाच के आंकड़ों के अनुसार 2009 से अब तक करीब 600 लोग गायब हुये हैं। देश में 2018 के बाद से सुरक्षा बलों पर 600 न्यायेत्तर हत्याओं के आरोप लगे हैं। स्वीडन की खोजी पत्रकारिता साइट नेत्र न्यूज को ढाका में एक गुप्त कारागार मिला जिसका नाम आइनाघर है जहां गायब लोगों को कथित रूप से रखा गया है। हम आपको बता दें कि बांग्लादेश में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित मोहम्मद यूनुस 198 मुकदमों का सामना कर रहे हैं और यूनुस के न्यायिक उत्पीड़न का शिकार होने की बात कहने वाले एक उप अटॉर्नी जनरल को बर्खास्त कर दिया गया था।
बांग्लादेश के लोकतंत्र और निर्वाचन की यह स्थिति देखते हुए अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया सहित प्रमुख उदार लोकतंत्रों ने नए चुनाव का आह्वान किया, लेकिन भारत, रूस और चीन ने परिणाम को लेकर कोई दिक्कत नहीं जताई। अमेरिका ने बांग्लादेश में लोकतांत्रिक गिरावट के बारे में चिंता व्यक्त की है, जबकि चीन और रूस वर्तमान शासन को समर्थन देना जारी रखे हुए हैं। दूसरी ओर, शेख हसीना पर अमेरिकी दबाव को स्पष्ट रूप से खारिज करते हुये बांग्लादेश में चीन के राजदूत ने हाल ही में कहा कि उनका देश बांग्लादेश के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करेगा। यही नहीं, रूस ने तो आगे बढ़ते हुए बांग्लादेश में अमेरिकी दूत के हस्तक्षेप की निंदा तक कर डाली। दिसंबर 2021 में, अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन प्रशासन ने घोषणा की थी कि अमेरिका विशिष्ट अर्द्धसैनिक बल रैपिड एक्शन बटालियन और उसके छह पूर्व अधिकारियों, साथ ही बांग्लादेश पुलिस के वर्तमान और हाल के प्रमुखों के खिलाफ प्रतिबंध लगाएगा। अमेरिकी विदेश विभाग ने घोर मानवाधिकार उल्लंघन के लिए दो पूर्व पुलिस अधिकारियों और उनके परिवार के सदस्यों पर वीज़ा प्रतिबंध भी लगाया है।
बहरहाल, इसमें कोई दो राय नहीं कि बांग्लादेश में एक स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव देश को तानाशाही की ढलान में जाने से रोकेगा और अधिक जवाबदेही का मार्ग प्रशस्त करेगा। लेकिन रिपोर्टें हैं कि कार्यवाहक सरकार के अधीन देश में आम चुनाव कराने की मांग पूरा नहीं किये जाने पर बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी आगामी चुनाव का बहिष्कार कर सकती है। यदि ऐसा हुआ तो फिर चुनाव और लोकतंत्र के कोई मायने नहीं रह जायेंगे।