घोसी उपचुनाव के नतीजों के साथ ही एनडीए में शामिल सहयोगी दलों की टिकटों और सरकार में भागीदारी को लेकर मोलभाव करने की हैसियत भी घटती नजर आ रही है, जिसके चलते उत्तर प्रदेश में एनडीए के सहयोगी दल अपनी ढपली-अपना राग अलापने में लगे हैं।
दूसरी तरफ घोसी की जीत के बाद से इंडिया गठबंधन में सपा का दबदबा कायम हुआ है, जो लोकसभा चुनाव में सीटों के बंटवारे के वक्त पार्टी का मजबूत आधार बनेगा।
‘मिशन-80’ की रणनीति में कमजोर पड़ेगी NDA के घटक दलों की डिमांड
इस हार के बाद से भारतीय जनता पार्टी का थिंक टैंक जो यूपी में मिशन-80 की रणनीति पर काम कर रहा था, उन्होंने अपनी रणनीति में बदलाव करके उस पर काम करना शुरू कर दिया किया है।
मिशन-80 के लिए यूपी में एनडीए में शामिल सहयोगी दल अपना दल (एस), निषाद पार्टी और हाल ही में फिर से एनडीए का हिस्सा बनी सुभासपा अपने अपने वोट शेयर के हिसाब से लोकसभा चुनाव के टिकटों के बंटवारे के लिए भाजपा पर प्रेशर पॉलिटिक्स की रणनीति के तहत काम कर रहे थे, मगर घोसी की हार के बाद से इनका कोई प्रेशर काम नहीं कर रहा है।
घोसी हार के बाद विपक्षी दलों के विधायकों की BJP में ज्वाइनिंग लटकी
फिलहाल बदली रणनीति के तहत भाजपा किसी भी नई ज्वाइनिंग पर फूंक-फूंक कर कदम रख रही है, ख़ासतौर पर विपक्षी विधायकों के मामले में ज्यादा सावधानी बरती जा रही है।
घोसी नतीजों के बाद भी कुछ विपक्षी विधायक लगातार भाजपा के सम्पर्क में हैं, मगर उनकी ज्वाइनिंग का मामला फिलहाल ठंडे बस्ते में डाल दिया गया है। सहयोगी दलों के नेताओं की तरफ से जिस तरह के बयान आ रहे हैं, उससे साफ जाहिर है कि वो हार का पूरा ठीकरा भाजपा प्रत्याशी दारा चौहान की इमेज के सिर फोड़ रहे हैं।
ओम प्रकाश राजभर के सियासी भविष्य पर भी हैं कई सवाल
बड़बोले ओम प्रकाश राजभर के लिए तो ‘ना खुदा ही मिला ना विसाले सनम’ वाली लाइन सही साबित होती दिख रही है। चुनावी मौसम वैज्ञानिक के तौर पर अपने उल्टे सीधे बयानों से भाजपा को असहज करने वाले ‘पियरका चाचा’ ओम प्रकाश राजभर का ‘करेजा फाड़’ बयान अब उनके ही सियासी भविष्य पर प्रश्न चिन्ह लगाता दिख रहा है।
बामसेफ आंदोलन से जुड़े और एक जमाने में कांशीराम और मायावती के खास रहे ओम प्रकाश राजभर ने 2009 में मायावती की बीएसपी से नाता तोड़ते हुए सोनेलाल पटेल के साथ मिलकर अधिकार मंच बनाया था। बाद में भारतीय समाज पार्टी बनाकर अपनी अलग राजनीति की शुरुआत की। 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ने के बाद पहली बार सुभासपा के चार विधायक सदन पहुंचे थे।
2019 में सीटों के बंटवारे को लेकर भाजपा हाईकमान से बात नहीं बनी तो सुभासपा ने प्रेशर पॉलिटिक्स का सहारा लेते हुए अपने 39 प्रत्याशी मैदान में उतार दिए। हालांकि भाजपा ने आखिरी समय तक घोसी सीट ओपी राजभर के लिए छोड़ रखी थी। लेकिन इस बार घोसी विधानसभा उपचुनाव की हार के बाद से लोकसभा चुनाव में टिकटों को लेकर राजभर की मोलभाव की हैसियत कमतर होती दिख रही है।
घटक भाजपा के चुनाव निशान पर चुनाव लड़ने पर नहीं बन पा रही बात
पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा 78 और अपना दल (एस) दो सीटों पर चुनाव लड़े थे, जिसमें से भाजपा को 62 सीटों पर और अपना दल दो सीटों पर चुनाव जीते थे। लोकसभा चुनाव में सीटों के बंटवारे में अपने हिस्से में ज्यादा सीटें करने के उद्देश्य से सुभासपा और निषाद पार्टी काफी जतन कर रहे हैं। सूत्रों की मानें तो भाजपा के रणनीतिकारों का मानना है कि सहयोगी दल कमल के फूल पर चुनाव लड़ें जिस पर सुभासपा और निषाद पार्टी दोनों ही एक मत नहीं हो रहे।
राजभर के बयान और जातिगत वोटिंग वाले सर्वे से नाखुश यूपी सरकार
नए पैंतरा चलते हुए सुभासपा ने तो अपनी कुछ सर्वे करने वाली एजेंसियों के जरिए एक विश्लेषण तक तैयार करवा कर उसे वायरल कर दिया। जिसमें दिखाया गया है कि तमाम विपरीत परिस्थितियों के बाद भी राजभर वोट 65 प्रतिशत तक भाजपा प्रत्याशी के फेवर में पड़े हैं।
इस विश्लेषण में दिखाया गया है कि सवर्णों ने खासतौर पर ब्राह्मण और राजपूतों ने भाजपा को 5-10 प्रतिशत वोट किया है वो भी अपवाद स्वरूप ही है। सूत्रों की मानें तो इस सर्वे और राजभर के नित नए उल जलूल बयानों से यूपी सरकार और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ खुश नहीं हैं। इस हार के बाद से उनके मंत्री बनने के सपने पर अब ग्रहण लगता दिख रहा है।
संजय निषाद भी घोसी की हार का ठीकरा दारा सिंह और राजभर पर फोड़ रहे
इसी तरह निषाद पार्टी के मुखिया और यूपी सरकार में मत्स्य मंत्री संजय निषाद भी हर मंच से ये बोलते सुने जा सकते हैं कि निषादों का पूरा वोट भाजपा प्रत्याशी को मिला, लेकिन दारा सिंह चौहान की दलबदलू छवि और सहयोगी दलों के नेताओं के बड़बोले बयानों के चलते हार का मुंह देखना पड़ा। इस बयान का सीधा मतलब है कि निषाद वोटों पर उनका ही वर्चस्व है मगर बाकियों की गलती के चलते हार का मुंह देखना पड़ा।
मनीष शुक्ला बोले- एनडीए गठबंधन अभी भी मजबूत
भाजपा प्रवक्ता मनीष शुक्ला का कहना है कि भाजपा कोई भी चुनाव सामूहिक नेतृत्व के साथ लड़ती है। एनडीए गठबंधन अभी भी मजबूत है, घोसी में जनता के फैसले का सम्मान करते हैं। हम लोग लोकसभा चुनाव के लिए पूरी 80 सीटों पर तैयारी कर रहे हैं।
जिला पंचायत उपचुनावों में हार से भी बढ़ी NDA की टेंशन
राजनीतिक विश्लेषक प्रोफ़ेसर रविकान्त मान रहे हैं कि घोसी का चुनाव एनडीए और इंडिया गठबंधन के बीच सीधी टक्कर के तौर पर देखा जा सकता है। जिसमें इंडिया ने अच्छे अंतर से जीत दर्ज की है। भाजपा के अंदरखाने चिंता सिर्फ घोसी के नतीजों के चलते ही नहीं है, बल्कि लखनऊ, मिर्जापुर, बरेली और जालौन में हुए जिला पंचायत के उपचुनाव में मिली हार भी एक वजह है।ओ पी राजभर भी एक अवसरवादी नेता के रूप में एक्सपोज़ हो गए हैं क्योंकि घोसी ही उनका मज़बूत गढ़ था और उसी गढ़ में सेंधमारी हो गई है।
भाजपा और उसके सहयोगी दलों के प्रत्याशी हर जगह बुरी तरह से हारे हैं। लखनऊ में सपा प्रत्याशी ने जिला पंचायत सदस्य का चुनाव जीता, मिर्जापुर में अपना दल (एस) से सपा ने सीट छीनी। इसके साथ ही जालौन की पहाड़गंज सीट, बरेली और बहेड़ी में वार्ड 16 की सीट भी सपा के हिस्से में गई। घोसी चुनाव को लिटमस टेस्ट कहना कहीं से भी गलत नहीं होगा, क्योंकि भाजपा की अभी तक की सारी रणनीति पर इस चुनाव नतीजे ने पानी फेर दिया है।
शिवपाल बोले- सपा लोकसभा चुनावों में अपनाएगी घोसी की रणनीति
दूसरी तरफ समाजवादी पार्टी का घोसी जीत के बाद से जोश हाई है। अखिलेश यादव के साल 2017 में सत्ता से हटने के बाद से सपा को लगातार हर चुनाव में हार मिल रही थी मगर इस उपचुनाव की जीत ने बूस्टर का काम किया है उनके लिए।
सपा महासचिव शिवपाल सिंह यादव ने भास्कर से खास बातचीत में बताया कि अखिलेश और आदित्य (शिवपाल यादव का बेटा) में कोई अंतर नहीं। नेताजी चाहते थे कि सपा को राष्ट्रीय फलक पर एक बार फिर से पहुंचाया जाए, हम उसी काम में लगे हैं। समाजवादी पार्टी को घोसी चुनाव में हर तबके का वोट मिला है जो ये जाहिर करता है कि लोग बदलाव चाहते हैं।
शिवपाल ने कहा कि भाजपा के सहयोगी दल के नेता ही हमारे स्टार प्रचारक बने हुए हैं, अपने बयानों से हमारा काम आसान कर रहे हैं। सोशल मीडिया का जमाना है, अब हर आदमी हर बात जानता, देखता और सुनता है। जनता तय कर चुकी है कि इन जुमलेबाजों को सत्ता से हटाना है। हम लोग लोकसभा का चुनाव भी घोसी के चुनाव की तर्ज पर ही लड़ेंगे।
लोकसभा के लिए सपा की रणनीति में बसपा की सीटें भी निशाने पर
सपा के अंदरूनी सूत्रों की मानें तो सपा का फोकस उन सीटों पर है जहां 2019 लोकसभा चुनाव में हार का अंतर बहुत कम वोटों का था। ऐसी लगभग 50 सीटें हैं, जिनमें से 38 सीटें पिछली बार बसपा के खाते में थीं। सपा ने इनमें से 35 जिताऊ सीटें चिन्हित की हैं जिन पर वो तेजी से काम कर रही है। घोसी की जीत के बाद से इंडिया गठबंधन में भी सपा का दबदबा कायम हुआ है जो लोकसभा चुनाव में सीटों के बंटवारे के वक्त पार्टी का मजबूत आधार बनेगा।