करीब 15 साल पहले जयपुर में हुए सीरियल बम ब्लास्ट के दौरान एक जिंदा बम मिलने के मामले में आज कोर्ट ने आदेश दिए। बम ब्लास्ट मामलों की विशेष अदालत ने एटीएस के दोनों प्रार्थना पत्र मंजूर किए, जबकि आरोपियों के प्रार्थना पत्र को किया खारिज कर दिया।
एटीएस ने तत्कालीन एडीजी एके जैन और मीडियाकर्मी प्रशांत टंडन को बतौर गवाह बुलाने और सप्लीमेंट्री चार्जशीट को रिकॉर्ड पर लेने का प्रार्थना पत्र लगाया था। इसे कोर्ट ने मंजूर कर लिया है। वहीं, आरोपियों की ओर से प्रार्थना पत्र पेश करके कहा गया था कि उन्हें सीरियल ब्लास्ट से जुड़े 8 मामलों में हाईकोर्ट बरी किया जा चुका है। उन्हीं तथ्यों व गवाहों के आधार पर उनके खिलाफ दूसरा मामला नहीं चलाया जा सकता है। कोर्ट ने आरोपियों के प्रार्थना पत्र को खारिज कर दिया है।
दरअसल, एटीएस ने जिंदा बम मिलने के मामले में गवाहों को बुलाने व सप्लीमेंट्री चार्जशीट को रिकॉर्ड पर लेने के लिए प्रार्थना पत्र लगाया था। वहीं, आरोपियों ने इस केस को बंद करने के लिए कोर्ट में एप्लिकेशन लगाई थी।
जिंदा बम मामले में नहीं चल सकता केस, समान केस में हाईकोर्ट ने किया बरी
आरोपियों की ओर से प्रार्थना पत्र पेश करने वाले वकील मिनहाज़ुल हक ने बहस करते हुए कहा था कि आरोपियों को हाईकोर्ट 8 मामलों में बरी कर चुका है। पुलिस ने जानबूझकर उन्हें जिंदा बम मिलने के केस में फंसा रखा है। सीआरपीसी की धारा 300 के तहत अगर किसी मामले में आरोपी दोषमुक्त हो चुके हैं तो उन्हीं तथ्यों व गवाहों के आधार पर आरोपियों के खिलाफ दूसरा मामला नहीं चलाया जा सकता हैं।
वहीं, भारत के संविधान के (अनुच्छेद 20 (2)) तहत भी यह प्रावधान है कि किसी व्यक्ति को एक ही अपराध के लिए दो बार दंडित नहीं किया जा सकता हैं। इस मामले में आरोपियों को बम ब्लास्ट मामलों की विशेष अदालत एक बार सजा सुना चुकी है। वहीं, राजस्थान हाईकोर्ट उस सज़ा को रद्द कर चुका है।
फैसले के 5 दिन बाद किया गिरफ्तार
आरोपियों की ओर से प्रार्थना पत्र में कहा गया- जयपुर बम ब्लास्ट केस में विशेष अदालत ने 20 दिसम्बर 2019 को 4 आरोपियों सैफुर्रहमान, मोहम्मद सैफ, मोहम्मद सरवर आज़मी व एक अन्य नाबालिग (जिसे बाद में हाईकोर्ट ने घटना के समय नाबालिग माना) को फांसी की सजा सुनाई थी। वहीं, एक आरोपी शाहबाज अहमद को बरी कर दिया था।
शाहबाज जेल से रिहा न हो जाए, इसके लिए जानबूझकर पुलिस ने करीब 11 साल पहले दर्ज जिंदा बम मामले में आरोपियों को फिर से गिरफ्तार कर लिया। हालांकि बाद में शाहबाज को हाईकोर्ट से जमानत मिल गई। इसके बाद आरोपियों की अपील पर फैसला सुनाते हुए हाईकोर्ट ने 29 मार्च 2023 को निचली अदालत के फैसले को रद्द करते हुए सभी आरोपियों को बरी कर दिया। जिंदा बम मामले के केस में आज भी सभी आरोपी जेल में बंद है।
जिंदा बम का मामला समान श्रेणा का मामला नहीं
आरोपियों के तर्कों का विरोध करते हुए सरकार की ओर से कहा गया कि जिंदा बम मिलने का मामला बम ब्लास्ट से अलग मुकदमा है। इसकी जगह भी अलग है। इसे प्लांट करने वाले भी अलग हो सकते हैं। इसकी एफएसएल रिपोर्ट भी अलग ही आएगी। इस मामले में अलग से आईपीसी की धारा-307 जोड़ी गई है। ऐसे में जिंदा बम का मुकदमा जयपुर बम ब्लास्ट के अपराधों के समान मामले की श्रेणी में नहीं आता है।
वहीं, एटीएस ने इस मामले में तत्कालीन एडीजी एके जैन और मीडियाकर्मी प्रशांत टंडन को बतौर गवाह बुलाने की भी अनुमति कोर्ट से मांगी है। एटीएस का कहना है कि अभी मामले का ट्रायल चल रहा है। ऐसे में एटीएस केस से संबंधित गवाह पेश कर सकती है। वहीं, उसे जांच के दौरान कुछ अन्य तथ्य मिले हैं। इसे लेकर सप्लीमेंट्री चार्जशीट भी पेश की गई है। जिसे रिकॉर्ड पर लिया जाए।
हाईकोर्ट की बताई कमियों को पूरा कर रही एटीएस
एटीएस के प्रार्थना पत्र का विरोध करते हुए आरोपियों के वकीलों की ओर से कहा गया कि जिस आदेश से हाईकोर्ट ने सभी आरोपियों को बरी किया था। उसमें कोर्ट ने एटीएस के अनुसंधान में कई कमियां बताई थी।
ऐसे में अब एटीएस जिंदा बम मामले में उन कमियों को पूरा कर रही है। जो न्यायसंगत नहीं है। अगर एटीएस के पास कोई अन्य तथ्य थे तो वह उन्हें हाईकोर्ट में अपील के दौरान भी रख सकती थी। हाईकोर्ट के आदेश के बाद केस की इस स्टेज पर नए गवाहों को बुलाने की अनुमति नहीं दी जा सकती हैं।
सीरियल ब्लास्ट से दहल उठा था जयपुर
करीब 15 साल पहले 13 मई 2008 को जयपुर में एक के बाद एक हुए सीरियल बम ब्लास्ट में 71 लोगों की मौत हुई थी। इनमें 185 लोग घायल हुए थे। इस संबंध में जयपुर के माणक चौक और कोतवाली थाने में 4-4 एफआईआर दर्ज की गई थीं। ब्लास्ट केस के कुल 11 आरोपियों में से 5 को राजस्थान एसओजी ने गिरफ्तार किया था।