Baba Neem Karauri death Anniversary 2023: 20वीं सदी के महान आध्यात्मिक संतों में शुमार बाबा नीम करौरी का आज यानी 11 सितंबर को निर्वाण दिवस है. उनके अनुयायी और भक्त देश में ही नहीं, विदेशों में भी हैं. उनको श्रद्धाभाव से मानने वालों की फेहरिस्त लंबी है, जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, फेसबुक के संस्थापक मार्क जकरबर्ग, एपल के सीईओ रहे स्टीव जॉब्स से लेकर हॉलीवुड की एक्ट्रेस जूलिया रॉबर्ट्स तक शामिल हैं.
भारत ऋषि-मुनियों की धरती रही है. पुरातन काल से लेकर, आज तक भारत ने बहुत से संतों को देखा है. इन संतों ने ही अध्यात्म को, पुनः भारत में स्थापित किया है. ऐसे ही महान आध्यात्मिक संतों में बाबा नीब करौरी भी एक हैं. माना जाता है कि, बाबा नीब करौरी हनुमानजी के भक्त थे. उनके अनुयायी उन्हें हनुमान जी का अवतार भी मानते हैं.
कम उम्र में ही पा लिया था अलौकिक ज्ञान
फिरोजाबाद जिले (उत्तर प्रदेश ) के अकबरपुर में जन्मे बाबा नीम करौरी का असली नाम लक्ष्मी नारायण शर्मा था. इनका जन्म लगभग 1900 ई. के आसपास माना जा रहा है. इनको महाराज जी, नीम करौली, चमत्कारी बाबा, तलैया बाबा, हांडी वाले बाबा और तिकोनिया वाले बाबा के नाम से भी जाना जाता है. महाराज जी बचपन से ही हनुमान जी को अपना गुरु मानते थे. इनके पिता का नाम दुर्गा प्रसाद शर्मा और माता राम बेटी थीं. माना जाता है कि महाराज जी को कम उम्र में ही अलौकिक ज्ञान की प्राप्ति हो गई थी. इसी के चलते उन्हें हनुमान जी का अवतार कहा जाने लगा था.
बाबा ने करीब 108 हनुमान मंदिर बनवाए
नीम करौरी बाबा की 11 वर्ष की उम्र में विवाह हो गया था. इसके बाद उन्होंने अपना घर छोड़ दिया था. बाबा ने गुजरात के ववानिया मोरबी में कई सिद्धियां हासिल कर नैनीताल जिले में भवाली से कुछ दूर आगे कैंची में अपना आश्रम बनाया था, जिसे लोग आज कैंची धाम के नाम से जानते हैं. कहा जाता है कि, भक्त बताते हैं कि अपने जीवनकाल में बाबा ने विभिन्न जगहों पर करीब 108 हनुमान मंदिर बनवाए. कहा ये भी जाता है कि बाबा जी आडंबरों से दूर रहते थे. इसीलिए वह अपना पैर भी छूने नहीं देते थे. यदि कोई ऐसा करने का प्रयास करता भी था तो वे उनसे हनुमान जी के पैर छूने को कहते थे.
वृंदावन में शरीर का कर दिया था त्याग
9 सितंबर 1973 को बाबा कैंची धाम से वृंदावन के लिए रवाना हुए. यह बाबा की अंतिम यात्रा थी. 10 सितंबर को वह वृंदावन पहुंचे और 11 सितंबर 1973 को वृंदावन में ही उन्होंने अपने शरीर का त्याग कर दिया था. यहां भी बाबा ने एक आश्रम बनवाया था, जहां आज भी बड़ी संख्या में बाबा के भक्त पहुंचते हैं.