आज घोषी उपचुनाव का परिणाम आ जाएगा। आगामी लोकसभा चुनाव 2024 के लिहाज से ये परिणाम काफी महत्वपूर्ण है। इससे यह भी तय हो जाएगा कि भाजपा और सपा को पुरानी रणनीति से चुनाव की तैयारी करनी होगी या फिर रणनीति में बदलाव करना होगी। इस उपचुनाव को न सिर्फ भाजपा और सपा का लिटमस टेस्ट माना जा रहा है। बल्कि इंडिया और NDA की अग्नि परीक्षा मानी जा रही है।
अब आपको सिलसिलेवार पढ़वाते है पार्टियों की मौजूदा रणनीति क्या है..
NDA की रणनीति क्या है..
घोसी में हो रहे उपचुनाव में NDA का सबसे ज्यादा फोकस मुस्लिम, दलित और अति पिछड़े वोटरों को साधने में किया था इसीलिए चुनाव प्रचार में 26 मंत्री और 60 से ज्यादा विधायक मैदान में थे। साथ ही जातीय समीकरण साधने के लिए अलग-अलग जातियों के नेताओं को घोसी के रण में उतारी थी।
यही कारण था कि पिछड़ी जाति के वोटरों को साधने के लिए सुभासपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर को निषाद वोटरों को साधने के लिए निषाद पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष संजय निषाद, कुर्मी वोटरों को साधने के लिए एक के शर्मा और स्वतंत्र देव सिंह, ब्राह्मण वोटरों को साधने के लिए डिप्टी सीएम बृजेश पाठक, मुस्लिम समाज के पसमांडा वोटरों को साधने के लिए दानिश आजाद अंसारी को मैदान उतारा गया था।
INDIA की रणनीति क्या है..
घोसी उपचुनाव में समाजवादी पार्टी ने कांग्रेस रालोद और अपना दल कमेरावादी के साथ PDA यानी की पिछड़ा ,दलित और अल्पसंख्यक वोटरों को साधने में नजर आई। घोसी उपचुनाव में पढ़ा के दायरे में आने वाले सभी बड़े शहरों को मैदान में उतर गया था। जिससे की सपा प्रत्याशी सुधाकर सिंह को मजबूती दी जा सके।
दूसरी तरफ सपा इसके जरिए इंडिया गठबंधन की भूमिका को और भी ज्यादा मुक्त करना चाहती है, साथ ही सहयोगी दलों को भी यह विश्वास दिलाना चाहती है कि सीट शेयरिंग के सवाल पर वह पूरी दिलचस्पी के साथ आगे बढ़ेंगे।
अगर NDA को उपचुनाव में हार मिलती है तो अपनानी होगी ये रणनीति, तीन प्वाइंट में समझिए...
प्वाइंट-1
दलित वोट बैंक को साथ लाने के लिए बनानी होगी रणनीति
उपचुनाव में भाजपा प्रत्याशी दारा सिंह चौहान को अगर उपचुनाव में हार का सामना करना पड़ता है, तो भाजपा को रणनीति में परिवर्तन करना होगा। नए तरीके से संगठन को तैयार करना होगा। क्योकिं बसपा ने अपने वोटरों को वोट देने से मना किया है। इससे सपा को कम लेकिन भाजपा को ज्यादा नुकसान का सामना करना पड़ सकता है। क्योंकि घोसी विधानसभा सीट पर लगभग 90 हजार दलित वोटर है।
प्वाइंट- 2
सहयोगी दलों की बजाय कार्यकर्ताओं पर करना होगा ज्यादा भरोसा
अगर भाजपा को घोसी उपचुनाव में हार का सामना करना पड़ता तो भाजपा को अपनी रणनीतियों में भी बदलाव करना होगा। पार्टी को अपने सहयोगी दलों से ज्यादा खुद के कार्यकर्ताओं में विश्वास पैदा करना होगा।
भाजपा के शीर्ष नेतृत्व को समझना होगा कि कार्यकर्ताओं को किस प्रत्याशी से नाराजगी है, क्योकिं घोसी उपचुनाव में दारा सिंह चौहान को उम्मीदवार बनाने के बाद से ही बीजेपी कार्डेर में नाराजगी देखने को मिली और पार्टी के कई सवर्ण नेताओं ने इसका विरोध भी किया। जिसके कारण भाजपा ने अपने कार्यकर्ताओं से ज्यादा अपने सहयोगी दलों के नेताओं पर भरोसा किया।
प्वाइंट- 3
सपा के मुस्लिम यादव कांबिनेशन का खोजना होगा तोड़
भाजपा को अगर घोसी उपचुनाव में जाति समीकरण साधने के लिए मंत्रियों की फौज उतारती पड़ी। उसके बाद भी हार का सामना करना पड़ता है, तो सपा के मुस्लिम यादव कांबिनेशन का तोड़ खोजना जरूरी पड़ जाएगा। क्योंकि मुसलमानों वोटरों में बीजेपी का फोकस सिर्फ पसमांदा मुसलमान पर है और दूसरी तरफ बीजेपी अति पिछडे वोटरों को ही साधने में लगी रही। अब नए तरीके से बीजेपी को अति पिछड़ों के साथ-साथ पिछड़े वोटरों को भी उतना ही तवज्जो देकर आगे की रणनीति तैयार करनी होगी।
अगर इंडिया को उपचुनाव में हार मिलती है तो अपनानी होगी ये रणनीति, तीन प्वाइंट में समझिए...
प्वाइंट- 1
धार्मिक मुद्दों का विरोध करने से बचना होगा
घोसी उपचुनाव में परिणाम समाजवादी पार्टी के विपरीत आता है, तो समाजवादी पार्टी को एक बार फिर से अपनी रणनीतियों पर विशेष ध्यान देने की जरूरत पड़ेगी। उसे धार्मिक मुद्दों का विरोध करने से भी बचना होगा।
हालांकि समय-समय पर समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने पार्टी के पदाधिकारी और कार्यकर्ताओं को धार्मिक मुद्दों से बचने के निर्देश देते है। लेकिन उसके बावजूद भी पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव स्वामी प्रसाद मौर्य केबयानों के विपरीत फल देखने को मिल जाते हैं। जिसको लेकर अब समाजवादी पार्टी को 2024 की लोकसभा चुनाव में 80 सीटों पर जीत हासिल करने के लिए अपनी रणनीति में बदलाव करना होगा।
प्वाइंट- 2
मुस्लिम यादव वोट बैंक के अलावा अन्य वोट बैंक को भी साथ लाने की रणनीति करनी पड़ेगी तैयार
घोसी उपचुनाव को 2024 लोकसभा चुनाव के सेमीफाइनल के रूप में भी देखा जा रहा है। इस चुनाव में मिली जीत और हार का 2024 लोकसभा चुनाव की रणनीतियों पर काफी असर देखने को मिलेगा। सपा अब तक सिर्फ मुस्लिम और यादव वोट बैंक को ही अपना कर कोर बैंक मानकर उसी के इर्द-गिर्द अपनी रणनीतियां तैयार करती रही है। लेकिन अब समाजवादी पार्टी को मुस्लिम और यादव वोट बैंक के अलावा अन्य जातियों पर भी उतना ही फोकस करना होगा। जिससे कि 80 के लक्ष्य को हासिल करने की राह आसान हो सके।
प्वाइंट- 3
OBC और दलित वोट बैंक पर करनी होगी ज्यादा मेहनत
घोसी उपचुनाव में अगर समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी सुधाकर सिंह को हार का सामना करना पड़ता है, तो सपा को नए सिरे से रणनीति तैयार करके पिछले और अति पिछड़ी के साथ ही दलित वोट बैंक पर भी फोकस करना होगा। इसके साथ ही संगठन को नए सिरे से तैयार करना पड़ेगा। जिससे की उन सीटों पर अपनी मजबूती बनाई जा सके। जिस पर अति पिछडे और दलित निर्णायक भूमिका में हो।