मायावती का वोटर तय करेगा घोसी का विधायक, इस बार 8% कम पोलिंग, 5 प्वाइंट में वोटिंग का गणित

मायावती का वोटर तय करेगा घोसी का विधायक, इस बार 8% कम पोलिंग, 5 प्वाइंट में वोटिंग का गणित

उत्तर प्रदेश में 12 दिन पहले शुरू हुआ घोसी के घमासान का 5 सितंबर को समापन हो गया। छिटपुट बहस और तमाम आरोप-प्रत्यारोप के बीच संपन्न हुए मतदान के बाद हार-जीत की गुणा गणित तेज हो गई है। EVM में कैद हुई प्रत्याशियों की किस्मत का फैसला अब 8 सितंबर को होगा। सपा छोड़कर भाजपा में आए दारा सिंह और सपा प्रत्याशी सुधाकर सिंह के बीच कड़ा मुकाबला माना जा रहा है।

घोसी उपचुनाव में कुल 50.30% वोटिंग हुई, जो पिछले चुनाव 2022 से 8% कम रही। पिछले चुनावों की बात करें, तब वोटिंग प्रतिशत 58.53% था। 2.56 लाख वोटर्स ने वोटिंग की थी। यानी ऐसा भी कहा जा सकता है कि पिछले बार के करीब 40 हजार वोटर्स इस बार पोलिंग बूथ नहीं पहुंचे।

इस कम वोटिंग ने दोनों ही प्रत्याशियों की चिंता बढ़ा दी है। हालांकि, राजनीतिक जानकारों का मानना है कि इस उपचुनाव में मायावती यानी बसपा का 54 हजार वोटर निर्णायक भूमिका में होगा। घोसी का अगला विधायक कौन होगा, यही वोट बैंक तय करेग।

आइए, अब सिलसिलेवार तरीके से जानते हैं मायावती के इन वोटर्स की संख्या कितनी थी, ये किधर शिफ्ट हो रहे हैं। कम मतदान का लाभ किसे मिलेगा, राजभर और निषाद कितना असर डाल रहे हैं…

सबसे पहले जानिए वोटिंग का हाल…

2.16 लाख वोटर्स घर से निकले ही नहीं

मऊ जिले की घोसी विधानसभा सीट पर 6 साल में 4 बार चुनाव हुए। इस विधानसभा क्षेत्र में वोटर्स की कुल संख्या 4.30 लाख है। मतदान के बाद जारी हुए वोटिंग प्रतिशत से साफ है कि इन वोटर्स में करीब 2.16 लाख ने अपने मताधिकार का प्रयोग नहीं किया। सुबह 7 बजे से शाम 6 बजे तक हुई इस पोलिंग के दौरान कई तरह की शिकायतें सामने आईं। सपा प्रदेश अध्यक्ष नरेश उत्तम पटेल ने आरोप लगाया कि BJP के इशारे पर प्रशासनिक अफसर सपा के वोटरों को वोट नहीं डालने दे रहे हैं। बीजेपी को वहां अपनी हार नजर आ रही है। प्रशासन के लोग गुंडागर्दी कर रहे हैं।

उधर, सोशल मीडिया पर खुद को सपा नेत्री बताते हुए ज्योति यादव नाम के प्रोफाइल से मऊ DM अरुण कुमार को धमकी दी गई। इस पर प्रशासन ने FIR दर्ज करवाई है। इसके अलावा मुस्लिम मतदाताओं का एक वीडियो सामने आया है, इसमें वे आरोप लगा रहे हैं कि उनको वोट डालने से रोका गया है। हालांकि प्रशासन ने सभी आरोपों को खारिज करते हुए कहा है कि बहुत ही शांतिपूर्वक मतदान संपन्न हो गया है।

अब जानते हैं भाजपा-सपा का कैलकुलेशन…

1. फ्री राशन, योगी का बुलडोजर और जातीय समीकरण पर दारा को भरोसा

सपा छोड़कर भाजपा में आए दारा सिंह इस चुनाव में BJP की योजनाएं, सीएम योगी का बुलडोजर और जातीय समीकरणों के सहारे चुनाव लड़ रहे हैं। वह अपने चुनाव प्रचार में गरीबों को फ्री राशन, उज्ज्वला योजना और प्रदेश में कानून व्यवस्था की बात करते नजर आए हैं।

भाजपा में अपनी ताकत दिखाने के लिए उन्होंने प्रदेश के दोनों डिप्टी सीएम और खुद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ कि जनसभा भी करवाई। कई मंत्री और प्रदेश अध्यक्ष को भी बुलाया। इसके साथ ही उनकी नजर लगभग 1.20 हजार दलित, इनमें 50 हजार नोनिया चौहान, 55 हजार राजभर और 20 हजार निषाद वोटर्स पर भी है।

इन सभी समीकरणों के बीच बीजेपी यह मानकर चल रही है कि हर बार बसपा को मिलने वाले 50 हजार से ज्यादा वोट योजनाओं के सहारे उसकी ओर शिफ्ट हो सकता है। यदि यह वोट बैंक शिफ्ट होता है, तो दारा सिंह बाजी मार सकते हैं।

2. योगी की आंधी में सपा से जीते दारा सिंह, अब फिर पार्टी बदली

साल 2022 में पहली बार विधानसभा चुनाव लड़ने वाले दारा सिंह चौहान समाजवादी पार्टी जीते। उन्हें घोसी की जनता ने 1,08,430 वोट देकर विजयी बनाया। दारा सिंह बीजेपी से नाराज होकर समाजवादी पार्टी में गए थे। उनके निकटतम प्रतिद्वंद्वी यानी बीजेपी के कैंडिडेट विजय राजभर को 86214 वोट मिले थे। दारा सिंह को उस समय दलित, मुस्लिम और यादवों का सपोर्ट मिला।

बड़ी बात यह थी कि उस समय सुभासपा प्रमुख ओम प्रकाश भी समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन में थे। उन्होंने दारा सिंह को जिताने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगाया था। दारा सिंह को इसका लाभ भी मिला। इस बार दारा सिंह और राजभर दोनों ही भाजपा में वापस आ चुके हैं। राजभर इस बार भी जोर लगाए हुए हैं।

लेकिन यादव और मुस्लिम वोट दारा सिंह से छिटकता दिखाई दे रहा है। हालांकि दलित, निषाद, राजभर वोट बैंक का सपोर्ट मिलता दिखाई दे रहा है। सुभासपा प्रमुख ओम प्रकाश राजभर ने तो घोसी में डेरा ही डाल रखा है। लेकिन दल बदलने का विरोध दारा सिंह को देखना पड़ रहा है।

3. घोसी में BSP के वोटर्स अहम रोल अदा करेंगे

घोसी में मायावती का अच्छा वोट बैंक रहा है। पिछले चार चुनावों में यानी 2012 से लेकर 2022 तक BSP को यहां 50 हजार से 80 हजार वोट मिले। 2012 में बसपा से फागू सिंह चौहान को लगभग 58 हजार वोट मिले थे। इसके बाद 2017 में फागू सिंह चौहान भाजपा में आ गए, उन्हें 88,298 वोट पाकर वो विधायक बने। बसपा इस बार भी दूसरे नंबर पर रही।

यहां अब्बास अंसारी को 81,295 वोट मिले। इसी प्रकार 2019 में हुए उपचुनाव में बसपा को 50,775 वोट मिले और 2022 में भी बसपा का प्रदर्शन ऐसा ही रहा। उसके कैंडिडेट वसीम इकबाल को 54,248 वोट मिले। अब 2023 में बसपा ने अपना कैंडिडेट खड़ा ही नहीं किया है।

ऐसे में राजनीतिक जानकार यह मानते हैं कि यह 50 हजार से ज्यादा का वोट बैंक जिस तरफ शिफ्ट होगा, उसे ही घोसी की सीट मिलेगी। इस वोट बैंक में ज्यादातर हिस्सा दलित वोट बैंक का है। घोसी में तकरीबन 1.20 लाख दलित वोटर्स हैं। इनमें तकरीबन 40 से 50 प्रतिशत वोटर मायावती को वोट करते चले आ रहे हैं। सपा और भाजपा दोनों इस पर दावा कर रही हैं।

राजनीतिक जानकारों की मानें, तो जो पार्टी दलित वोट बैंक को अपनी ओर आकर्षित कर ले गई होगी, अबकी घोसी का चुनावी मैदान उसके नाम हो सकता है।

4. सुधाकर सिंह को अखिलेश के पीडीए और शिवपाल का भरोसा

घोसी विधानसभा के उपचुनाव को अखिलेश यादव ने पूरी तरह पीडीए के इर्द-गिर्द रखा है। इसमें पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक वोट बैंक को जोड़ने की कोशिश की गई। दरअसल, सुधाकर सिंह 2012 में सपा से ही 73,562 वोट पाकर चुनाव जीते थे। इसके बाद 17 में उन्हें 59,256 वोट मिले और वो तीसरे नंबर पर रहे। यह टाइम मोदी की आंधी का था। 14 के लोकसभा चुनाव में मोदी की बड़ी जीत के बाद यूपी में विधानसभा चुनाव हो रहे थे।

ऐसे में फागू सिंह चौहान बीजेपी से जीते थे, वे बसपा छोड़कर भाजपा में आए थे। 2019 के उपचुनाव में सुधाकर सिंह सपा के समर्थन से लड़े और दूसरे नंबर पर रहे। उन्होंने 66 हजार से ज्यादा वोट हासिल किए। 22 में दारा सिंह भाजपा छोड़कर सपा में आ गए और उन्होंने जीत हासिल की। सुधाकर सिंह चुनाव नहीं लड़े, 2023 के उपचुनाव में फिर सुधाकर मैदान में हैं।

सुधाकर सिंह की दलित समाज में अच्छी पकड़ मानी जाती है। जातीय आंकड़ों पर नजर डालें तो यादव और मुस्लिम मिलाकर ही 1.5 लाख वोटर हैं। इसके अलावा 1.20 लाख दलित वोटर हैं। यदि पीडीए के लिहाज से दलित का कॉम्बिनेशन जुड़ा तो सुधाकर बाजी मार सकते हैं। पूरे चुनाव में सुधाकर के लिए खुद अखिलेश पहली बार किसी विधानसभा के उपचुनाव में प्रचार करने पहुंचे हैं, शिवपाल ने तो कई दिनों तक यहां डेरा डाले रखा।

5. आजम खान के गढ़ रामपुर और स्वार जैसे बन रहे हालात

घोसी उपचुनाव के हालात भी आजम खान के गढ़ माने जाने वाले रामपुर और स्वार जैसे बनते दिखाई दे रहे हैं। स्वार और रामपुर में विधानसभा के उपचुनाव में वोटिंग प्रतिशत कम रहा था। इसके साथ ही वहां मुस्लिमों को वोट डालने से रोकने के आरोप लगाए गए थे। यहां भी समाजवादी पार्टी ने आरोप लगाया है कि मुस्लिम वोटर्स को रोका जा रहा है।

उनके आधार कार्ड पुलिस जमा कर ले रही है और वापस नहीं कर रही है। दरअसल, घोसी सीट पर करीब 90 हजार मुस्लिम वोटर्स हैं, वोटिंग के दौरान कुछ मुस्लिम मतदाताओं ने भी वोटिंग न करने देने के आरोप लगाए हैं। शायद यही कारण हो सकता है कि वोटिंग प्रतिशत पिछले चुनाव से कम हो गया है।

एक नजर जातीय समीकरणों पर

सर्वाधिक आबादी मुस्लिम व दलित वोटरों की है। मुस्लिम वोटर 90 हजार, अनुसूचित वर्ग 70 हजार के करीब है। जबकि 60 हजार यादव, 55 हजार राजभर, 50 हजार नोनिया चौहान, 20 हजार निषाद वोटर्स, 35 हजार वैश्य बिरादरी के वोटर हैं। इसके अलावा 20 हजार से अधिक भूमिहार, 15 हजार से अधिक राजपूत वोटर हैं। 11 हजार ब्राह्मण व 10 हजार अन्य जातियां हैं। यह अनुमानित आंकड़ा है।

दारा सिंह चौहान और सुधाकर सिंह के अलावा इन प्रत्याशियों ने घोसी के चुनावी मैदान में भाजपा और सपा के कैंडिडेट के अलावा 8 कैंडिडेट भी उतरे। इनमें जन अधिकार पार्टी की ओर से अफरोज आलम, जनक्रांति पार्टी (राष्ट्रवादी) से मुन्नीलाल चौहान, आम जनता पार्टी (सोशलिस्ट) से राजकुमार चौहान, पीस पार्टी से सनाउल्लाह, जन राज्य पार्टी से सुनील चौहान चुनाव मैदान में हैं, जबकि 3 निर्दलीय उम्मीदवार विनय कुमार, परवेंद्र प्रताप सिंह और रमेश पांडेय भी अपनी किस्मत आजमाने के लिए घोसी की सियासी पिच पर उतरे हैं।

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