राजस्थान भाजपा में आपसी गुटबाजी खुलकर उजागर हो रही है। विधानसभा चुनाव नजदीक आते ही पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सहित सभी बड़े नेता अपने को फ्रंट में लाने के प्रयास में लगे हुये हैं। वसुंधरा समर्थकों को मानना है कि उनके पास अपनी ताकत दिखाने का अब अंतिम अवसर है। यदि इस बार चूक गए तो फिर मुख्य धारा की राजनीति में पिछड़ जाएंगे। वसुंधरा समर्थक कई विधायकों को तो इस बात का डर भी सता रहा है कि यदि मैडम राजनीतिक रूप से कमजोर होती हैं तो उनकी टिकट भी खतरे में पड़ सकती है। इसीलिए वसुंधरा के सभी समर्थक जोर दे रहे हैं कि मैडम पार्टी आलाकमान से दो टूक बात करें।
पार्टी का केंद्रीय नेतृत्व भी राजस्थान में भाजपा की फूट को लेकर पूरी तरह सतर्क है। भाजपा आलाकमान जानता है कि राजस्थान भाजपा में सभी नेताओं के अपने-अपने गुट बने हुए हैं। जिसके चलते सभी एक दूसरे की टांग खिंचाई करने में लगे हुए हैं। भाजपा ने अपने प्रादेशिक नेताओं की आपसी खींचतान के चलते ही प्रदेश के चार क्षेत्रों में निकली जाने वाली परिवर्तन संकल्प यात्रा का नेतृत्व किसी भी बड़े नेता को नहीं सौंपा है। भाजपा ने चारों यात्राओं का नेतृत्व सामूहिक रूप से करने का निर्णय लिया है। ताकि यात्रा के बहाने कोई नेता खुद को बड़ा नहीं दिखा सके। यात्रा के संयोजन की जिम्मेदारी पार्टी ने दूसरी पंक्ति के नेताओं को दी है ताकि बिना गुटबाजी के यात्राओं का समापन हो सके।
ऐसे में अब पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे, केन्द्रीय मंत्री गजेन्द्र सिंह शेखावत, अर्जुन मेघवाल, प्रदेशाध्यक्ष सीपी जोशी, नेता प्रतिपक्ष राजेन्द्र राठौड़, उपनेता प्रतिपक्ष सतीश पूनिया सहित किसी भी अन्य नेता के बीच मुख्यमंत्री बनने की होड़ खत्म हो गई है। अब अगर पार्टी सत्ता में आती है तो शीर्ष नेतृत्व ही तय करेगा कि मुख्यमंत्री कौन बनेगा। भाजपा की ओर से निकाली जाने वाली परिवर्तन यात्रा को लेकर चुनाव प्रबंधन समिति के संयोजक नारायण पंचारिया ने बताया कि भाजपा प्रदेश में आगामी दो सितंबर से परिवर्तन यात्रा की शुरुआत कर चुकी है। यह यात्रा चार अलग-अलग स्थानों और दिशाओं से प्रदेश भाजपा के सामूहिक नेतृत्व में 8,982 किलोमीटर का सफर तय कर प्रदेश की 200 विधानसभा क्षेत्रों में जाएगी। परिवर्तन यात्रा के दौरान किसान चौपाल, युवा मोटरसाईकिल रैली, महिलाओं की बैठक और दलित चौपालें भी आयोजित की जा रही हैं।
पहली परिवर्तन संकल्प यात्रा दो सितंबर को भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा के नेतृत्व में त्रिनेत्र गणेश मंदिर रणथंबौर सवाईमाधोपुर से प्रारंभ हुई। जिसमें भाजपा का प्रदेश नेतृत्व मौजूद रहा। प्रथम परिवर्तन यात्रा 18 दिनों में 1847 किलोमीटर चलकर भरतपुर संभाग, जयपुर संभाग एंव टोंक जिले की 47 विधानसभा क्षेत्रों में जायेगी। इस यात्रा के संयोजक भाजपा के पूर्व प्रदेशाध्यक्ष अरूण चतुर्वेदी व सह संयोजक भाजपा प्रदेश उपाध्यक्ष जितेन्द्र गोठवाल हैं। दूसरी परिवर्तन यात्रा तीन सितंबर को केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के नेतृत्व में बेणेश्वर धाम डूंगरपुर से प्रारंभ हुई। दूसरी यात्रा 19 दिनों में 2433 किलोमीटर चलकर उदयपुर संभाग, कोटा संभाग और भीलवाडा जिले की कुल 52 विधानसभा क्षेत्रों में जायेगी। इस यात्रा का संयोजक प्रदेश उपाध्यक्ष चुन्नीलाल गरासिया को व सह संभाग प्रभारी प्रमोद सांभर सह संयोजक के दायित्व का निर्वहन करेंगे।
तीसरी परिवर्तन यात्रा चार सितंबर को रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के नेतृत्व में रामदेवरा जैसलमेर से प्रारंभ हुई। यह यात्रा 18 दिनों में 2574 किलोमीटर चलकर जोधपुर संभाग, अजमेर व नागौर जिले की कुल 51 विधानसभा क्षेत्रों में जायेगी। इस यात्रा का संयोजक राज्यसभा सांसद राजेन्द्र गहलोत को बनाया गया है। जोधपुर सह-संभाग प्रभारी सांवलाराम देवासी सह-संयोजक होंगे। चौथी परिवर्तन यात्रा पांच सितंबर को केन्द्रीय मंत्री नितिन गडकरी के नेतृत्व में गोगामेडी हनुमानगढ़ से प्रारंभ हुई। यह यात्रा 18 दिनों में 2128 किलोमीटर चलकर बीकानेर संभाग, झुंझुनू, सीकर और अलवर जिले की कुल 50 विधानसभा क्षेत्रों में जाएगी। इस यात्रा का संयोजक पूर्व केन्द्रीय मंत्री सीआर चौधरी व भाजपा प्रदेश उपाध्यक्ष श्रवण बगडी को सह-संयोजक बनाया गया है।
इन सभी यात्राओं के लिए एक टोली का गठन किया गया है। जिसमें मीडिया, सोशल मीडिया, आईटी एंव प्रचार-प्रसार सभा के प्रमुख बनाए गए हैं। प्रदेश की गहलोत सरकार के राज में भ्रष्टाचार, तुष्टिकरण एवं कुशासन के कारण प्रदेश की जनता त्रस्त है। इसलिए कांग्रेस की इस जनविरोधी सरकार को उखाड़ फेंकने के लिए जनता ने संकल्प ले लिया है। विधानसभा चुनाव से पहले निकाली जा रहीं भाजपा की चारों परिवर्तन यात्राओं को केंद्रीय स्तर के नेताओं ने रवाना किया। भाजपा ने किसी एक चेहरे को इन यात्राओं की जिम्मेदारी नहीं दी है। ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यही उठ रहा है कि प्रदेश स्तर की यात्राओं में भाजपा आलाकमान ने किसी भी स्थानीय नेता को जिम्मेदारी क्यों नहीं दी? इसका मुख्य कारण कारण पार्टी में व्याप्त गुटबाजी को माना जा रहा है। किसी एक नेता के चेहरे को आगे करने से पार्टी के अन्य नेता नाराज हो सकते हैं। इससे बचने के लिए पार्टी ने यह कदम उठाया है। पार्टी आलाकमान नहीं चाहता कि चुनाव से पहले किसी तरह के मतभेद सामने आएं।
पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे भाजपा की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष हैं। विधानसभा चुनाव से पहले पार्टी आलाकमान ने उन्हें कोई बड़ी जिम्मेदारी नहीं दी है। इससे राजे और उनके समर्थक नाराज बताए जा रहे हैं। परिवर्तन यात्रा को लेकर भी पार्टी ने राजे को कोई बड़ी जिम्मेदारी नहीं दी है। इससे पहले हुए भाजपा के कई कार्यक्रमों में राजे शामिल नहीं हुईं थीं। कुछ दिनों पूर्व गंगाापुरसिटी में अमित शाह के कार्यक्रम में भी वसुंधरा राजे शामिल नहीं हुयीं जबकि लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला उस कार्यक्रम में उपस्थित थे। हालांकि वह परिवर्तन यात्रा में शामिल हुईं।
भाजपा आलाकमान विधानसभा चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चेहरा बना रहा है। मगर पार्टी के अंदरखाने मची जंग पर अभी तक नियंत्रण नहीं कर पाया है। वसुंधरा राजे के दो बार मुख्यमंत्री रहने से उनका आज भी लोगों पर काफी प्रभाव है। यदि पार्टी आलाकमान चुनाव में उनकी उपेक्षा करेगा तो यह पार्टी के लिए घाटे का सौदा भी साबित हो सकता है। फिलहाल वसुंधरा राजे अभी चुप्पी साधे हुए हैं तथा सही समय का इंतजार कर रही हैं। अंदर खाने वसुंधरा राजे ने अपनी राजनीति का अगला प्लान तैयार कर रखा है। इसलिए वह अपने धुर विरोधियों से मिलकर उनसे राजनीतिक मतभेद समाप्त कर रही हैं। दूसरी ओर, राजस्थान में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत कांग्रेस की फिर से सरकार बनाने के लिए पूरा जोर लगाए हुए हैं। कांग्रेस आला कमान के प्रयासों से सचिन पायलट भी गहलोत के साथ जुट गए हैं। ऐसे में भाजपा अपनी अंदरूनी फूट पर कितना काबू कर पाती है। इसी पर राजस्थान में भाजपा की अगली सरकार बनने का भविष्य टिका है।