New Delhi: इसरो ने आदित्य एल1 को पृथ्वी से 40,000 KM दूर की कक्षा में भेजा, अगली बार कब बढ़ेगी ऑर्बिट?

New Delhi: इसरो ने आदित्य एल1 को पृथ्वी से 40,000 KM दूर की कक्षा में भेजा, अगली बार कब बढ़ेगी ऑर्बिट?

नई दिल्ली: भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने भारत की पहली अंतरिक्ष-आधारित सूर्य वेधशाला आदित्य एल1 (Aditya L1) के ऑर्बिट को बढ़ाने के दूसरे चरण को पूरा कर लिया है. यह अब पृथ्वी के अपने निकटतम बिंदु पर 282 किमी. और पृथ्वी के सबसे दूर के बिंदु पर 40,225 किमी की अण्डाकार कक्षा में घूम रहा है. ऑर्बिट बढ़ाने की यह प्रक्रिया आदित्य L1 को पृथ्वी से लगभग 15 लाख किलोमीटर दूर लैग्रेंज प्वाइंट 1 (L1) तक की अपनी चार महीने लंबी यात्रा के लिए जरूरी वेग हासिल करने में मदद करती है. इसरो के सोलर मिशन को शनिवार को श्रीहरिकोटा में सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र (SDSC) से पीएसएलवी रॉकेट के जरिये पृथ्वी की निकट कक्षा में लॉन्च किया गया था.

आदित्य-एल1 को लॉन्च के बाद 16 दिनों के भीतर पांच बार ऑर्बिट को बढ़ाने की प्रक्रिया के जरिये एल1 प्वाइंट तक अपनी यात्रा के लिए जरूरी वेग हासिल करना होगा. उनमें से दो को अब तक सफलता से पूरा किया जा चुका है. ऑर्बिट को बढ़ाने का पहला चरण आदित्य-एल1 के लॉन्च के अगले दिन रविवार को किया गया. तब उसे 245 किमी. x 22459 किमी. की कक्षा में भेजा गया था. बेंगलुरु में इसरो टेलीमेट्री ट्रैकिंग और कमांड नेटवर्क (ISTRAC) ने आदित्य एल1 की कक्षा को दूसरी बार बढ़ाने का काम सफलता से पूरा किया. मॉरीशस, बेंगलुरु और पोर्ट ब्लेयर में इसरो के ग्राउंड स्टेशनों ने इस ऑपरेशन के दौरान उपग्रह को बारीकी से ट्रैक किया. जिससे 282 किमी. x 40,225 किमी. की नए कक्षा हासिल हुई.

अगला चरण

आदित्य एल1 की ऑर्बिट को बढ़ाने का तीसरा चरण 10 सितंबर को लगभग 2.30 बजे तय है. पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र के प्रभाव से बाहर निकलने के लिए आदित्य L1 धीरे-धीरे अपने इंजन का उपयोग करके खुद को L1 बिंदु की ओर बढ़ाएगा और आखिर में पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण के क्षेत्र को छोड़ देगा. पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र को छोड़ने के बाद सोलर मिशन अपने क्रूज स्टेज में चला जाएगा. आदित्य-एल1 के प्राथमिक उद्देश्यों में सोलर विंड का अध्ययन करना शामिल है, जो पृथ्वी के मैग्नेटोस्फीयर को बाधित कर सकती हैं. लंबी अवधि में इस मिशन से एकत्रित डेटा पृथ्वी के जलवायु पैटर्न पर सूर्य के प्रभाव की गहरी समझ में योगदान दे सकता है.

हेलो ऑर्बिट

110-दिनों के बाद आदित्य-एल1 अपने लक्ष्य एल1 बिंदु पर पहुंचेगा और एल1 लैग्रेंज बिंदु के चारों ओर एक कक्षा स्थापित करने के लिए एक और प्रक्रिया से गुजरेगा. इसके जरियो वह एक बड़ी हेलो ऑर्बिट हासिल करेगा. अपने मिशन जीवन के दौरान आदित्य एल1 अनियमित आकार की कक्षा में L1 की परिक्रमा करेगा. जो पृथ्वी और सूर्य को जोड़ने वाली रेखा के लगभग लंबवत होगी. एल1 लैग्रेंज बिंदु पर रणनीतिक रूप से स्थित आदित्य-एल1 सूर्य का निरंतर और बिना किसी बाधा के अध्ययन करेगा. यह पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र और वायुमंडल से प्रभावित होने से पहले सोलर रेडिएशन और चुंबकीय तूफानों का निरीक्षण करेगा.

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