विधानसभा चुनाव दिसंबर में हैं, ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यह है कि मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में उम्मीदवारों की पहली सूची सबसे पहले जारी करने वाली भाजपा राजस्थान में कब टिकटों का ऐलान करेगी। भाजपा मुख्यालय के वरिष्ठ सूत्रों के मुताबिक, 25 सितंबर के बाद ही सूची आने की उम्मीद है।
इस बार यह भी तय किया गया है कि पिछले चुनाव में 10 हजार से ज्यादा वोटों से हारने वाले 86 सीटों के उम्मीदवारों को टिकट नहीं दिया जाएगा। हालांकि, कुछ नियम व शर्तें भी तय की गई हैं, जिन पर खरा उतरने वालों को टिकट मिल सकता है। साथ ही इस बार 45 से कम उम्र वाले नए चेहरों को टिकट बंटवारे में तरजीह दी जाएगी।
केंद्रीय चुनाव समिति से जुड़े सूत्रों का कहना है कि सबसे पहले 70 से 80 उम्मीदवारों की सूची आएगी। इनमें ज्यादातर वे सीटें रहेंगी जहां भाजपा बहुत कमजोर है और वे सीटें जो पार्टी के कैडर और पिछले वोट शेयर के लिहाज से सबसे मजबूत हैं। इन दोनों कैटेगरी में करीब 135 सीटें हैं, लेकिन पहली सूची में 80 के आस-पास नाम शामिल रहेंगे। ज्यादा मंथन कमजोर सीटों पर ही हो रहा है। हालांकि, इलेक्शन कमेटी की एक बैठक 25 सितंबर से पहले भी हो सकती है। अगर होती है तो नाम फाइनल करके रख लेंगे। मगर घोषणा पेंडिंग रहेगी। जिनके नाम तय होंगे, उन्हें बता दिया जाएगा कि वे अपनी चुनाव तैयारी शुरू कर दें। मौजूदा विधायकों में से उन्हें ही फिर से टिकट मिलेगा जो अपनी सीटों पर पूरी तरह से सक्रिय हैं। इसके अलावा, जो विधानसभा से ज्यादा लोकसभा चुनाव के लिहाज से भी वोटों को जोड़े रखने में पार्टी के लिए उपयुक्त हैं, उनके ही टिकट रिपीट होंगे।
4 बड़े कारण… जिनकी वजह से जल्द टिकट घोषणा नहीं
1. इलेक्शन कमेटी में शामिल पीएम नरेंद्र मोदी, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और गृह मंत्री अमित शाह 10 सितंबर तक जी-20 शिखर सम्मेलन में व्यस्त रहेंगे।
2. 18 से 22 सितंबर के बीच संसद का विशेष सत्र है। सभी दिग्गज नेता इसमें मौजूद रहेंगे।।
3. राजस्थान में इन दिनों परिवर्तन यात्रा का दौर है और 15-20 दिन सभी नेता-कार्यकर्ता उसी में जुटे रहेंगे। ऐसे में पार्टी टिकट की घोषणा करके उन्हें डिस्टर्ब नहीं करना चाहती।
4. अलग-अलग राज्यों के 200 विधायकों की वह रिपोर्ट आनी भी बाकी है, जिसमें उन्होंने राजस्थान की सियासी नब्ज टटोली है।
टिकट के लिए ये 6 बड़े पैरामीटर तय…
1. इस बार के चुनाव में 45 साल से कम उम्र वाले चेहरे ज्यादा दिखेंगे।
2. जो नेता 4-5 बार विधायक बन चुके हैं, उन सीटों पर नए चेहरों को मौका देंगे।
3. जिन सीटों पर पार्टी में बगावत व भितरघात के कारण 10 हजार से ज्यादा वोटों से हार हुई, वहां जीतने योग्य उम्मीदवार का पैमाना लागू होगा।
4. 28 सीटें, जिन पर भाजपा लगातार 3 चुनाव जीत चुकी है, वहां बुजुर्ग और कम सक्रिय विधायकों के टिकट काटकर जिला परिषद और पंचायत समिति स्तर के युवा नेताओं को भी टिकट मिलेंगे।
5. जिन 19 सीटों पर लगातार 3 बार से पार्टी हार रही है, उन पर 5-6 सांसदों को, कुछ पर पार्टी में शामिल नए चेहरों और कुछ पर महिलाओं को उतारा जाएगा।
6. भाजपा उन्हीं दावेदारों को प्राथमिकता देगी जो सर्वे में सबसे मजबूत उभर कर आए हों। भाजपा अब तक अलग-अलग स्तर पर 5-6 सर्वे करा चुकी है।
33 सीटें… जहां हार का अंतर 10 हजार वोट से कम का रहा, अच्छी छवि के प्रत्याशी रिपीट हो सकते हैं
2018 के चुनाव में 33 सीटों पर भाजपा की हार का अंतर 10 हजार वोट से कम था। इनमें से अधिकांश सीटों पर भाजपा पुराने चेहरों को रिपीट कर सकती है। हालांकि पार्टी का मानना है कि पिछली बार के उम्मीदवारों को रिपीट करने का फाॅर्मूला एक ही रहेगा कि हार के बाद बीते पांच साल में वे जनता के बीच कितने सक्रिय रहे हैं। इसका एनालिसिस सर्वे के परिणामों और आरएसएस के फीडबैक से देखा जाएगा। खेतड़ी, पोकरण और फतेहपुर जैसी कई सीटें हैं जहां हार का अंतर एक हजार से भी कम था। अगर पिछली बार के उम्मीदवार ऐसी सीटों पर सक्रिय हैं तो उनको टिकट फिर से दिया जा सकता है।
जातिगत समीकरण सुधारे जा रहे… जहां भाजपा 20 हजार से कम वोटों से हारी और जहां 10 हजार से कम वोटों से जीती
पिछले चुनाव में भाजपा जिन सीटों पर 20 हजार से कम वोटों से हारी और जहां 10 हजार से कम वोटों से जीती, वहां वोट शेयरिंग बढ़ाने के लिए ज्यादा जोर लगाया जा रहा है। भाजपा ऐसी सीटों पर वोटों को स्विंग करने के लिए जातिगत समीकरण सुधारने के लिए ग्राउंड पर काम कर रही है ताकि कांग्रेस के वोट तोड़कर खुद का आधार बढ़ा सके। जिन सीटों पर भाजपा की जीत एक हजार से लेकर 10 हजार तक वोटों से हुई है, उन सीटों को और मजबूत किया जा रहा है। इन दोनों कैटेगरी की सीटों पर दूसरी पार्टियों से जातीय आधार वाले नेताओं को जोड़ा जा रहा है। यहां दूसरी पार्टियों से आने वाले बाहरी नेताओं को भी टिकट दिए जा सकते हैं।
86 सीटें… जहां 10 हजार से ज्यादा वोटों से हार हुई, वहां पिछली बार चुनाव लड़े नेताओं के टिकट पर संकट
86 सीटें ऐसी हैं जहां भाजपा पिछली बार 10 हजार से ज्यादा वोटों से हारी। यहां ज्यादातर नए चेहरे होंगे। इनमें भोपालगढ़, धोद, गंगानगर, जायल, करणपुर, करौली, खींवसर, मांडल, मेड़ता, नगर, सादुलपुर, शाहपुरा, श्रीडूंगरगढ़, थानागाजी, तिजारा, वल्लभनगर, विराटनगर, आदर्शनगर, अलवर ग्रामीण, अंता, बागीदोरा, बांसवाड़ा, बारां-अटरू, बाड़ी, बाड़मेर, बसेड़ी, बस्सी, भादरा, भरतपुर, चोरासी, सिविल लाइंस, दौसा, डीडवाना, डेगाना, देवली-उनियारा, डूंगरपुर, बानसूर, बायतू, गुढ़ामलानी, गंगापुरसिटी, हनुमानगढ़, हिंडौन, हिंडौली, जैसलमेर, जमवारामगढ़, झोटवाड़ा, झुंझुनूं, कामां, कठूमर, केकड़ी, खाजूवाला, खंडार, खैरवाड़ा, किशनगंज, किशनगढ़, लक्ष्मणगढ़, लाडनूं, लोहावट, नाथद्वारा, निंबाहेड़ा, निवाई, नोहर, ओसियां, परबतसर, पिलानी, पीपल्दा, प्रतापगढ़, राजाखेड़ा, राजगढ़-लक्ष्मणगढ़, सांचौर, सपोटरा, सरदारपुरा, सरदारशहर, सवाई माधोपुर, शिव, शेरगढ़, सीकर, सिकराय, सिरोही, श्रीमाधोपुर, सुजानगढ़, तारानगर, टोडाभीम, टोंक, वैर, बामनवास सीट शामिल हैं।
28 सीटें… जहां लगातार तीन बार से जीत रही भाजपा, यहां कम मार्जिन से जीतने वालों के टिकट पर संकट
28 सीटें भाजपा की सबसे मजबूत सीटों में आती हैं। यहां पिछले तीन चुनाव भाजपा ने जीते हैं। इनमें बीकानेर ईस्ट, रतनगढ़, फुलेरा, विद्याधरनगर, मालवीयनगर, सांगानेर, अलवर शहर, अजमेर नॉर्थ, अजमेर साउथ, ब्यावर, नागौर, सोजत, पाली, सूरसागर, बाली, सिवाना, भीनमाल, रेवदर, उदयपुर, राजसमंद, आसींद, भीलवाड़ा, बूंदी, कोटा साउथ, लाडपुरा, रामगंजमंडी, झालरापाटन, खानपुर सीट शामिल हैं।इस बार सबसे बड़ी चुनाैती इन सीटों पर कब्जा बरकरार रखने की है। ऐसे में जिन सीटों पर मौजूदा विधायक उम्रदराज हो चुके हैं और जिनकी लोकप्रियता में कमी आई है, वहां नए चेहरों को उतारा जाएगा। जिन सीटों पर जीत का अंतर पांच हजार से कम था, उन सीटों पर विधायकों के टिकट काटकर नए चेहरे उतारे जाएंगे।