हरदोई जिले से बीते 15 दिनों के अंदर दो ऐसी खबरें सामने आईं जिन्होंने आम और खास दोनो जनों को झकझोर कर रख दिया । एक खबर आई थी अरवल से जहां अदनिया गांव के वेदपाल ने फांसी लगा ली थी , वेदपाल की पत्नी सपना ने आरोप लगाया था कि उसके चार बच्चों के परिवार को पिछले 3 दिनों से खाना नही मिला सो बेबसी में वेदपाल ने जान दे दी । दूसरा मामला सामने आया हरियाँवा से । हरियांवा क्षेत्र के शैलेन्द्र ने भी फांसी लगाकर जान दे दी रक्षाबंधन वाले दिन , शैलेन्द्र की पत्नी सिया ने बताया कि त्योहार के दिन बच्चे मिठाई मांग रहे थे , गरीबी के हालातों से जूझता शैलेन्द्र मिठाई नही ला सका और उसने अपनी जान दे दी । इन दोनों ही मामलों ने आम और खास दोनो को हिला दिया था , और दोनो ही जानो के जाने के बाद प्रशासन पहुंचा था इन परिवारों के पास उन्हें सरकारी योजनाओं के लाभ दिलाने ।
इन्ही दोनो मामलों से कनेक्ट करिएगा आज के इस घटना क्रम को । उत्तरप्रदेश सरकार के मंत्री और साथ मे बैठे अधिकारियों को उस समय असहज हो जाना पड़ा जब पब्लिक से एक आवाज में सरकारी व्यवस्थाओं की पोल खुलनी शुरू हो गयी । मंत्री ने पूछा कि फलानी योजना का लाभ मिला कि नही मिला ? पब्लिक से एक मुश्त आवाज आई - नही मिला , मिला । मंत्री जी बाढ़ से जूझ रहे इलाके में राहत कार्यों का जायजा लेने गए थे ।
यूपी सरकार के आबकारी मंत्री नितिन अग्रवाल बाढ़ से जूझ रहे बिलग्राम क्षेत्र में पहुंचे थे राहत कार्यों का जायजा लेने । मंत्री नितिन अग्रवाल ने चौपाल लगाकर लोगों की समस्याएं सुनना शुरू किया , सरकार के नुमाइंदे को अपने बीच पहुंचा देख कर पब्लिक ने भी अपनी समस्याओं के बारे में खुलकर बताया । मंत्री नितिन अग्रवाल ने वहां मौजूद महिलाओं से जब पूछा कि उज्ज्वला योजना के सिलेंडर उन्हें मिले कि नही तो एक मुश्त आवाज आई - नही मिला , नही मिला ...
आबकारी मंत्री नितिन अग्रवाल के साथ जिले के वरिष्ठ अधिकारी भी मौजूद रहे थे , पब्लिक का हाल जानकर मंत्री नितिन अग्रवाल ने सम्बंधित अधिकारियों को एक समय सीमा के भीतर वहां के लोगों को सरकारी योजनाओं का लाभ दिलाने के निर्देश दिए ।
अब मंत्री जी इस क्षेत्र में पहुंच गए तो उनसे पब्लिक ने अपने मन की बात कह दी और मंत्री जी ने सुन ली , हो सकता है जल्दी ही स्थितियां सुधरें भी । सरकारी योजनाओं का लाभ पात्र व्यक्तियों को उनके जीवित रहते मिल सके इसके लिए अब शायद जनप्रतिनिधियों को हर हफ्ता पंद्रह दिनों में इस तरह की चौपालें लगाकर क्षेत्र की जनता का पुरसाहाल लेते रहना पड़ेगा । सरकारी मशीनरी पर ही सब कुछ छोड़ कर इतिश्री कर लेना शायद ठीक नही , पांच साल बाद कुंडी खटखटाने तो आखिर इन जनप्रतिनिधियों को ही जाना पड़ेगा । कोई वेदपाल , कोई शैलेन्द्र अपनी मुफ़लिसी और बेबसी के चलते अपनी जान न दें इसके लिए जनप्रतिनिधियों के मोर्चा संभालना अब जरूरी हो गया है , ये पब्लिक के लिए भी बेहतर होगा और स्वंय जनप्रतिनिधियों के लिए भी ।
(अभिनव द्विवेदी )