यूपी में पूर्व सांसद डीपी यादव अब ओबीसी-दलित और मुस्लिम संगठन जोड़ने निकले

यूपी में पूर्व सांसद डीपी यादव अब ओबीसी-दलित और मुस्लिम संगठन जोड़ने निकले

I.N.D.I.A और NDA के बाद यूपी में एक तीसरा मोर्चा भी आकर ले रहा है। यूपी सरकार में कभी कैबिनेट मंत्री रहे पूर्व सांसद डीपी यादव तीसरा मोर्चा विमर्श की राजनीति में बढ़ चुके हैं। 2024 चुनाव को देखते हुए छोटे से लेकर बड़े सभी राजनीतिक दल अलग-अलग तरीके के राजनीतिक प्रयोग करने में जुटे हैं। पूर्व सांसद डीपी यादव ने पहले शिवपाल सिंह यादव के नेतृत्व में यदुकुल पुनर्जागरण मिशन भी चलाया गया था।

ऐसे में 3 सितंबर रविवार को लखनऊ के चारबाग में रविंद्रालय सभागार में एक सम्मेलन आयोजित होने जा रहा है। इसका थीम तीसरा मोर्चा विमर्श है। यह सम्मेलन राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग, अनुसूचित जाति और अल्पसंख्यक महासंघ के बैनर तले आयोजित होगा।

सम्मेलन में सह आयोजक की भूमिका डीपी यादव निभा रहे हैं। उनके नेतृत्व वाला राष्ट्रीय परिवर्तन दल और विश्वात्मा की वोटर्स पार्टी इंटरनेशनल, रविवार को होने वाले जुटान में हाईकोर्ट के पूर्व जज वीरेंद्र सिंह यादव, दिल्ली यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर रतनलाल और उन्नाव के पूर्व जिला अध्यक्ष रामकुमार यादव भी मुख्य रूप से शामिल रहेंगे।

मोर्चे के संयोजकों का दावा

ऐसे में मोर्चे के संयोजकों का दावा है, ये तीसरा मोर्चा राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) और भारतीय राष्ट्रीय विकासशील समावेशी गठबंधन (I.N.D.I.A ) से एकदम अलग होगा। इसमें अभियान चलाकर दूसरे तमाम छोटे-छोटे दल शामिल किए जाएंगे। सबको एक साथ लाकर पिछड़ों, दलितों और अल्पसंख्यकों से जुड़े मुद्दों को लेकर संघर्ष किया जाएगा बड़ा आंदोलन शुरू किया जाएगा।

गठबंधन के अगुवा मानते हैं कि छोटे-छोटे दल सीधे जनता से जुड़े होते हैं पर मुख्य धारा के दलों की ओर से उपेक्षित किए जाते रहे हैं। इनमें से कई दल और उनके नेता BJP और सपा की नीतियों से आहत और नाराज हैं। इन्हें एक साझा मंच दिया जाएगा। इनमें एनडीए में शामिल 38 और इंडिया से जुड़े 26 दलों से इतर पार्टियां शामिल होंगी। शुरूआती चरण में जनभागीदारी की ये सामाजिक सक्रियता होगी। पर इस मुहिम का भविष्य सियासी है। भविष्य में चुनावी राजनीति को लेकर मंथन किया जाएगा।

छोटे दलों को जोड़ेंगे, मुख्य उद्देश्य मोदी हटाओ: विश्वात्मा

कार्यक्रम के सह संयोजक विश्वात्मा ने बताया कि प्रदेश की सियासत में जनाधिकार को लेकर कोई भी दल बात नहीं कर रहा है। कोई संविधान का डर दिखा रहा है तो कोई अगड़े-पिछड़े के रूप में समाज को बांटने की कोशिश में लगा हुआ है।

प्रदेश के करीब दो दर्जन से ज्यादा दल संपर्क में हैं। इन सभी को मिलाकर तीसरा मोर्चा गठित किया जाएगा। लखनऊ के कार्यक्रम के बाद उत्तर प्रदेश के विभिन्न जिलों में कार्यक्रम का आयोजन किया जाएगा। साफ तौर पर मोदी हटाओ देश बचाओ की नीति पर तीसरा मोर्चा कार्य करेगा।

अब आगे बात करते हैं डीपी यादव की, कभी मिनी सीएम कहते थे लोग, राजनीति में था वर्चस्व

जब डीपी यूपी की राजनीति में महत्वपूर्ण स्थान रखते थे और उन्हें मुलायम सिंह का सबसे खास माना जाता था। माना जा रहा था कि 2014 में डीपी को बीजेपी में जगह मिल जाएगी। बीजेपी नेताओं से डीपी की कई बार बातचीत भी हुई थी और उन्होंने अमित शाह से मुलाकात भी की थी।

2004 में भी वह BJP में शामिल हुए थे लेकिन कई लोगों ने उनका विरोध किया था जिसके बाद उन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। 2009 में वह बसपा के टिकट पर बदायूं से लोकसभा चुनाव लड़े थे लेकिन सपा के धर्मेंद्र यादव ने उन्हें हरा दिया था। 2012 में जब बसपा ने उनका टिकट काटा तो उन्होंने सपा से संपर्क किया लेकिन अखिलेश ने उन्हें पार्टी में लेने से इनकार कर दिया।

2007 में बनाया राष्ट्रीय परिवर्तन दल

डीपी यादव ने 2007 में खुद की पार्टी भी बनाई थी। इसका नाम है राष्ट्रीय परिवर्तन दल। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कई इलाकों में डीपी का खासा प्रभाव माना जाता है। हालांकि उनकी छवि बाहुबली नेता की ही रही है। नोएडा के सर्फाबाद गांव में पैदा हुए डीपी यादव का पूरा नाम धर्मपाल यादव है।

राजनीति का चस्का उन्हें बचपन से ही था। 1989 में वो पहली बार विधायक बने थे। मुलायम ने उन्हें पंचायती राज मंत्री बनाया था। डीपी को जानने वाले लोग बताते हैं कि उस समय उन्हें मिनी सीएम कहा जाता था। डीपी का जलवा इतना था कि वो अफसरों को कुछ नहीं समझते थे और उनके साथ काफी सख्ती से पेश आते थे।

दो मामले और डीपी यादव का राजनीतिक सफर डूबने लगा

डीपी यादव 1991 और 1993 में भी वह विधायक रहे, 1996 में लोकसभा के सदस्य भी रहे। 2004 में बीजेपी ने उन्हें राज्यसभा सदस्य बनाया था। लेकिन 2002 में नीतीश कटारा का मर्डर केस जिसका आरोप उनके के बेटे और भतीजे पर लगा।

बुलंदशहर के खुर्जा इलाके में नीतीश की लाश मिली थी। इस मामले में विकास और विशाल को उम्रकैद की सजा हुई थी। 2015 में उन्हें हत्या के एक मामले में उम्रकैद की सजा भी सुनाई गई थी। इन्हीं दोनों मामलों के बाद से डीपी यादव का राजनीतिक करियर डूबने लगा। सभी राजनीतिक दल उन्हें अपने साथ जोड़ने से कतराने लगे। डीपी से जुड़े लोग भी उनसे किनारा करने लगे। उनकी पार्टी के लोग टूटने लगे और दूसरी पार्टियों का रुख करने लगे।

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