लोकसभा चुनाव 2024 को लेकर राजनीतिक पार्टियों ने तैयारी शुरू कर दी है। गठबंधन बनाने और नए दलों को अपने पाले में लाने के लिए पार्टियां कोशिश कर रही है। फिलहाल NDA और विपक्षी दलों के गठबंधन I.N.D.I.A आमने-सामने है। ऐसे में बसपा ने साफ कर दिया है कि वह गठबंधन का हिस्सा नहीं बनेगी। वह लोकसभा चुनाव अकेली ही लड़ेगी।
अब आपको पढ़वाते है किन कारणों से बसपा सुप्रीमो ने अकेले लड़ने का फैसला लिया...
मिथ को खत्म करना चाहती है कि वह बीजेपी की B COMPANY है
केंद्र में मोदी सरकार और प्रदेश में योगी सरकार आने के बाद से ही समय-समय पर बसपा सुप्रीमो मायावती पर आरोप लगाते रहे कि वह बीजेपी के साथ मिली हुई है। कभी बसपा के साथ गठबंधन में रही सपा की तरफ से भी यह आरोप लगाया गया कि बसपा सुप्रीमो ईडी और सीबीआई के डर के कारण बीजेपी से मिली हुई है।
वही, भाजपा नेताओं का मानना था कि बसपा के अकेले लड़ने पर विधानसभा चुनाव जैसे उसकी स्थिति हो सकती है। बसपा 2007 के विधानसभा चुनाव के बाद से ही लगातार हार का सामना कर रही है। लेकिन अब बसपा सुप्रीमो के ट्वीट के बाद स्थितियां साफ हो गई है कि आने वाला लोकसभा चुनाव BSP अपने दम पर ही लड़ेगी।
यादव के साथ दलित वो परिणाम नही ला सकते जो मुस्लिम के साथ दलित मिल कर ला सकते है..
यूपी में अगर दलित वोट बैंक की बात करें तो 20 से 22% तक यह वोट बैंक है। बसपा का अस्तित्व उसके बेस वोट बैंक दलितों से ही रहा है। लेकिन जब से बसपा सत्ता से गायब रही लगातार इस ग्राफ में गिरावट आई। इस ग्राफ को सही करने के लिए बसपा सुप्रीमो ने समय-समय पर एक्सपेरिमेंट भी किया, लेकिन इसका बेहतर नतीजा सामने नहीं आया।
पिछले लोकसभा चुनाव की अगर बात करें तो बसपा और सपा गठबंधन से चुनाव लड़ी थी। जिसमें बसपा के वोटिंग परसेंटेज में तो इजाफा नहीं हुआ था। लेकिन पार्टी ने 10 सीटें जीती थी। अगर 2019 लोक चुनाव परिणाम को देखे तो यादवों ने पूरी ताकत से सपा को वोट तो दिया पर नतीजे बेहतर नहीं मिले। ऐसे में बसपा बार बार यह संदेश दे रही है कि यदि दलित-मुस्लिम एक हो जाएं तो भाजपा को रोका जा सकता है।
मायावती का मानना कि हम किसी को कंधा देने के लिए नही..
यूपी की राजनीति में बसपा ने समय-समय पर सत्ता की गद्दी को हासिल करने के लिए गठबंधन भी किया। लेकिन वह गठबंधन ज्यादा दिन सफल नहीं रहा। 1993 में हुए विधानसभा चुनाव में बसपा ने सपा के साथ मिलकर विधानसभा चुनाव लड़ी और 1995 में गेस्ट हाउस कांड के बाद गठबंधन टूट गया।
उसके बाद बसपा ने फिर भाजपा के साथ 1995, 1997 और 2002 में गठबंधन किया था। उसके बाद 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले बसपा सुप्रीमो ने सपा के साथ गठबंधन किया था। लेकिन चुनाव परिणाम आने के बाद गठबंधन टूट गया। अब जब 2024 का लोकसभा चुनाव करीब है तब बसपा सुप्रीमो ने यह साफ तौर पर ऐलान कर दिया है कि वह इस बार किसी का कंधा न बनाकर अकेले ही भाजपा को टक्कर देंगी।
लोकसभा की कई सीटों पर बसपा का प्रभाव
लोकसभा के कई पश्चिम और पूर्व की सीटों पर ऐसी समीकरण है। जहां अगर बीएसपी मजबूती से लड़े तो बीजेपी को काटे की टकर दे सकती है। जिसमे मेरठ, गौतमबुध नगर, बुलंदशहर, अलीगढ़, आगरा,फतेहपुर सीकरी, शाहजहांपुर, सहारनपुर,भदोही, गाजीपुर, जौनपुर, देवरिया, संत कबीर नगर, अंबेडकर नगर और सुल्तानपुर, मऊ ऐसे जिले है जहां के जातीय समीकरण को देखे तो बसपा बीजेपी को मजबूत टक्कर दे सकती है।