केंद्र सरकार ने 18-22 सितंबर तक संसद का स्पेशल सत्र बुलाया है. इस दौरान वन नेशन, वन इलेक्शन को लेकर बिल पेश किए जाने की संभावना है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह के इस मास्टरस्ट्रोक से विपक्षी दल भी हैरान हैं. लोकसभा चुनाव के लिए जहां वे एकजुट हो रहे थे, अब INDIA कुनबे में हलचल मच गई है.
जी20 की बैठक के एक हफ्ते बाद 18-22 सितंबर के बीच सांसद का विशेष सत्र बुलाने की घोषणा कर सरकार ने विपक्षी दलों के गठबंधन इंडिया (I.N.D.I.A.) को भौंचक्का कर दिया है. विपक्ष के 28 दलों के इस गठबंधन के नेता सांसत में हैं कि यह भाजपा सरकार का कौन-सा दांव है? उनके नेता 2024 की तैयारी में जुटे हुए हैं लेकिन यह एकजुटता अभी पुख़्ता नहीं बन पाई है. इसीलिए इंडिया गठबंधन बनने के मात्र एक महीने में तीसरी अहम बैठक मुंबई में हो रही है.
विपक्षी गठबंधन में अबतक सीट शेयरिंग के मुद्दे पर बात नहीं हुई है लेकिन इसपर चर्चा के दौरान विपक्षी नेताओं में उठापटक देखने को मिल सकता है. 28 दलों में से कुछ को लोकसभा चुनाव के लिए एक भी सीट नहीं दी गई है. उनको कहा गया है, कि मोदी को हराने के लिए पहले एक हो जाओ. सीट तो मिलती रहेगी. किंतु लाभ के पद से वंचित रहने से जो कुंठा अंदर ही अंदर पनपती है, वह किसी भी गठबंधन के बड़े दल का बंटाधार करती है.
चंद्रयान की सफलता से मोदी के पौ-बारह
यही सब सोंच कर केंद्र की मोदी सरकार ने संसद का विशेष सत्र बुलाने का निर्णय किया होगा. अभी जनता के बीच मोदी की प्रतिष्ठा शिखर पर है. चंद्रयान-3 की सफलता ने उनके हौसले बढ़ा दिए हैं. विश्व में उनका डंका बज रहा है, क्योंकि भारत का चंद्रयान जिस जगह उतरा, वह अभी तक अछूती थी. चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर पानी मिलने की संभावना से चंद्रमा पर जीवन के संकेत भी मिले हैं.
अभी तक चंद्रमा में जीवन के कोई लक्षण नहीं मिले थे लेकिन भारत के रोवर प्रज्ञान ने चंद्रमा के बारे में बहुत सारे अज्ञान से उबारा है. इसके बाद जी-20 की मेज़बानी से भी भारत का रुतबा बढ़ा है. विश्व के 20 विकसित देशों में से 18 देशों के राष्ट्राध्यक्ष इस आयोजन में पहुंच रहे हैं. आठ, नौ और दस सितंबर को दिल्ली में होने वाली इस बैठक से भारत में काफ़ी-कुछ विनिवेश होगा. इसका श्रेय भी सरकार को मिलेगा.
विशेष अधिवेशन पहले भी बुलाए गए हैं
इन सफलताओं से प्रफुल्लित सरकार ने तय किया है कि 18 से 22 सितंबर तक संसद का विशेष सत्र बुलाया जाए. हालांकि, विशेष सत्र कोई आम बात नहीं है. किसी विशेष स्थिति में ही ऐसा किया जा सकता है. मगर सरकार ने ना कोई खुलासा किया न विपक्षी दलों को इसकी भनक लगने दी लेकिन ऐसा करना कोई असंवैधानिक नहीं है. पूर्व की सरकारें भी ऐसा कर चुकी हैं. अब विपक्षी दलों के गठबंधन को लग रहा है कि सरकार इस विशेष सत्र में कौन-कौन से बिल पास करेगी?
सरकार के पास लोकसभा में अपार बहुमत है और राज्यसभा में उसके पास जुगाड़ है. इसलिए वह जो बिल चाहे पास करवा सकती है. विपक्षी गठबंधन इंडिया को सबसे अधिक भय एक राष्ट्र एक चुनाव (One Nation, One Election) का है, क्योंकि ऐसा कर सरकार अपनी तात्कालिक लोकप्रियता को इसी वर्ष भुना सकती है.
एक देश, एक चुनाव से खतरा
जल्द ही मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, तेलांगना, मिज़ोरम और राजस्थान में विधानसभा चुनाव हैं. ऐसे मौक़े पर यदि लोकसभा चुनाव भी इसी मौक़े पर करवाने का फ़ैसला हो गया तो इंडिया के लिए अपने को संभालना मुश्किल हो जाएगा. वजह यह है, कि ये सारे दल अपने-अपने राज्यों में कांग्रेस के विरोधी हैं. कांग्रेस को माइनस कर INDIA कोई करिश्मा नहीं कर सकता. इसके अतिरिक्त कई और विधेयक भी लाए जाने की संभावना है.
यह भी कहा जा रहा है कि सरकार इस विशेष सत्र में महिला आरक्षण का बिल ला सकती है या समान नागरिक संहिता पास कराने हेतु विधेयक ला सकती है. महिला आरक्षण के मुद्दे पर भाजपा में भी असंतोष हो सकता है और समान नागरिक संहिता (UCC) का बहुत लाभ सरकार को नहीं मिलेगा लेकिन यदि सरकार एक देश, एक चुनाव का बिल ले आई और वह क़ानून बन गया तो मोदी सरकार को पुनः आने से रोकना मुश्किल हो जाएगा.
क़ानून लाना आसान नहीं
मगर यह क़ानून लाना आसान नहीं होगा. इसमें कई अड़चनें हैं, क्योंकि इस पर अमल के लिए दो-तिहाई राज्यों की सरकारें भी इस पर सहमत हों. एक अड़चन तो यह है कि कुछ विधानसभाओं को कार्यकाल पूरा होने के पहले भंग की जाएं और कुछ का कार्यकाल बढ़ाया जाए ताकि सबका चुनाव एक साथ हो सके. इसलिए इस बिल के पास होने के बाद भी तत्काल यह लागू नहीं हो सकेगा. परंतु सरकार को फ़ायदा यह होगा कि वह विपक्ष में हबड़-तबड़ मचा देगी.
INDIA के घटक दल अपने राज्यों में लग जाएंगे. दूसरे आने वाले महीनों में सरकार के पास और कुछ श्रेय मिलने से रहा. अडानी को लेकर लगातार जो रिपोर्ट्स लीक की जा रही हैं, उससे केंद्र सरकार पर हमले के और कई रूप आएंगे. ऐसे में जल्द चुनाव केंद्र के लिए फ़ायदेमंद होगा और अगर सरकार अपने चातुर्य से एक देश, एक चुनाव क़ानून बनाने में कामयाब हो गई तो बल्ले-बल्ले.
हवा में तलवारबाजी
अभी इस विशेष सत्र के बारे में कोई पुख़्ता जानकारी नहीं है लेकिन विशेष सत्र बुलाने की घोषणा से ही हड़कंप मच गया है. यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ऐसा मास्टर स्ट्रोक है, जिससे इंडिया को कुछ सूझ नहीं रहा. जिस तीव्रता के साथ यह इंडिया गठबंधन उभरा था, इससे उसे आघात लगा है. यद्यपि भाजपा और कांग्रेस दोनों को एक देश, एक चुनाव से लाभ होगा क्योंकि ये दोनों दल किसी एक राज्य तक सीमित नहीं हैं. पर क्या कांग्रेस अपने बूते पूरे देश में चुनाव लड़ पाएगी?
पिछले दो लोकसभा में उसकी संख्या इतनी कम रही कि उसने अपना जनाधार भी खोया है. आज की तारीख़ में उसका जो भी जनाधार है, वह अन्य क्षेत्रीय दलों के बूते है. ज़ाहिर है कांग्रेस की इस कमजोरी का लाभ भाजपा को मिला है. यह मोदी और शाह की ऐसी रणनीति है, जिससे विपक्षी गठबंधन को शॉक लगा है.
मोदी-शाह को भांपना मुश्किल
दरअसल, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह दो ऐसे राजनेता हैं, जिनके लिए राजनीति के लिए कोई भी ऐसा विषय नहीं जिस पर उनकी दिलचस्पी हो. वे आज से नहीं बल्कि तब से वे इस मुहीम में जुटे हैं जब से वे संसदीय राजनीति में आए. तीन बार लगातार गुजरात विधानसभा चुनाव जीतना आसान नहीं था पर वे जीते. इसी तरह जब से वे केंद्र में आए लगातार दूसरी बार पूर्ण बहुमत के साथ भाजपा लोकसभा चुनाव जीती.
उनकी यह सफलता बताती है, कि नरेंद्र मोदी के सामने विपक्ष के दांव-पेच ढीले पड़ जाते हैं. क्योंकि चुनाव जीतने की कला में वे माहिर हैं. भाषण पटु तो वे हैं ही, उन्हें अच्छी तरह पता है कि विपक्ष की कमजोरी क्या है. वे उसी कमजोर नस को दबाते हैं और सफलता वे पा जाते हैं. आज संसद का विशेष सत्र बुलाने का उनका दांव कुछ ऐसा ही है.
मास्टर स्ट्रोक मारेंगे?
एक देश, एक चुनाव की बात वे आज से नहीं कर रहे बल्कि 2014 और 2019 से वे इस अभियान में जुटे हैं. उस समय ग़ैर भाजपाई दल इसकी गंभीरता को समझ नहीं पाए और तो और 2019 में सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव और जनता दल (यू) प्रमुख नीतीश कुमार इसका स्वागत कर रहे थे. अब वे इसे लेकर बेचैन हैं.
विपक्षी गठबंधन इंडिया के कुनबे को बिखेरने के लिए एक देश, एक चुनाव का अभियान काफ़ी है. इसलिए जो विपक्ष कल तक यह मान कर चल रहा था, कि भाजपा के पास कोई राजनीतिक चातुर्य नहीं है. वह तो बस हिंदू-मुस्लिम कर सत्ता में आ गई है, वे भौंचक्के रह गए हैं. उनके लिए अब बड़ी मुश्किल खड़ी हो गई है. अगर सरकार इस बिल को लाकर क़ानून बना ले गई तो भी और अगर ऐन पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों के साथ लोकसभा चुनाव करवा दिया तो भी. मोदी क्या मास्टर स्ट्रोक भारी पड़ने वाला है.