न मंदिर-न पुजारी, क्या है आत्मसम्मान विवाह जिसे सुप्रीम कोर्ट ने भी दी मंजूरी

न मंदिर-न पुजारी, क्या है आत्मसम्मान विवाह जिसे सुप्रीम कोर्ट ने भी दी मंजूरी

सुप्रीम कोर्ट ने मद्रास हाईकोर्ट के फैसले को खारिज करते हुए यह आदेश दिया. बता दें कि तमिलनाडु सरकार ने 1968 में, सुयमरियाथाई विवाह को लीगल बनाने के लिए कानून के प्रावधानों में संशोधन किया था. इसका मकसद विवाह प्रक्रिया को सरल बनाना था.

सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु में सुयमरियाथाई (आत्मसम्मान) विवाह को मंजूरी दे दी. शीर्ष अदालत ने सोमवार को मद्रास हाई कोर्ट के एक फैसले को रद्द करते हुए यह आदेश दिया. हाई कोर्ट ने कहा था कि वकील अपने कार्यालयों में ऐसे विवाह नहीं करा सकते हैं. मगर उच्चतम न्यायालय ने अपने आदेश में कहा कि वकील अपने कार्यालयों में ऐसे विवाह नहीं करा सकते हैं.

जस्टिस एस रवींद्र भट्ट और जस्टिस अरविंद कुमार की बेंच ने मद्रास हाईकोर्ट के फैसले को खारिज कर दिया. दो जजों की इस बेंच ने कहा कि वकील संशोधित हिंदू विवाह कानून के तहत व्यक्तिगत रूप से दंपती को जानने के आधार पर वे कानून की धारा-7(A) के तहत विवाह करा सकते हैं. कोर्ट ने कहा कि वकील पेशेवर क्षमता में काम नहीं कर रहे हैं लेकिन यह काम करा सकते हैं.

बता दें कि सुप्रीम कोर्ट मद्रास हाईकोर्ट के उस आदेश के खिलाफ इलावरसन नामक एक शख्स की अपील पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें उसकी बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका खारिज कर दी गई थी. इलावरसन की तरफ से पेश वकील एथेनम वेलन ने दावा किया कि उन्होंने अपनी पत्नी के साथ सुयमरियाथाई विवाह किया था और उनकी पत्नी अभी अपने अभिभावकों की अवैध अभिरक्षा में है.

क्या है आत्मसम्मान विवाह?

तमिलनाडु सरकार ने 1968 में, सुयमरियाथाई विवाह को लीगल बनाने के लिए कानून के प्रावधानों में संशोधन किया था. इसका मकसद विवाह प्रक्रिया को सरल बनाना था. इसके अलावा ब्राह्मण पुजारियों, पवित्र अग्नि और सप्तपदी (सात फेरे) की अनिवार्यता को खत्म करना था. यह संशोधन विवाह कराने के लिए ऊंची जाति के पुजारियों और विस्तृत रीति-रिवाजों की आवश्यकता को दूर करने के लिए किया गया था. हालांकि, इन विवाहों को भी कानून के मुताबिक रजिस्ट्रेशन कराने की दरकार थी.

Leave a Reply

Required fields are marked *