बीती 23 अगस्त को ‘चंद्रयान-3’ के ‘विक्रम लैंडर’ ने चांद के दक्षिणी ध्रुव की सतह पर सफल लैंडिंग की। इस ऐतिहासिक घटना के बाद आज भारत अपने ही अनुसंधान और प्रयोगों के बल पर चांद के उस हिस्से पर मौजूद है, जहां कोई भी देश पहुंच नहीं सका। चंद्रयान-3 की सफल लैंडिंग और अंतरिक्ष विज्ञान में भारत की इस महान उपलब्धि पर इस हफ्ते पंजाबी अखबारों ने अपनी राय प्रमुखता से रखी है।
जालंधर से प्रकाशित जगबाणी लिखता है- 23 अगस्त, 2023 को शाम 6.04 बजे का समय भारत के इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों में अंकित हो गया, जब ‘भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन’ (इसरो) के ‘चंद्रयान-3 मिशन’ का लैंडर माड्यूल चंद्रमा की सतह पर कठिन दक्षिणी ध्रुव पर साफ्ट लैंडिंग करने में सफल हो गया जिसके लिए सारा देश प्रार्थनाएं तथा धार्मिक अनुष्ठान कर रहा था। कुछ दिन पहले रूस ने चांद के दक्षिणी ध्रुव पर पहुंचने की कोशिश की थी परन्तु उसका अंतरिक्ष यान ‘लूना-25’ चांद की सतह से टकरा कर दुर्घटनाग्रस्त हो जाने के कारण भारत के चंद्रयान-3 मिशन का महत्व और भी बढ़ गया था तथा सारे विश्व की नजरें भारत के मिशन पर थीं।
अखबार लिखता है, ‘इसरो’ ने अपने चंद्र खोज अभियान की शुरुआत चंद्रयान-1 से की थी। यह 22 अक्टूबर, 2008 को श्रीहरिकोटा से भेजा गया था तथा 30 अगस्त, 2009 को ‘इसरो’ से इसका संपर्क टूट गया। 18 सितम्बर, 2008 को तत्कालीन मनमोहन सिंह सरकार ने चंद्रयान-2 मिशन को स्वीकृति दी जिसे 20 अगस्त, 2019 को भाजपा सरकार के दौरान अंतरिक्ष में भेजा गया, पर यह मिशन अंतिम समय में विफल हो गया। इसके बाद 14 जुलाई, 2023 को भारतीय समय के अनुसार बाद दोपहर 2.35 बजे चंद्रयान-3 भेजा गया, जिसने पहले से तय कार्यक्रम के अनुसार 23 अगस्त को सफल लैंडिंग कर इतिहास रच दिया है। इस प्रकार रूस, अमरीका और चीन के बाद चांद की सतह पर उतरने वाला भारत विश्व का चौथा देश तथा इसके दक्षिणी ध्रुव पर उतरने वाला विश्व का पहला देश बन गया है। पड़ोसी देश पाकिस्तान में भी ‘भारतीय चंद्रयान-3’ जिंदाबाद हो रहा है। पाकिस्तान के पूर्व सूचना व प्रसारण मंत्री फवाद चैधरी ने भारत की इस सफलता पर टिप्पणी करते हुए कहा है कि, ‘यह पूरे उपमहाद्वीप के लिए गर्व की बात है और हमारे लिए भी गर्व का क्षण है।’’ निश्चय ही इसरो के 17,000 वैज्ञानिकों और कर्मचारियों ने अपनी लगन और मेहनत से इस मिशन को सफल बनाकर न सिर्फ हर भारतवासी का सिर गर्व से ऊंचा कर दिया है, बल्कि भारत को अंतरिक्ष अनुसंधान के अग्रणी देशों में ला खड़ा किया है जिसके लिए वे बधाई के पात्र हैं। आशा है कि भविष्य में भी ‘इसरो’ के वैज्ञानिक और कर्मचारी अपने अगले सूर्य अभियान ‘आदित्य एल-1’ में भी सफलता का इतिहास रचेंगे।
जालंधर से प्रकाशित पंजाबी जागरण लिखता है- यह निश्चित रूप से 21वीं सदी के नये भारत की एक बड़ी उपलब्धि है। यह अपने आप में एक बड़ी ‘मेक इन इंडिया’ उपलब्धि है। अब भारत भी अंतरिक्ष अन्वेषण के क्षेत्र में अग्रणी देशों में शामिल हो गया है। अखबार आगे लिखता है, जब रूस का लूना-25 मिशन फेल हो गया और सॉफ्ट लैंडिंग से पहले ही क्रैश हो गया तो हर किसी के माथे पर चंद्रयान-3 की लैंडिंग को लेकर चिंता की लकीरें आ गईं। रूस की विफलता से जहां पूरी दुनिया को इस अनूठे मिशन की चुनौतियों के बारे में जानकारी मिली, वहीं भारत के इस चंद्र मिशन के महत्व पर भी प्रकाश पड़ा। साल 2019 में चंद्रयान-2 मिशन की विफलता के कारण हर किसी के मन में चिंता होना स्वाभाविक था। अखबार के मुताबिक, वैसे तो अमेरिका, रूस और चीन जैसे देश चंद्रमा की सतह पर अपने-अपने यान की सॉफ्ट लैंडिंग करा चुके हैं, लेकिन दक्षिणी हिस्से पर अब तक कोई भी देश यह कारनामा नहीं कर पाया है। उम्मीद कर सकते हैं कि यह भारत की शुरुआत है और अंतरिक्ष में अन्य ब्रह्मांडीय अन्वेषण भारत की पहुंच से दूर नहीं होंगे।
सिरसा से प्रकाशित सच कहूं लिखता है- मात्र 20 वर्षों में चंद्रयान की सफलता इस बात का प्रमाण है कि भारत के पास वैज्ञानिकों की कोई कमी नहीं है। अखबार लिखता है, चंद्रमा पर विजय प्राप्त करने के बाद अब भारतीय वैज्ञानिकों और ‘इसरो’ के लिए अनगिनत अवसर होंगे। इसरो ने पहले ही दूसरे देशों के उपग्रहों को अंतरिक्ष में लॉन्च करके पैसा कमाना शुरू कर दिया है। लंबे समय से अमेरिका का अंतरिक्ष अनुसंधान केंद्र नासा पूरी दुनिया के लिए आकर्षण का केंद्र बना हुआ है। अब इसरो भी दुनिया के नक्शे पर आ गया है। निःसंदेह अब इसरो भी पर्यटन स्थल बनेगा। इसरो को अगली परियोजनाओं के लिए अधिक वित्तीय सहायता मिलनी चाहिए ताकि वैज्ञानिक जोश के साथ नई खोजों को अंजाम दे सकें।
चंडीगढ़ से प्रकाशित पंजाबी ट्रिब्यून लिखता है- यह सफलता भारत और विज्ञान के इतिहास में दूरगामी और एक मील का पत्थर है। यह पूरे देश के लिए गर्व और सम्मान की घड़ी है। भारत चंद्रमा पर यान उतारने वाला पहला विकासशील देश है। इसरो का एक महत्वपूर्ण लक्ष्य अंतरिक्ष में एक स्थायी अनुसंधान स्टेशन स्थापित करना है। अखबार आगे लिखता है, चंद्रमा की सतह पर किसी जांच को सफलतापूर्वक उतारना एक नई शुरुआत है। इससे महत्वपूर्ण डेटा प्राप्त होगा जो ब्रह्मांड के गठन और उसके बाद के विकास में अंतर्दृष्टि प्रदान करेगा। इससे भौतिकी, गणित, खगोल विज्ञान, अंतरिक्ष विज्ञान और विज्ञान के अन्य क्षेत्रों में प्रगति होगी और अनुसंधान के नए क्षितिज भी सामने आएंगे।
चंडीगढ़ से प्रकाशित देशसेवक लिखता है- 23 अगस्त का दिन भारतीय विज्ञान, वर्तमान और भविष्य के भारतीयों के लिए हमेशा याद रखने वाला दिन बन गया है। भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम को अभी लंबा सफर तय करना है। इसलिए आने वाले दशकों में इस दिन का जिक्र बार-बार किया जाएगा। अखबार लिखता है, युवा प्रतिभाएं पहले से ही अंतरिक्ष विज्ञान में रूचि ले रही हैं। चंद्रयान-3 की सफलता निश्चित तौर पर बेहद खास परिणाम सामने लाएगी।
जालंधर से प्रकाशित अज दी आवाज लिखता है- भारत और रूस, अमेरिका, चीन मंगल ग्रह पर जाने के लिए चंद्रमा को आधार के रूप में उपयोग करने की तैयारी कर रहे हैं। कहा जा रहा है कि मंगल ग्रह तक जाने का सारा रास्ता चंद्रमा से होकर गुजरेगा। चूंकि चंद्रमा पृथ्वी से कम दूरी पर है, इसलिए चंद्रमा से मंगलयान को लॉन्च करना और चंद्रमा पर रहकर एक-दूसरे से संपर्क बनाए रखना आसान होगा। अभी तक चांद पर पानी होने की संभावना ही देखी गई है। चांद के दक्षिणी हिस्से में पानी को ऑक्सीजन और हाइड्रोजन में तोड़ा जा सकता है। हाइड्रोजन और ऑक्सीजन को मिलाकर शक्तिशाली और स्वच्छ रॉकेट ईंधन बनाया जा सकता है। मंगल ग्रह पर जाने वाले रॉकेट चंद्रमा पर उतर सकते हैं और वहां से यह तेल प्राप्त कर सकते हैं। चंद्रमा के इस पानी का उपयोग खेती के लिए भी किया जा सकता है। अगर ऐसा है तो चांद पर खेती से नया जीवन मिल सकता है।
अखबार लिखता है, इसके अलावा कहा जाता है कि चंद्रमा की उजाड़ भूमि पर सोना, प्लैटिनम, टाइटेनियम और यूरेनियम जैसी कीमती धातुओं की विशाल खदानें हैं। हर देश इन कीमती धातुओं के जरिए अधिक धन जमा करना चाहता है। इसके अलावा अमेरिका, चीन, रूस आदि देश चंद्रमा तक अपनी पहुंच मजबूत कर एक-दूसरे से अपनी राजनीतिक लड़ाई मजबूत करना चाहते हैं। इस मामले में कोई भी देश पीछे नहीं रहना चाहता। चंद्रमा पर पहुंचने के अपने ताजा प्रयास से भारत ने अमेरिका, रूस और चीन की भी बराबरी कर ली है। चंद्रयान-3 के इस मिशन से भारत को विभिन्न क्षेत्रों में लाभ मिलने की संभावना है।