New Delhi: विदेशों में मंदिरों पर हो रहे हमलों पर चुप क्यों हैं राष्ट्रवादी हिंदूवादी संगठन?

New Delhi: विदेशों में मंदिरों पर हो रहे हमलों पर चुप क्यों हैं राष्ट्रवादी हिंदूवादी संगठन?

देशभक्ति और हिन्दुत्व का दंभ भरने वाले संगठन कनाडा, ब्रिटेन और अमेरिका में खालिस्तान समर्थकों द्वारा मंदिरों और अन्य भारतीय प्रतिष्ठानों पर हमले पर आश्चर्यजनक रूप से चुप्पी साधे हुए हैं। देश के विभाजन के विदेशी प्रयासों पर इन संगठनों की यह चुप्पी समझ से परे है। नूंह में धार्मिक रैली के दौरान हुई हिंसा को लेकर आक्रामक रुख अपनाने वाले संगठनों ने विदेशों में सरेआम भारत और राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे के अपमान पर किसी तरह का धरना-प्रदर्शन तो दूर बल्कि सख्त प्रतिक्रिया तक देना जरूरी नहीं समझा। ऐसे मामलों में विदेशी सांसद अपनी ही सरकार के खिलाफ कड़ी प्रतिक्रिया दे रहे हैं। विदेशों में हमले की नई कड़ी में खालिस्तान समर्थकों ने कनाडा में एक बार फिर मंदिर पर हमला करके देश को चुनौती दी है।

खासतौर पर कनाडा में भारत विरोधी ताकतों की हरकतें बेलगाम होती जा रही हैं। खालिस्तान समर्थकों के मंदिर पर लगातार हो रहे हमले के बजाए यही हमले यदि किसी मुस्लिम संगठन द्वारा किए गए होते तो कथित देशभक्त संगठन अब तक आसमान सिर पर उठा लेते। इसके विपरीत खालिस्तान समर्थकों के हमलों के लेकर मौन धारण किए हुए हैं। कनाडा के ब्रिटिश कोलंबिया प्रांत में एक बार फिर से खालिस्तान समर्थकों ने हिंदू मंदिर में तोड़फोड़ की। खालिस्तानियों ने मंदिर में तोड़फोड़ की और इसे नुकसान पहुंचाया। इसके बाद जाते वक्त मंदिर के मुख्य दरवाजे पर खालिस्तान जनमत संग्रह के पोस्टर चिपका दिए। खालिस्तानियों की ये पूरी करतूत पास में ही लगे सीसीटीवी कैमरे में कैद हो गई। वर्ष 2023 की शुरुआत से तो पूरे कनाडा में हिंदू मंदिरों को निशाना बनाए जाने की श्रृंखला शुरू हो गई है, जिसमें मंदिर की मूर्तियों को नुकसान पहुंचाने से लेकर आपत्तिजनक भित्तिचित्र, सेंधमारी और बर्बरता की करीब आधा दर्जन घटनाएं हुई हैं। मौजूदा घटना कनाडा में हिंदू मंदिरों को निशाना बनाने की इस साल में तीसरी है। 31 जनवरी को ही कनाडा के ब्रैम्पटन में एक प्रमुख हिंदू मंदिर में तोड़फोड़ की गई थी। इसके ऊपर भारत-विरोधी बातें भी लिखी गईं। खालिस्तानियों की इस हरकत से वहां रहने वाले भारतीय समुदाय के बीच खासा नाराजगी थी। इस साल अप्रैल में ही कनाडा के ओंटारियो में भी एक हिंदू मंदिर खालिस्तानियों के निशाने पर आया था। इस पर भी भारत-विरोधी नारों को लिखा गया। कनाडा के ओंटारियो में ही एक गांधी प्रतिमा को तोड़ दिया था। मार्च के आखिरी हफ्ते में कनाडा के बर्नबाई में एक यूनिवर्सिटी के अंदर स्थित गांधीजी की प्रतिमा को भी तोड़ दिया गया। जिसके बाद भारत की ओर से सख्त एतराज जताया गया। कुछ दिनों पहले खालिस्तान-समर्थकों ने भारत विरोधी नारे लगाते हुए वाणिज्य दूतावास को भी नुकसान पहुंचाने की कोशिश की थी।

पिछले साल जुलाई में, ग्रेटर टोरंटो एरिया में रिचमंड हिल में विष्णु मंदिर में स्थित महात्मा गांधी की प्रतिमा को भद्दे शब्दों से पोत दिया गया था। जिसके बाद भारतीय समुदाय ने प्रदर्शन किया था। बीते दिनों भारतीय समुदाय के लोगों ने भारतीय दूतावास के बाहर खालिस्तानी समर्थकों के उत्पात के विरोध में प्रदर्शन किया, जिसके बाद कनाडा की सरकार ने कहा कि वे भारत विरोधी गतिविधियों पर लगाम लगाएंगे। कनाडा में खालिस्तानियों का आतंक बढ़ता जा रहा है। ऑपरेशन ब्लू स्टार की 39वीं वर्षगांठ पर ब्रैम्पटन में एक परेड का आयोजन किया गया था, जिसमें पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या को दर्शाती एक झांकी निकाली गई। फिर बीते दिनों भारतीय दूतावास के बाहर कुछ पोस्टर लगे नजर आए जिन पर भारतीय राजनयिकों की फोटो थी और इसके जरिए उन्हें निशाना बनाने की बात कही गई थी। इन घटनाओं को लेकर भारत ने कड़ी आपत्ति जताई थी। विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कनाडा की चुप्पी पर सवाल उठाए और कहा कि कोई सख्त कदम नहीं उठाए गए क्योंकि जस्टिन ट्रूडो सरकार वोट-बैंक की राजनीति कर रही है। विदेश मंत्री ने चेतावनी दी कि अगर ऐसे तत्व देश की संप्रभुता और सुरक्षा में बाधा डालेंगे तो भारत कड़ी प्रतिक्रिया देने में संकोच नहीं करेगा। चौंकाने वाली बात ये है कि कनाडा के राजनेता आंखें मूंदकर बैठे हुए हैं। कनाडा खालिस्तान के आतंकियों का बचाव करने की कोशिश किस तरह से तरह से कर रहा है, प्रधानमंत्री के बयानों से यह साफ झलकता है कि आतंकियों के खिलाफ कठोर कार्रवाई करने से हिचकिचा रहा है। कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने खालिस्तान के बढ़ते प्रभाव को पूरी तरह से नकार दिया था और उल्टा इस मामले में भारत को ही घेर लिया। पीएम ट्रूडो ने अपनी प्रतिक्रिया में कहा, वो (भारत सरकार) गलत हैं। हमने हमेशा आतंकवाद के खिलाफ गंभीर कार्रवाई की है। खालिस्तान समर्थकों के मामले में कनाडा की तरह ब्रिटेन और अमेरिका का रवैया भी लचीला है। खालिस्तान समर्थक तत्वों के एक विरोध प्रदर्शन के दौरान लंदन में भारतीय उच्चायोग ने भारतीय ध्वज को नीचे खींच लिया था। प्रदर्शनकारियों के एक समूह ने अलगाववादी खालिस्तानी झंडे लहराते हुए खालिस्तान समर्थक नारे लगाए। इस वीडियो के सामने आने के बाद भारत ने इस मामले में पूरी तरह से सुरक्षा की अनुपस्थिति पर ब्रिटिश उप उच्चायुक्त को तलब किया कर स्पष्टीकरण मांगा था। उन्हें वियना कन्वेंशन के तहत यूके सरकार के बुनियादी दायित्वों के संबंध में याद दिलाया गया। भारतीय दूतावास पर किए गए हमले का मुद्दा ब्रिटेन की संसद में भी गूंजा। ब्रिटिश सांसद बॉब ब्लैकमैन ने हाउस ऑफ कॉमन्स में कहा कि हम अभी भी इस देश में खालिस्तानी आतंकवादियों को पनाह दे रहे हैं, हम उन पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगाने को लेकर क्या फैसला ले सकते हैं। बॉब ब्लैकमैन ने हाउस ऑफ कॉमन्स के नेता पेनी मोर्डंट को संबोधित करते हुए कहा कि खालिस्तानी गुंडों की भारतीय उच्चायोग के बाहर जो गुंडागर्दी हुई, वह इस देश के लिए पूरी तरह से अपमानजनक है। इतने सालों में यह 6वीं बार है जब उच्चायोग पर इसी तरह से हमला किया गया है। इसके जवाब में सदन के नेता पेनी मोर्डंट ने कहा कि हम लंदन स्थित भारतीय दूतावास की सुरक्षा को लेकर चिंतित हैं। उन्होंने कहा कि यह तय करना पुलिस और क्राउन प्रॉसीक्यूशन का काम होगा कि वारंट और आपराधिक कार्यवाही से जुड़ी कार्रवाई की जरूरत है या नहीं। बॉब ब्लैकमैन ने कहा कि इसी तरह के हमले कनाडा, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया में भी किए गए। हम अभी इस देश में खालिस्तानी आतंकवादियों को पनाह दे रहे हैं। क्या हम सरकार के समय में इस बात पर बहस कर सकते हैं कि इन आतंकवादियों को इस देश में प्रतिबंधित करने के लिए हम क्या कार्रवाई कर सकते हैं। पेनी मोर्डंट ने अपनी प्रतिक्रिया में बॉब ब्लैकमैन को हमले की निंदा करने के लिए धन्यवाद दिया। उन्होंने हाउस ऑफ कॉमन्स को आश्वासन दिया कि यूके सरकार भारतीय उच्चायोग की सुरक्षा को गंभीरता से लेती है।

अमेरिका बेशक भारत से दोस्ती और बेहतर रिश्ते बनाने का कितना ही दंभ भरे किन्तु अमेरीकी जमीन पर भारत विरोधी ताकतों की सक्रियता के मामले में राष्ट्रपति बाइडन प्रशासन ने भी कभी सख्ती नहीं दिखाई। अमेरिका के सैन फ्रांसिस्को में भारतीय वाणिज्य दूतावास में खालिस्तान समर्थकों के तरफ से आगजनी की कोशिश की गई। खालिस्तानी कट्टरपंथियों ने भारतीय वाणिज्य दूतावास में आग लगा दी, लेकिन सैन फ्रांसिस्को अग्निशमन विभाग ने इसे तुरंत बुझा दिया। आग की वजह से ज्यादा नुकसान नहीं हुआ। खालिस्तान समर्थकों ने घटना के संबंध में एक वीडियो भी जारी किया। अमेरिकी विदेश विभाग के प्रवक्ता मैथ्यू मिलर ने ट्वीट पर भारतीय वाणिज्य दूतावास के खिलाफ कथित बर्बरता और आगजनी के प्रयास की कड़ी निंदा कर अपने दायित्वों की इतिश्री कर ली। इससे पहले अमेरिका में मार्च के महीने में हुए विरोध प्रदर्शन के दौरान खालिस्तान समर्थकों ने नारेबाजी की थी। प्रदर्शनकारियों ने पुलिस की ओर से लगाए गए अस्थायी सुरक्षा घेरे को भी तोड़ दिया था। इसके अलावा वाणिज्य दूतावास परिसर के अंदर दो खालिस्तानी झंडे लगा दिए थे। हालांकि, वाणिज्य दूतावास के दो कर्मियों ने जल्द ही इन झंडों को हटा दिया था। इस घटना की भारत सरकार और भारतीय-अमेरिकियों ने तीखी निंदा की। उन्होंने इसके लिए जिम्मेदार लोगों के खिलाफ तत्काल कार्रवाई की मांग की। कनाडा, यूके और अमेरिका के बाद ऑस्ट्रेलिया में खालिस्तानी जहर फैलने लगा है। ऑस्ट्रेलिया इस साल की शुरुआत से ही खालिस्तानी गतिविधियों का गढ़ बना हुआ है, यहां पर भी भारत के हाई कमिश्नर और काउंसल जनरल पर खालिस्तानी पोस्टर्स लगाए गए, जिन पर भारतीय राजनयिकों की भी तस्वीरें थीं। इन पोस्टर्स पर इन राजनयिकों को खालिस्तानी लीडर निज्जर का हत्यारा करार दिया गया है। पोस्टर्स की जानकारी ऐसे समय में आई है जब भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर की तरफ से बताया गया कि साथी देशों से खालिस्तानियों को जगह न देने का अनुरोध किया गया है।

कनाडा, ब्रिटेन और अमेरिका में मंदिरों और भारतीय प्रतिष्ठानों पर हुए हमलों की निरंतरता से जाहिर है कि कम से कम कनाडा सरकार ऐसे हमलों को लेकर बिल्कुल गंभीर नहीं है। इसी से अलगाववादी तत्वों के हौसले बढ़ते जा रहे हैं। भारत सरकार की चेतावनी का विशेषकर कनाडा पर कोई असर होता दिखाई नहीं दे रहा है। इसके विपरीत कनाडा सरकार ऐसी भारत विरोधी हरकतों पर पर्दा डालने का प्रयास कर रही है। यह निश्चित है कि भारत विरोधी घटनाओं पर जब तक केंद्र सरकार कनाडा और अन्य देशों को उन्हीं की भाषा में जवाब नहीं देगी तब तक क्षुद्र राजनीतिक स्वार्थों में लिप्त ये देश कठोर कार्रवाई नहीं करेंगे। प्रमुख सवाल देश के हिंदूवादी संगठनों से भी है, जिन्हें काशी, मथुरा और नूंह की चिंता है पर विदेशों में मंदिरों सहित अन्य स्थानों पर हो रहे हमले और तिरंगे का अपमान तक दिखाई नहीं दे रहा। इसी से ऐसे संगठनों की छद्म देशभक्ति और निष्ठा पर सवालिया निशान लगना लाजिमी है।

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