समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव की अध्यक्षता में अल्पसंख्यक सभा की बैठक आयोजित की गई है। विधानसभा चुनाव परिणाम में जिस तरीके से उत्तर प्रदेश में सबसे ज्यादा अल्पसंख्यक वोटर्स ने सपा को वोट दिया था। ऐसे में 2024 के चुनाव से पहले अखिलेश गोलबंदी करने में जुट चुकी हैं। सपा प्रमुख अखिलेश यादव की बैठक में आजम खान और उनके बेटे अब्दुल्लाह आजम नहीं पहुंच पाए। क्योंकि आज उनकी कोर्ट में पेशी है। अखिलेश 2024 को लेकर अल्पसंख्यक सभा के पदाधिकारियों के साथ बैठक कर आगे की रणनीति पर चर्चा करेंगे।
सपा ने बदली अपनी रणनीति, मुसलमान वर्ग को दे रहे है अहमियत
सपा दावा करती है कि पिछले विधानसभा चुनाव में 98 फीसदी मुस्लिम वोट बैंक सपा के साथ था। हालांकि, इस चुनाव के बाद माहौल बदल रहा है। विधानसभा चुनाव से पहले तमाम बड़े मुस्लिम नेता सपा के साथ आए, लेकिन अब वो वापस लौट रहें है। मुरादाबाद में इकराम कुरैशी, रिजवान, उतरौला में पूर्व विधायक आरिफ अनवर, फिरोजाबाद में पूर्व विधायक अजीम जैसे तमाम इलाकों के कद्दावर मुस्लिम चेहरों ने पार्टी छोड़ी है। सपा अब लोकसभा चुनाव को ध्यान में रखते हुए नई रणनीति पर काम कर रही है। पार्टी यादव-दलित और मुस्लिम गठजोड़ के जरिए बड़ा उलट-फेर करना चाहती है। अब मुलायम सिंह यादव नहीं हैं, लिहाजा अखिलेश यादव एक बार फिर मुस्लिम समाज को यह मैसेज देना चाहते है कि यूपी में मुस्लिम समाज के साथ सपा पहले भी थी और आगे भी रहेगी।
बीजेपी की 2024 से पहले वोट प्रतिशत 60% तक लाने की कोशिश
भाजपा ने इस वोट बैंक को अपने पाले में लाने के लिए पसमांदा बुद्धिजीवी सम्मेलन किया था। इसमें सरकार के अंसारी समाज के मंत्री दानिश अंसारी के साथ ही दोनों डिप्टी सीएम भी शामिल हुए। भाजपा मिशन 2024 के पहले अपने वोट प्रतिशत को यूपी में 60% के आसपास लाना चाहती है, ऐसे में अल्पसंख्यकों पर भी पार्टी का फोकस है। पीएम के आग्रह के बाद पसमांदा मुसलमानों की महत्वपूर्ण आबादी वाले 44,000 से अधिक मतदान केंद्रों की पहचान की है, जहां ध्यान केंद्रित किया जाएगा। ऐसे हर बूथ में पसमांदा मुस्लिम समुदाय के कम से कम 100 लाभार्थियों से बात करने का लक्ष्य है।