चेन्नई: मद्रास उच्च न्यायालय ने कहा है कि सहमति से बनाये गये यौन संबंध के कारण गर्भवती हुई किसी नाबालिग के गर्भपात के लिए संपर्क करने पर चिकित्सक को उसका नाम उजागर करना आवश्यक नहीं है. यौन अपराध से बच्चों का संरक्षण (पॉक्सो) अधिनियम के तहत मामलों की सुनवाई के लिए गठित न्यायमूर्ति एन. आनंद वेंकटेश और न्यायमूर्ति सुंदर मोहन की विशेष पीठ ने हाल ही में यह आदेश दिया, जिसमें उच्चतम न्यायालय के समक्ष पूर्व में आये ऐसे ही एक मामले में उसके दिशानिर्देशों का उल्लेख किया.
शीर्ष अदालत के आदेश का हवाला देते हुए पीठ ने कहा कि उच्चतम न्यायालय ने कहा था कि जब सहमति से यौन संबंध के कारण गर्भवती हुई कोई नाबालिग एक पंजीकृत चिकित्सा पेशेवर (आरएमपी) से गर्भपात के लिए संपर्क करती है तो वह चिकित्सक पॉक्सो की धारा 19(1) के तहत अपराध संबंधी सूचना संबंधित अधिकारियों को प्रदान करने के लिए बाध्य होता है. उच्चतम न्यायालय ने कहा कि नाबालिग और उसके माता-पिता सूचना प्रदान करने की अनिवार्यता से अवगत हो सकते हैं, लेकिन वे खुद को कानूनी प्रक्रिया में उलझाना नहीं चाहते हों.
शीर्ष अदालत ने कहा था कि नाबालिग और उनके माता-पिता को दो विकल्पों का सामना करना पड़ सकता है- या तो वे आरएमपी से संपर्क करें और पॉक्सो अधिनियम के तहत आपराधिक कार्यवाही में शामिल हों या फिर गर्भपात के लिए किसी अप्रशिक्षित चिकित्सक से संपर्क करें. उच्चतम न्यायालय ने कहा था कि अगर पॉक्सो अधिनियम की धारा 19(1) के तहत रिपोर्ट में नाबालिग के नाम का खुलासा करने पर जोर दिया जाता है, तो नाबालिगों द्वारा ‘‘गर्भ का चिकित्सकीय समापन (एमटीपी) अधिनियम’’ के तहत सुरक्षित गर्भपात के लिए आरएमपी के पास जाने की संभावना कम हो सकती है.