15वें ब्रिक्स सम्मेलन की अध्यक्षता इस साल साउथ अफ्रीका कर रहा है। प्रधानमंत्री इस सम्मेलन में शामिल होने के लिए साउथ अफ्रीका जाएंगे। गौरतलब है कि इस सम्मेलन का आयोजन 22 अगस्त से 24 अगस्त तक किया जाएगा। इस सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत संघ के प्रमुख नेता मौजूद रहेंगे। हालांकि, यूक्रेन में कथित युद्ध अपराधों पर अंतरराष्ट्रीय गिरफ्तारी वारंट का सामना कर रहे रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन इस बार सम्मेलन में शामिल नहीं होंगे। इस बात पर मतभेद है कि ब्लॉक का विस्तार किया जाए या नहीं, जिसमें दर्जनों ग्लोबल साउथ देशों को शामिल होना।
ब्रिक्स समिट पर दुनिया की नजर
दक्षिण अफ्रीका के जोहानिसबर्ग में ब्रिक्स समिट होने वाली है। इस बार समिट को लेकर डिप्लोमेसी की दुनिया में खासी गहमागहमी है। यूक्रेन के बाद दुनिया का वर्ल्ड ऑर्डर तेजी के साथ बदल रहा है। इस नए बदलाव के बीच ब्रिक्स सरीखे प्लैटफॉर्म का बढ़ता कद कुछ वक्त से शिद्दत से महसूस किया जा रहा है। अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकार मानते हैं कि आने वाले समय में ब्रिक्स एक अहम डिप्लोमैटिक और इकनॉमिक ब्लॉक बनने वाला है। इस बात में सच्चाई भी लगती है क्योंकि अगर ऐसा नहीं होता फिलहाल पांच देशों के इस समूह को जॉइन करने के लिए दुनिया के 40 से ज्यादा देश रुचि न दिखाते। उनमें से 22 देशों ने सदस्यता के लिए अप्लाई भी कर दिया है।
जिनपिंग-मोदी की होगी मुलाकात?
दक्षिण अफ्रीका 22 से 24 अगस्त तक ब्रिक्स शिखर सम्मेलन के लिए चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग, ब्राजील के लुइज़ इनासियो लूला दा सिल्वा और भारतीय प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की मेजबानी करेगा। अगर दोनों के बीच ये मीटिंग होती है, तो 4 साल बाद ऐसा मौका होगा, जब भारत और चीन के शासनाध्यक्ष आमने-सामने होंगे। इससे पहले जी-20 की शिखर बैठक के दौरान जिनपिंग और मोदी के बीच कुछ देर की बातचीत हुई थी। अगर अब जिनपिंग और मोदी के बीच अलग से बैठक होती है, तो लद्दाख में चीन और भारत के बीच तनातनी खत्म हो सकती है।
40 देशों ने इसमें शामिल होने में दिखाई रूचि
वे क्या चर्चा करने की योजना बना रहे हैं, इसके बारे में कुछ विवरण सामने आए हैं। लेकिन एजेंडे में विस्तार अधिक होने की उम्मीद है। दक्षिण अफ्रीका के अनुसार, लगभग 40 देशों ने औपचारिक या अनौपचारिक रूप से शामिल होने में रुचि दिखाई है। इनमें सऊदी अरब, अर्जेंटीना और मिस्र शामिल हैं। चीन, संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ अपने झगड़े के कारण अपने भू-राजनीतिक प्रभाव का विस्तार करना चाहता है, ब्रिक्स का तेजी से विस्तार करना चाहता है, जबकि ब्राजील विस्तार का विरोध कर रहा है, उसे डर है कि पहले से ही कमजोर क्लब इसके कारण अपना कद कमजोर कर सकता है। रॉयटर्स के सवालों के लिखित जवाब में चीन के विदेश मंत्रालय ने कहा कि वह सदस्यता बढ़ाने में प्रगति का समर्थन करता है और जल्द ही ब्रिक्स परिवार में शामिल होने के लिए अधिक समान विचारधारा वाले भागीदारों का स्वागत करता है।
विस्तार को लेकर गंभीर मंथन
ये ज्यादा पुरानी बात नहीं है जब ब्रिक्स को पश्चिम देशों के चश्मे से एक ऐसे समूह की तरह देखा जाता था, जो G20 के बरक्स वर्ल्ड ऑर्डर के गैप को सांकेतिक रूप से भरने के लिए सामने आया था। हाल के वर्षों में दुनिया के जियो-पॉलिटिकल हालात तेजी से बदले हैं। ग्लोबल साउथ के देशों की धमक अंतरराष्ट्रीय पॉलिटिक्स में तेजी से बढ़ी है। ऐसे में ब्रिक्स का विस्तार एक ऐसा मसला है, जो इस बार समिट के अजेंडे की लिस्ट में शायद पहले नंबर पर हो।
क्या है इस बार का विषय
15वें शिखर सम्मेलन का विषय ब्रिक्स और अफ़्रीका है, जिसमें इस बात पर ज़ोर दिया गया है कि कैसे ब्लॉक एक ऐसे महाद्वीप के साथ संबंध बना सकता है जो तेजी से विश्व शक्तियों के बीच प्रतिस्पर्धा का रंगमंच बन रहा है। दक्षिण अफ्रीका के विदेश मंत्री नलेदी पंडोर ने पिछले सप्ताह एक बयान में कहा था कि ब्रिक्स देश दुनिया के अधिकांश लोगों की जरूरतों को संबोधित करने में वैश्विक नेतृत्व दिखाना चाहते हैं।
भारत का क्या रुख है
इस मसले पर भारत का एकदम साफ रुख है। भारत ने कई बार कहा है कि समूह के विस्तार को लेकर उसे ऐतराज नहीं है। हाल ही में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने बताया भी था कि नए सदस्यों की एंट्री को लेकर क्राइटेरिया जैसे मसलों पर सदस्य देशों के बीच मंथन चल रहा है और भारत इस विस्तार को सकारात्मक तरीके से देखता है। हालांकि सच ये भी है कि इसे लेकर भारत की कुछ अपनी चिंताएं हैं। यूक्रेन युद्ध के बाद बदले हालात में रूस और चीन अब एक समान हैसियत रखने वाला देश नहीं है।