विधानसभा चुनाव से पहले NSUI की हार का डर, खुलेआम उड़ रही नियमों की धज्जियां

विधानसभा चुनाव से पहले NSUI की हार का डर, खुलेआम उड़ रही नियमों की धज्जियां

राजस्थान में इस साल छात्रसंघ चुनाव नहीं होंगे। उच्च शिक्षा विभाग के इस फैसले पर प्रदेशभर के छात्र नेताओं में आक्रोश है। राजस्थान यूनिवर्सिटी हो या फिर जोधपुर, उदयपुर, कोटा यूनिवर्सिटी, कई छात्र नेता पिछले डेढ़ दो महीने से चुनावी तैयारियों में जुटे थे।

स्टूडेंट लीडर्स ने चेतावनी दी है कि अगर सरकार ने अपने फैसले पर विचार नहीं किया तो उग्र आंदोलन किया जाएगा, लेकिन सबसे बड़ा सवाल ये है कि आखिर सरकार छात्रसंघ चुनाव क्यों नहीं करवाना चाहती?

क्या सरकार को विधानसभा चुनाव से पहले NSUI की हार का डर है?

क्या यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर और कर्मचारियों का ओल्ड पेंशन स्कीम पर मोर्चा खोलने का डर?

छात्र नेता जीते तो विधानसभा के टिकट की दावेदारी करेंगे?

स्पेशल रिपोर्ट में पढ़िए- ऐसे ही 5 सवालों के जवाब

1. क्या NSUI की हार का डर?

राजस्थान में इसी साल विधानसभा चुनाव होने हैं। छात्रसंघ चुनाव में पॉलिटिकल पार्टियों के दखल से इनकार नहीं किया जा सकता। प्रदेश की बड़ी यूनिवर्सिटी में हार जीत से ही जनता और युवा वोटर्स के बीच नरैटिव बनता है। सत्ता में रहने वाली पार्टी ऐसे मौकों पर जोखिम नहीं उठाती। पिछली बार जब सत्ता में बीजेपी की सरकार थी, तब भी चुनावी वर्ष में छात्रसंघ चुनावों पर रोक लगा दी गई थी।

अब अगर प्रदेश की प्रमुख यूनिवर्सिटी और कॉलेज में NSUI के प्रत्याशी हार जाते हैं तो विपक्ष को मुद्दा बनाने का मौका मिलता है। पिछले साल हुए छात्रसंघ चुनाव में प्रदेश की 17 प्रमुख यूनिवर्सिटी में NSUI महज दो पर ही जीत दर्ज कर पाई थी। जबकि 9 यूनिवर्सिटी में निर्दलीय और 6 यूनिवर्सिटी में एबीवीपी के प्रत्याशियों ने जीत दर्ज की थी।

ऐसे में सरकार विधानसभा चुनाव से ठीक पहले सियासी नैरेटिव को नहीं बिगाड़ना चाहती। विपक्ष को बैठे बिठाए मुद्दा मिल जाता। ज्यादातर एक्सपर्ट छात्रसंघ चुनाव पर रोक का इसे मुख्य कारण मान रहे हैं।

विधायक बोले- कांग्रेसी नेताओं को सता रहा NSUI की हार का डर

राजस्थान यूनिवर्सिटी के पूर्व अध्यक्ष और सांगानेर विधायक अशोक लाहोटी ने कहा- पिछले छात्रसंघ चुनाव में NSUI की करारी हार को कांग्रेस अब तक नहीं भूल पाई थी। कांग्रेस नेताओं को पता है कि NSUI की हालत इस बार पहले से भी ज्यादा खराब है। चुनाव हों तो वह राजस्थान की एक भी यूनिवर्सिटी में जीत दर्ज नहीं कर पाएगी।

2. यूनिवर्सिटी कर्मचारियों-प्रोफेसर के आंदोलन का डर?

राजस्थान सरकार ने प्रदेश की सभी यूनिवर्सिटी और कॉलेजों में ओल्ड पेंशन स्कीम को लागू कर दी है, लेकिन 10% अंशदान के लिए यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर और कर्मचारियों ने मोर्चा खोल रखा है। ऐसे में सरकार को डर था कि छात्रसंघ चुनाव के ऐलान के साथ ही यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर और कर्मचारी मोर्चा खोल देंगे। अगर ये ऐन मौके पर हड़ताल करते हैं तब मांगों को लेकर मजबूर होना पड़ सकता है।

वहीं, अगर सरकार कर्मचारियों की मांगों को मानते हुए 10% अंशदान देने का फैसला करती है तो 150 करोड़ रुपए अतिरिक्त खर्च करने पड़ते। बता दें कि अकेले राजस्थान यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर्स और कर्मचारियों का अंशदान 35 करोड़ रुपए से ज्यादा है। वहीं, प्रदेश की सभी यूनिवर्सिटी के कर्मचारियों का अंशदान 150 करोड़ रुपए से अधिक बताया जा रहा है। जबकि अंशदान के पैसों को लेकर केंद्र और राज्य सरकार में अभी विवाद चल रहा है। सरकार का तर्क है कि वो ये पैसे केंद्र सरकार से मिलने के बाद ही चुकाएगी।

राजस्थान यूनिवर्सिटी शिक्षक संघ के अध्यक्ष डॉ. संजय कुमार ने बताया- हमने बहुत पहले ही चेतावनी दे दी थी कि अगर राजस्थान में ओल्ड पेंशन स्कीम को बिना शर्त लागू नहीं किया गया तो यूनिवर्सिटी के कर्मचारी किसी भी सूरत में छात्रसंघ चुनाव नहीं होने देंगे। कर्मचारियों के विरोध का यही डर सरकार को सता रहा था।

3. छात्र नेता लिंगदोह कमेटी की सिफारिशों की खुलेआम धज्जियां उड़ा रहे?

राजस्थान में छात्रसंघ चुनाव लिंगदोह कमेटी की सिफारिशों के आधार पर ही करवाए जाते हैं। पिछले लंबे वक्त से छात्र नेताओं द्वारा प्रदेशभर में लिंगदोह कमेटी की सिफारिशों की खुलेआम धज्जियां उड़ाई जा रही थीं। इस बार छात्रसंघ चुनाव के ऐलान से पहले ही छात्र नेता पोस्टर, गाड़ियों और रैली के नाम पर लाखों रुपए खर्च कर चुके थे। आम जनता और छात्रों को भी शक्ति प्रदर्शन और रैलियाें की वजह से परेशान होना पड़ रहा था।

पिछले दिनों मुख्यमंत्री अशोक गहलोत भी लिंगदोह कमेटी की सिफारिशों की धज्जियां उड़ाने को लेकर अपनी नाराजगी जाहिर कर चुके थे। उन्होंने कहा था कि छात्रसंघ चुनाव से पहले ही स्टूडेंट इस तरह पैसे खर्च कर रहे हैं। जैसे एमएलए-एमपी के चुनाव लड़ रहे हों। आखिर कहां से पैसा आ रहा है, इतने पैसे क्यों खर्च किए जा रहे हैं। हम इसे पसंद नहीं करते हैं। ऐसे में इस बार छात्रसंघ चुनाव रद्द करने को लेकर लिंगदोह कमेटी का उल्लंघन भी एक प्रमुख कारण माना जा रहा है।

4. छात्र नेता जीते तो विधानसभा के टिकट की दावेदारी करेंगे?

राजस्थान में छात्रसंघ चुनाव मुख्य राजनीति की पहली सीढ़ी माना जाता है। प्रदेश में 24 से अधिक राजनेताओं की शुरुआत छात्र राजनीति से हुई थी। खुद मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, मंत्री महेश जोशी, प्रताप सिंह खाचरियावास से लेकर कई दिग्गज छात्र राजनीति से ही चमके हैं।

कई बार देखा गया है कि चुनाव में जीतने वाले छात्रनेता भीड़ जुटाकर अपने क्षेत्रों से टिकटों के लिए दावेदारी करते हैं। अगर उन्हें टिकट नहीं दे तो वो पार्टी नेताओं को नुकसान पहुंचा सकते हैं। बताया जा रहा है कुछ विधायकों ने भी उच्च शिक्षा मंत्री से छात्रसंघ चुनाव नहीं कराने की अपील की थी।

इसका एक कारण और भी है। कुछ राजनेताओं का मानना है कि चुनावी साल में छात्रसंघ चुनाव सबसे बड़ी परेशानी खड़ी कर सकते हैं। अगर कोई विधायक या बड़ा नेता किसी एक छात्र नेता का समर्थन करता है, उसके लिए प्रचार प्रसार करता है तो जिन्हें टिकट नहीं मिलता, उसकी नाराजगी भी मोल लेनी पड़ती है। सीधा सा मतलब यही है कि मौजूदा विधायकों को अपने युवा वोटर खिसकने का सबसे ज्यादा डर रहता है।

छात्रसंघ अध्यक्ष बोले- सरकार नहीं चाहती आम घर का बेटा मुख्यधारा की राजनीति में आए

राजस्थान यूनिवर्सिटी के मौजूदा छात्रसंघ अध्यक्ष निर्मल चौधरी कहते हैं कि सरकार नहीं चाहती कि आम युवा छात्र राजनीति में चमके और फिर मुख्यधारा की राजनीति में आए। मैं खुद एक टीचर का बेटा हूं। पिछले साल जब तक मैंने चुनाव नहीं लड़ा था, तब तक मुझे कोई नहीं जानता था। जब मैं चुनाव जीत गया, तब मुझे काफी लोग पहचानने लग गए। यही डर राजस्थान के बड़े नेताओं को भी सता रहा है।

5. नई शिक्षा नीति के तहत सिलेबस तैयार नहीं

राजस्थान में इस साल नई शिक्षा नीति के तहत सेमेस्टर प्रणाली लागू करना है। फिलहाल यूनिवर्सिटी में इस हिसाब से सिलेबस तक तैयार नहीं हो पाया था। कई कॉलेज में एडमिशन प्रक्रिया भी पूरी नहीं हो पाई है, क्योंकि कुछ कोर्सेज का रिजल्ट आना बाकी है। इस बीच छात्रसंघ चुनाव का आयोजन करवाया जाता तो 15 से 20 दिन इस पूरी प्रक्रिया में ही बीत जाते। इससे शैक्षणिक कामकाज में देरी होने की संभावना थी।

राजस्थान NSUI के प्रदेश प्रवक्ता अमरदीप परिहार ने कहा- इस बार राजस्थान की सभी यूनिवर्सिटी के कुलपति ने मुख्यमंत्री से चुनाव नहीं कराने की सलाह दी थी, क्योंकि प्रदेश की कई यूनिवर्सिटी में अभी तक चौथे सेमेस्टर की परीक्षाएं चल रही हैं। कुछ यूनिवर्सिटी में एडमिशन की प्रक्रिया तक पूरी नहीं हो पाई है। वहीं, नई शिक्षा नीति लागू होने के बाद कई तरह की एकेडमिक समस्या सामने आ गई हैं।

उन्होंने आरोप लगाया कि अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद इसे गलत तरीके से प्रचारित कर रहा है। सरकार ने किसी के डर से नहीं बल्कि, आम छात्रों के भविष्य को उज्जवल बनाने के लिए छात्र संघ चुनाव रद्द करने का फैसला किया है। NSUI भी चाहती थी राजस्थान में छात्रसंघ चुनाव हों। अब भी हमारा संगठन मुख्यमंत्री से बात करेगा।

अब आगे पढ़िए चुनाव की तैयारी कर रहे नेताओं की पीड़ा...

5 साल से कर रहा था तैयारी- महेश चौधरी

राजस्थान यूनिवर्सिटी से अध्यक्ष पद की तैयारी कर रहे NSUI के कार्यकर्ता महेश चौधरी ने कहा- मैं पिछले 5 साल से सपना संजोकर बैठा था। छात्रसंघ चुनाव की तैयारियों में जुटा हुआ था। राजस्थान यूनिवर्सिटी में पढ़ने वाले हर स्टूडेंट्स से खुद मिल रहा था। पिछले साल भी छात्रसंघ चुनाव लड़ने की घोषणा की तो NSUI के पदाधिकारियों ने मुझे अगले साल टिकट देने का वादा कर समझाया था। इस साल सरकार ने बेवजह छात्रसंघ चुनाव नहीं करने का फैसला सुना दिया है। इस साल मेरी उम्र सीमा भी पूरी हो रही है।

आर-पार की लड़ाई लडूंगा- मुझे कुछ हुआ तो सरकार होगी जिम्मेदार

राजस्थान यूनिवर्सिटी के छात्र नेता मनु दाधीच ने कहा- 7 साल से तैयारी कर रहा हूं। इस बार जब मेरी तैयारी सबसे मजबूत थी तो सरकार ने चुनाव रद्द करने का ऐलान कर दिया। इससे न सिर्फ मेरे अकेले बल्कि, मेरे समर्थकों और परिवार के सपनों को भी सरकार ने तोड़ दिया है। सरकार ने अगले 24 घंटों में छात्रसंघ चुनाव कराने का ऐलान नहीं किया तो आर-पार की लड़ाई लडूंगा। इस लड़ाई में अगर मुझे कुछ भी होता है तो उसके लिए कांग्रेस सरकार जिम्मेदार होगी।

क्या विधानसभा चुनाव में नहीं होता आचार-संहिता का उल्लंघन- हरफूल चौधरी

राजस्थान यूनिवर्सिटी से अध्यक्ष पद की तैयारी कर रहे छात्र नेता हरफूल चौधरी ने कहा- क्या सिर्फ छात्रसंघ चुनाव में ही नियमों की धज्जियां उड़ रही है। क्या विधानसभा चुनाव में राजनेता चुनाव प्रचार नहीं करते। क्या तब पोस्टर-बैनर का उपयोग नहीं किया जाता? क्या तब वाहन रैली निकाल आम जनता को परेशान नहीं किया जाता? क्या तब आचार संहिता के तहत ही खर्च होता है? फिर सरकार सिर्फ आम छात्रों को क्यों टारगेट कर रही है।

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