भारतीय इतिहास का सबसे मुश्किल दिन 14 अगस्‍त, लाखों लोगों को चुकानी पड़ी थी आजादी की भारी कीमत

भारतीय इतिहास का सबसे मुश्किल दिन 14 अगस्‍त, लाखों लोगों को चुकानी पड़ी थी आजादी की भारी कीमत

Independence and Partition: भारत के भूगोल, समाज और संस्‍कृति का 14 अगस्‍त 1947 को बंटवारा हो गया था. बंटवारे की वजह से करोड़ों लोगों को अपने मकान, दुकान और तमाम संपत्ति छोड़कर विस्‍थापित होना पड़ा था. इस दौरान हुए दंगों में लाखों लोगों ने अपनों को हमेशा के लिए खो दिया था. लिहाजा, अगर 14 अगस्‍त को भारत के इतिहास का सबसे मुश्किल दिन कहा जाना गलत नहीं होगा. इसी दिन भारत से अलग होकर पाकिस्‍तान वजूद में आया था. पाकिस्‍तान को 14 अगस्‍त 1947 को ही स्‍वयंभू राष्‍ट्र का दर्जा हासिल हुआ था. इसी दिन पाकिस्‍तान अपना स्‍वतंत्रता दिवस भी मनाता है.

ब्रिटिश हुकूमत से स्‍वतंत्रा मिलने के साथ ही देश के दो हिस्‍से और फिर करोड़ों लोगों का एक देश से दूसरे में विस्‍थापित होना भारत के लिए सबसे पेंचीदा दौर था. बंटवारे का दर्द सहने वाले परिवार इसे कभी नहीं भूल पाए. सिर्फ एक फैसले की वजह से लाखों लोग अपनी संपत्ति से बेदखल होकर सड़क पर आ गए थे. बंटवारे की ये त्रासदी 20वीं सदी की सबसे बड़ी त्रासदियों में एक मानी जाती है. जब भारत को आजादी मिली, तब देश की कुल आबादी करीब 40 करोड़ थी. आजादी मिलने के पहले से ह मुसलमान अपने लिए अलग मुल्क की मांग कर रहे थे.

एक लकीर और 1.45 करोड़ लोगों का विस्‍थापन

अलग मुल्‍क की मांग कर रहे मुसलमानों का नेतृत्‍व मुस्लिम लीग के मोहम्मद अली जिन्‍ना कर रहे थे. उस दौर में हिंदू बहुल भारत में मुसलमानों की आबादी करीब एक चौथाई थी. भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू देश के दो हिस्‍से करने के खिलाफ थे. लेकिन, जिन्‍ना की जिद अंग्रेजों को जाते-जाते एक लकीर खींचने का मौका दे गई. ये ऐसी लकीर थी, जिसकी वजह से दो देशों के बीच आज तक उथल-पुथल, मनमुटाव का कारण बनी हुई है. इस एक लकीर के कारण दुनिया ने इतिहास का सबसे बड़ा विस्थापन देखा, जिसमें 1.45 करोड़ लोगों का विस्‍थापन हुआ.

बंटवारे और विस्‍थापन के कारण मारे गए लाखों लोग

गुलाम भारत में जिन लोगों ने एकसाथ आजादी का सपना देखा था, बंटवारे के बाद वही एकदूसरे के खून के प्‍यासे हो गए. बंटवारे का सबसे ज्यादा दर्द दोनों मुल्‍कों की महिलाओं ने झेला. उस दौर का इतिहास लिखने वाले ज्‍यादातर लेखकों ने लिखा कि दंगों में हजारों महिलाओं के साथ बलात्कार और बदसलूकी हुई. डीडब्‍ल्‍यू की एक रिपोर्ट के मुताबिक, दिल्‍ली में रहने वाली सरला दत्‍त ने बताया कि उस दौर में महिलाओं के लिए विभाजन का दर्द कितना बड़ा था? उन्‍होंने खुद इस दर्द को सहा था. उन्होंने बताया था कि बंटवारे के समय उनकी उम्र महज 15 साल थी. उनके पिता जम्मू के रेडियो स्टेशन में संगीतकार थे. बंटवारे के दंगों में एक पाकिस्तानी सैनिक ने उनका अपहरण कर लिया.

‘इंसानियत तो जैसे पूरी तरह से हो गई थी खत्‍म’

बंटवारे के बाद पाकिस्तान में हिंदुओं और सिखों के घरों पर मुस्लिम समुदाय के लोगों ने कब्जा कर लिया था. गैर-मुस्लिमों को पाकिस्‍तान छोड़ने की धमकियां दी जा रही थीं. सरला दत्ता ने डीडब्‍ल्‍यू को बताया कि पाकिस्‍तान से भागते हुए लोगों ने खेतों में रोते हुए बच्चों को पड़े देखा. उस दौर में ऐसा लग रहा था, जैसे इंसानियत पूरी तरह से खत्‍म हो गई है. पुरुष बच्चों को छोड़ रहे थे. महिलाओं को डर था कि अगर तेजी से नहीं चलीं तो पीछे छूट जाएंगी. सरला बताती हैं कि अपहरण के बाद उकी शादी उस मुसलमान सैनिक के भाई से करा दी गई. उनको जबरदस्‍ती कुरान पढ़ाया गया. उनसे घर के काम कराए गए.

महिलाएं बनी थीं दंगाइयों का आसान शिकार

सरला दत्‍त के मुताबिक, पाकिस्‍तान में हिंदू महिलाओं को नंगा करके घुमाया जाता था. महिलाएं उनकी ज्‍यादतियों की सबसे आसान शिकार बन रही थीं. बंटवारे ने महिलाओं को दर्द की कभी खत्‍म ना होने वाली कहानी दी. बंटवारे ने दोनों देशों के लोगों के लिए हालात बेहद खराब बना दिए थे. लोग वहशीपन में महिलाओं के साथ ही बच्‍चों को भी अपना शिकार बना रहे थे. दंगाइयों की टोलियां खुलेआम देश छोड़कर जाने की धमकियां दे रही थीं. हर तरफ मौत और वहशीपना अपना नंगा नाच कर रहा था.

अफरातफरी में किया गया भारत का बंटवारा

भारत को दो हिस्‍सों में बांटकर पाकिस्तान बनाने का काम बेहद अफरातफरी में किया गया था. भारत के अंतिम गवर्नर जनरल लॉर्ड माउंटबेटन ने जल्दबादी में बंटवारा किया. उन्हें भारत और पाकिस्‍तान के लोगों की फिक्र नहीं थी. उन्‍हें किसी भी तरह से ब्रिटेन के सैनिकों को भारत से निकालने की जल्दी थी. यही नहीं, दोनों देशों के बीच बंटवारे की लकीर खींचने वाले सीरिल रेडक्लिफ कुछ हफ्ते पहले ही भारत आए थे. उन्होंने बिना धार्मिक और सांस्कृतिक हालात को समझे ही एक लकीर खींचकर दो देश बना दिए.

ऐसे बिगड़े हालात, जो आत तक नहीं सुधरे

सीरिल रेडक्लिफ की खींची इस एक लकीर ने दोनों देशों के हिंदुओं और मुसलमानों के बीच कभी खत्म नहीं होने वाली खाई पैदा कर दी. पाकिस्तान को 14 अगस्त 1947 को आजादी मिली और 15 अगस्त 1947 को हिंदुस्तान ने आजादी का जश्‍न मनाया. लेकिन, दोनों देशों के बीच की सीमा रेखा तय करने में 17 अगस्त तक का समय लग गया. 17 अगस्त 1947 को दोनों देशों के बीच सीमाएं खींच गईं. इसके बाद हालात बिगड़ते चले गए. बंटवारे से दो देश तो बन गए, लेकिन इसने दो मुल्कों के बीच हमेशा के लिए नफरत का बीज बो दिया.

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