सत्ता और शराब का सुरूर मिल जाए तो क्या-क्या नहीं हो सकता और बिना इन दोनों के मिले हुए इसका कारोबार भी नहीं हो सकता। शराब के कारोबार में सत्ता के बिना पत्ता भी नहीं हिलता। कई नेता पुत्रों ने इस बिजनेस मॉडल को अच्च्छे से समझा।
सत्ता और शराब के कारोबार का ऐसा कॉकटेल किया कि बिजनेस झूमने लगा। नेता पुत्र की फैक्ट्री ने ठंडे देशों में पी जाने वाली खास शराब का ब्रांड भी लॉन्च कर दिया। सत्ता के रसूख के चलते इस ब्रांड को खरीदने के लिए रिटेलर्स को बाध्य कर दिया।
कुछ एक्सपर्ट ने समझाया भी कि राजस्थान जैसे प्रदेश में साइबेरिया जैसी ठंड में पीया जाने वाला देसी प्रोडक्ट कैसे चलेगा। यह तो जैसलमेर के सम के धोरों पर पेंग्विन की परेड करवाने जैसा काम है, लेकिन किसी की एक न सुनी।
अब बात सियासी गलियारों तक भी पहुंच गई है। सत्ताधारी पार्टी के एक नेता ने दुखी मन से सत्ता और शराब कारोबार के कॉकटेल के अनगिनत किस्से सुनाते हुए इसके सियासी साइड इफेक्ट गिनाए जो फायदेमंद तो कतई नहीं हैं।
पूर्व प्रदेश मुखिया की आरएसएस नेता से गुपचुप मुलाकात
विपक्षी पार्टी में सियासी घटनाक्रम तेजी से घूम रहा है। सियासत की असली समझ रखने वालों की निगाहें प्रदेश की पूर्व मुखिया के रुख पर टिकी हुई हैं।
हाल ही प्रदेश की पूर्व मुखिया ने भरी दुपहरी में राजधानी में आरएसएस से जुड़े संगठन की बिल्डिंग में पहुंचकर एक नेता से लंबी चर्चा की।
संगठन महामंत्री रह चुके नेताजी से पूर्व प्रदेश मुखिया का छत्तीस का आंकड़ा रहा है। इस मुलाकात के गहरे सियासी मायने बताए जा रहे हैं। धुर विरोधी से मिलने के पीछे कोई तो कारण होगा। कई जानकार इसे सियासी वापसी से जोड़ रहे हैं तो कई अलग मतलब निकाल रहे हैं।
घोषणा मुखिया की, धन्यवाद राहुल को
सियासत में नाराजगी जताने के भी अनेक तरीके हैं। पिछले दिनों सत्ताधारी पार्टी के सीमावर्ती जिले के सीनियर नेता ने नाराजगी जताने का अनोखा तरीका अपनाया।
नेताजी ने ट्वीट करके ओबीसी आरक्षण 27 फीसदी करने पर राहुल गांधी को धन्यवाद दिया और राजस्थान सरकार से इस घोषणा को जल्दी लागू करने की मांग कर दी।
घोषणा प्रदेश के मुखिया ने की थी, उनका कहीं नाम नहीं था। दरअसल सीनियर नेता घोषणा के तरीके और इसके सियासी प्रभावों से खुश नहीं हैं, इसलिए मुखिया का नाम नहीं लेकर नाराजगी जता दी। नेताजी समय-समय पर अपनी नाराजगी खुलकर जाहिर करते रहे हैं, लेकिन इस बार सीधा हमला करने की जगह नई रणनीति अपनाई है।
ओबीसी आरक्षण पर छह घंटे में ही तीन तरह की बात
ओबीसी आरक्षण पर प्रदेश के मुखिया की घोषणाओं ने चर्चाएं तो छेड़ दीं, लेकिन घोषणाओं का तरीका भी चर्चा का मुद्दा बन गया है। प्रदेश के मुखिया ने वागड़ अंचल में आदिवासी दिवस पर की गई सभा में घोषणा के शब्द अलग थे। फिर सरकारी प्रेस नोट में तो बात को पूरी तरह घुमा दिया गया। बाद में मुखिया के ट्वीट में नई बात आ गई, आखिर यह कंफ्यून क्यों हुआ?
अब आप ही बानगी देखिए। सभा में कहा- ओबीसी का आरक्षण 27 फीसदी करने की मांग को हम पूरा करेंगे, छह पर्सेट मूल ओबीसी का हम रिजर्व करेंगे सरकारी प्रेस नोट में लिखा-ओबीसी आरक्षण को 21 से 27 फीसदी करने और मूल ओबीसी को अलग से छह फीसदी आरक्षण देने की मांग लंबे समय से की जा रही है, इसका परीक्षण करवाएंगे।
इसके बाद प्रदेश के मुखिया ने ट्वीट किया-OBC के लिए 21% आरक्षण के साथ 6% अतिरिक्त आरक्षण दिया जाएगा जो OBC वर्ग की अति पिछड़ी जातियों के लिए रिजर्व होगा। करीब छह घंटे के अंतराल में तीन तरह की बात आ गई। अब घोषणा वाले दिन तीन तरह की बात के मायने तो निकलेंगे ही।
सीएम फेस और मेवाड़ वाले नेताजी के समर्थक
संवैधानिक पद पर बैठे मेवाड़ वाले नेताजी के समर्थक एक बार फिर से मुखर होने लगे हैं। विधायक रहे एक समर्थक ने खुलकर उन्हें सीएम बनाने की मांग की। उन्हें सीएम फेस बताया। यह अलग बात है कि खरी-खरी बात कहने के लिए मशहूर मेवाड़ वाले नेताजी इस पर कुछ नहीं बोल रहे हैं।
चुनावी कमेटियों से लेकर हर कमेटी में उन्हें जगह मिल रही है। अब समर्थक अपने नेता के लिए आवाज उठाते ही हैं, लेकिन इसके भी सियासी मायने तो निकलेंगे ही। जानकार कह रहे हैं ये समर्थक अब क्यों बोले, बोलें हैं तो कोई बात है?
आयोग वाले पदों के लिए किसने की नेता प्रतिपक्ष के पास लॉबिंग?
प्रदेश में सूचना से जुड़े आयोग में दो संवैधानिक पदों पर नियुक्तियां होनी हैं, आवेदन मांग लिए गए हैं, अब लॉबिंग का टाइम है। नियुक्ति वाली कमेटी में विपक्ष के नेता भी मेंबर हैं, इसलिए पद चाहने वाले लोग इन दिनों वहां भी चक्कर लगा रहे हैं।
पिछले दिनों कई पद चाहने वालों ने विपक्ष के नेता से मुलाकात कर ध्यान रखने का आग्रह किया बताते हैं। अब सलेक्शन कमेटी की बैठक होगी और गवर्नर हाउस से फाइनल आदेश जारी होंगे तभी पता लगेगा किसकी लॉबिंग कामयाब हुई लेकिन तब तक दौड़ धूप जारी है।
नेताजी को नहीं पता खुद के ब्लॉक का नाम
सत्ताधारी पार्टी में पिछले दिनों संगठन में ताबड़तोड़ पद दिए गए। ब्लॉक से लेकर प्रदेश स्तर तक खाली पद भरे गए। अफीम बेल्ट में ऐसे ही एक नेताजी को ब्लॉक अध्यक्ष की जिम्मेदारी दी गई।
नेताजी को उनके ब्लॉक के बारे में पूछा तो नाम ही भूल गए। तत्काल साथी को फोन लगाया और पूछा-मुझे कौनसे ब्लॉक का अध्यक्ष बनाया? अब आप ही बताइए, जिन्हें खुद के बलॉक का नहीं पता ऐसे नेताओं को बूथ मैनेजमेंट से लेकर ग्रासरूट स्तर पर चुनाव मैनेज करना है।