चंडीगढ़। हरियाणा सरकार ने शुक्रवार को उच्च न्यायालय को सूचित किया कि उसने हिंसा प्रभावित नूंह जिले में विध्वंस अभियान चलाने से पहले ‘‘पूरी प्रक्रिया’’ का पालन किया और कहा कि यह जातीय नरसंहार का मामला नहीं है। पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने सोमवार को विध्वंस अभियान को रोकने का आदेश देते हुए कहा था ‘‘स्पष्ट रूप से बिना किसी विध्वंस आदेश और नोटिस के कानून-व्यवस्था की समस्या का इस्तेमाल कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया का पालन किए बिना इमारतों को गिराने के लिए किया जा रहा है।’’ मामला शुक्रवार को सुनवाई के लिए आने पर सरकार ने अदालत को बताया कि ‘‘यह जातीय सफाए का मामला कतई नहीं है’’।
राज्य के अतिरिक्त महाधिवक्ता दीपक सभरवाल ने अदालत परिसर के बाहर पत्रकारों से कहा, ‘‘हमने अदालत को अवगत कराया है कि यह जातीय सफाए का मामला नहीं है और सरकार कभी भी इस तरह से काम नहीं करती। हमारे (सरकार के) लिए सभी समान हैं। विध्वंस से पहले पूरी प्रक्रिया का पालन किया गया था।’’ इस महीने की शुरुआत में नूंह में अधिकारियों ने ‘‘अवैध रूप से निर्मित’’ कई संरचनाओं को ध्वस्त कर दिया था। यह कार्रवाई नूंह में भड़की और गुरुग्राम तक फैली सांप्रदायिक झड़पों में दो होम गार्ड और एक मौलवी सहित छह लोगों की मौत के बाद की गई।
उच्च न्यायालय ने सोमवार को राज्य सरकार को एक हलफनामा पेश करने का निर्देश दिया था कि पिछले दो सप्ताह में नूंह और गुरुग्राम दोनों में कितनी इमारतें ध्वस्त की गई हैं और क्या विध्वंस से पहले कोई नोटिस जारी किया गया था? पीठ ने सोमवार को कहा था, ‘‘...मुद्दा यह भी उठता है कि क्या कानून-व्यवस्था की समस्या की आड़ में किसी विशेष समुदाय की इमारतों को गिराया जा रहा है और राज्य द्वारा जातीय सफाए की कवायद की जा रही है।