नई दिल्ली: संसद की एक स्थायी समिति ने हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों के लिए वार्षिक आधार पर अपनी संपत्ति का ब्योरा घोषित करना अनिवार्य बनाने के लिए कानून लाने की सिफारिश की है. कार्मिक, लोक शिकायत, कानून एवं न्याय विभाग से संबंधित संसदीय स्थायी समिति ने अपनी रिपोर्ट ‘न्यायिक प्रक्रियाएं और उनमें सुधार’ में कहा कि एक सामान्य प्रथा के रूप में, सभी संवैधानिक पदाधिकारियों और सरकारी सेवकों को अपनी संपत्ति और देनदारियों का वार्षिक ब्योरा दाखिल करना चाहिए.
भाजपा के राज्यसभा सांसद सुशील कुमार मोदी की अध्यक्षता वाली स्थायी समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा, ‘सुप्रीम कोर्ट मानता है कि जनता को सांसद या विधायक के रूप में चुनाव लड़ने वालों की संपत्ति जानने का अधिकार है. जब ऐसा है, तो यह तर्क गलत है कि न्यायाधीशों को अपनी संपत्ति और देनदारियों का खुलासा करने की आवश्यकता नहीं है. सार्वजनिक पद पर आसीन और सरकारी खजाने से वेतन पाने वाले किसी भी व्यक्ति को अनिवार्य रूप से अपनी संपत्ति का वार्षिक रिटर्न दाखिल करना चाहिए.’
केंद्र सरकार ने संसदीय पैनल को बताया कि संपत्तियों की नियमित फाइलिंग और उन्हें सार्वजनिक डोमेन में अपलोड करने के लिए तंत्र को संस्थागत बनाने की आवश्यकता है. सर्वोच्च न्यायालय की संपूर्ण पीठ द्वारा 1997 में अपनाए गए ‘Restatement of Values of Judicial Life’ में कहा गया है कि सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों के प्रत्येक न्यायाधीश के लिए नियुक्ति के समय और उसके बाद हर साल की शुरुआत में अपनी संपत्ति और देनदारियों की घोषणा करना अनिवार्य होगा.
सुप्रीम कोर्ट की पूर्ण पीठ ने 2009 में पूरी तरह से स्वैच्छिक आधार पर, संपत्ति की घोषणा को सर्वोच्च न्यायालय की वेबसाइट पर डालने का संकल्प लिया. हालांकि, वर्तमान में सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर भारत के केवल 55 पूर्व मुख्य न्यायाधीशों और न्यायाधीशों की संपत्ति की घोषणा से संबंधित डेटा है, जिसे आखिरी बार मार्च 2018 में अपडेट किया गया था. इसी तरह, केवल पांच उच्च न्यायालयों की वेबसाइट पर संबंधित उच्च न्यायालयों के कुछ न्यायाधीशों द्वारा उनकी संपत्ति की घोषणा से संबंधित डेटा है.
न्यायाधीशों की संपत्ति और देनदारियों की घोषणा करने और न्यायाधीशों द्वारा पालन किए जाने वाले न्यायिक मानकों को निर्धारित करने में सक्षम ‘न्यायिक मानक और जवाबदेही विधेयक’ 15वीं लोकसभा के साथ ही समाप्त हो गया था. संसद की स्थायी समिति ने केंद्र सरकार को उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों के लिए उचित प्राधिकारी को वार्षिक आधार पर अपनी संपत्ति रिटर्न प्रस्तुत करना अनिवार्य बनाने के लिए उचित कानून लाने की सिफारिश की है. इसमें कहा गया है कि उच्च न्यायपालिकाओं के न्यायाधीशों द्वारा संपत्ति की घोषणा से प्रणाली में अधिक विश्वास और विश्वसनीयता आएगी.